पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/२५७

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कहना चाहूँगा कि यदि तुम भी अपने बाप की तरह बहादुर हो तो औरगजेब के लश्कर में आकर मुझसे मिलो! मगर भेष बदल कर ओना और अपना नाम रामसिह रखना। उदय -बहुत अच्छा मगर तुम्हारा पता किस नाम से लगाऊगा? सर्दार -- मेरा नाम भरतसिह है, बस अब किनारे झे जाओ और इस समय हम लोगों का पीछा न करो। इतना कहकर दह सर्दार अपनी मण्डली में जा मिला उदयसिह के देखते ही दखते उत्त औरत को उठवा कर ले मया। दूसरा बयान उस सर्दार और सिपाहियों के चले जाने के बाद उदयसिह को फिर अपने मित्र रविदत्त की फिक्र पड़ी और दोस्त का पता न लगने के कारण जो बचैनी पैदा हुई थी वह वढने लगी। यद्यपि चारों तरफ अन्धकार छाया हुआ था और जगल के घने पेड़ों की बदौलत उसे और मी सहायता मिल रही थी मगर उदयसिह ने अपने मित्र की खोज में किसी तरह की सुस्ती न की और इधर-उधर घूम-घूम कर खोज लगाता ही रहा। यकायक पत्तों की खडखड़ाहट से उसे मालूम हुआ कि दाहिनी तरफ से दो आदमी आ रहे हैं। उदयसिह एक पेड़ की आड देकर खड़ा हो गया और थोड़ी ही देर में धीरे धीरे बातें करते हुए वे दोनों आदमी उसके पास पहुंचे और कुछ देर के लिए उसी जगह खड़े हो गए जहा से सात या आठ हाथ की दूरी पर पेड़ की आड में उदयसिह खंडाथरात और सन्नाटे का समय था इसलिये उन दोनों की बातें सुनने का उदयसिह को अच्छा मौका मिला। उनदानों में यो यातचीत होने लगी- एक--अच्छा हुआ जो वे लोग उस औरत को उठाकर ले गए. अगर रविदत्त उसे देख लेता तो जरूर पहचान जाता। दूसरा- इसीलिये तो ऐसा प्रबन्ध किया गया था। मै तो रविदत्त को देखकर एक दम चौक पडा और समझा कि अब मामला बिगड़ गया मगर तुमन अच्छी चालाकी खेली। पहिला ~ मेरी तो यही राय थी कि रविदत्त को मार कर बखेड़ा ही तै कर दिया जाय मगर तुमने न माना। दूसरा- तुम बडे ही दुष्ट हो !जरा से काम के लिये किसी को मार डालना क्या अच्छी बात है? पहिला-अजी समय पर सब कुछ किया जाता है । दूसरा-तो उसे छोड़ देने में तुम्हारी हानि क्या हुई ? वल्कि हम लोग यफिक्र रहे। यदि वह मार डाला जाता तो उदयसिह उसके खूनी का पता लगाये विना कभी न रहता और अब तो किसी को कुछ गुमान भी न होगा,यहा तक कि स्वय रविदत्त ही को किसी तरह का शक न होगा। पहिला-तुम.जो चाहो सो कहो मगर मै तो अपनी उसी राय को पसन्द करता हू। खूनी का पता लग जाना क्या हसीखेल है? जिस पर आज कल की लडाई के समय में !हजारों आदमियों पर उदयसिह का शक जाता और हम लोगों का तो ध्यान भी उसके दिल में न आता। अब भी मै यही राय देता हू कि रविदत्त का मार कर बखेडात करो। मुझ शक है कि वह जानबूझकर बेहोश बना हुआ था, ईश्वर न करे कहीं यह गुमान सच निकला तो बडी मुश्किल होगी, रविदत्त बड़ा ही कोधी आदमी है और हमारे-तुम्हारे ऐसे चार के लिये वह अकेला ही काफी है। दूसरा -बात तो ठीक है मगर पहिला- मगर तगर काहे की? मैं जो कहता हू उसे मानो और लौट चलो रविदत्त का जीते रहना ठीक नहीं। दूसरा-अजी रहने भी दो। उघर उदयसिह उसकी खोज में घूम रहा होगा. मिल जायेगा तो सभी काम चौपट हो जायेगा । जो हो गया सो हो गया चलो आगे का रास्ता लो। पहिला-ठहरो अपने साथी को तो आ लेने दो वह कहा कहा भटकता फिरेगा। हा मुझे एक बात और याद आई जिस समय हमलोग रविदत्त को उठाने लगे थे उस समय उत्तने जरा सी आख खोल दी थी और फिर जल्दी स बन्द कर ली मालूम होता है कि हमलोगों का पहिचान कर उसन नखरा किया। दूसरा- अगर यह वात तुम सच कहते हा ता देशक खौफ का मुकाम है। पहिला- मैं तुम्हार ही सर की कसम खाकर कहता हू तुमसे कदापि झूठ न बालूगा इसक सिवाय उसके बगल में यहा पर की कुछ बातें उदयसिह को अच्छी तरह सुनाई नहीं पड़ी। दूसरा-खैर जो तुम कहो करन के लिए मैं तैयार है। पहिला- तो बस लौट चलो और उसे मार कर बखेडा नियटाआ यहा स कुछ बहुत दूर ता है नहीं और अनी भी वह देहोश पड़ा होगा। दूसरा - अच्छा चला जो कुछ होगा देखा जायेगा। दानों आदमी यहाँ से हटकर पीछे की तरफ लौट चले और कदम दयात हुए उदयसिह भी उनके पीछमीछे रवाना हुआ। इन दोनों को यातों से उदयसिंह को अपने मित्र का पता लग गया और यह भी मालूम हो गया कि तमाम फसाद गुप्तगोदना १२५९