पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/२५९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

लालटनों की राशनी हा जान स उदयमिह का उत्कण्टा हुई कि वह उन दानों की सूरत दख जा उसक हाथ से जमी हाकर पृथ्वी को शरण ले चुके था फौजो सिपाही की बातों के जवाब में कवल इतना ही कहकर कि ठहरिय ने आपका सब कुछ कहता है उदयसिह दाना जख्मिया की तरफ बढ़ गया और लालटन की राशनी में उनक चहरों को अच्छी तरह दखा। देखत ही उदयसिह चौक्ल और घबडा फर बाल उठा आह ! यह ता हमारा भाई है। तीसरा बयान फौजी सिपाहियों ने जो कुछ यहाँ पर देखा उनकी उत्कण्ठा बढाने के लिए काफी था। पहिले तो उदयसिह को दख- कर उन्हें ताज्जुब हुआ। फिर जय और दो आदमियों को जमी पाया ता ख्याल हुआ कि इसी (उदय)ने इन दोनों का नारा है नगर जब उदवसिह न जग का देखकर ताज्जुब क साथ कहा कि आह ! यह ता हमारा माई है 'तव उन लोगों के आश्चर्य का कोई हद न रहा। उन सिपाहियों में स एक न जिसका नाम हमीदखॉ था जो उन सभों का अफसर था उदयसिह से पूछा आप कौन उदय - मै यहा से बहुत दूर का रहने वाला हू, शिकार को लालच में यहा तक चला आया । हमीद-आजकल शिकार की लालच में यहा आना ताज्जुब पैदा करता है ! क्या आप नहीं जानत कि क्षिप्रा नदी के दानों किनारों पर किनकी फौजें पड़ी हुई है और किस तरह लडाई होने वाली है? उदय - मैं जानता हू, अगर रात्ता मै भूल न जाता तो इस तरफ कदापि न आता हमीद -खैर मगर इन दोनों का किसने जख्मी किया? उदय - मैना हमीद - (ताज्जुब से) आपने ! उदय-हा। हमीद -आप अभी कह चुके हैं कि यह तो हमारा भाई है। फिर आपने अपने भाई को क्यों मारा? उदय - इसने इस अधेरी रात में मेरे साथ दुश्मनी की थी और अपने को जाहिर नहीं किया इसी से मुझे घोखा हुआ 9 हमीद - अब आप इसके साथ कैसा बर्ताव करेंगे? उदय - सा इसस बातचीत किये बिना मैं नहीं कह सकता। हमीद - ( कुछ सोच कर ) आप जसवन्तसिह को जानते हैं ? उदय- एस बहादुर और राना क दामाद का कौन नहीं जानता होगा? खासकर क आजकल क जमाना में जब कि वादशाह शाहजहान उन्हें औरगजर के मुकाबले में भजा है और क्षिप्रा के उस पार उनका डरा पड़ा हुआ है। हमीद - और कासिमखाँ का भी आप जानते ही होंगे? ज्दव - शक नगर आपके इस सवाल का मतलब क्या है ? हमीद-कुछ नहीं यों ही पूछता हू हा आपका नाम तो मैन पूछा ही नहीं ! इसका जवाब देना उदयसिह को कठिन हो गया क्योंकि उदयसिह को उस औरत के लिए औरगजय के लश्कर में जाना जरूरी था और भरथसिह ने कह दिया था कि वहा तुम भेष बदलकर आना तथा अपना नाम रामसिह बताना । अब उदयसिह ने सोचा कि अगर इन लागों से मैं अपना नाम उदयसिह बताता हूतो शायद उस समय कुछ बुराई पैदा हो जय कि औरंगजेब के लश्कर में इससे मुलाकात हा और अगर मैं इसी समय अपना नाम रामसिह रखता हूतो यह जख्मी भाई तुरन्त मुझ झूठा नाम ठहराकर मेरा असल नाम जाहिर कर देगा उसी समय ये लोग मेर दुश्मन हो जायेंग! अस्तु उदयसिह सिर नीचा करके साचने लगा कि अब क्या करना चाहिय? हमीद -आप चुप क्यों हा गये क्या नाम बतान में कुछ हर्ज है ? या आप अपने को छिपाया चाहते है ? उदय-नता नाम यताने ही में कोई हर्ज है और न मैं अपन का छिपाया ही चाहता हू, मतलब यह है कि हमलोग अपने मुँह से अपना नाम नहीं ले सकते है यदि आपका मेरा नाम सुनना जसरी है तो कागज पर लिखकर बता सकता हूं। हमीद-अब इस जगह कागज कलम दवात कहाँ से आ सकती है? खैर आप जमीन पर उँगली से निशान करक बताइये मैं पद लूगा । उदयसिह ने अपना नाम रामसिंह 'लिख दिया जिसे पढने के साथ ही हमीदों न सलाम करक कहा, अच्छा तो मुझे रुखसत कीजिये यदि कुछ सिपाहियों की आवश्यकता हो तो कहिये आपकी मदद के लिये छाड जाऊ ? उदयसिंह ने कहा मुझे किसी की मी जरूरत नहीं है। यह सुनकर हमीदों ने अपने साथियों में स एक की तरफ देख कर कहा, अच्छा अब हम लोग लश्कर में जाते हैं तुम पता लगाओ कि उस बेहोश नौजवान को उठा ले जाने वाल कौन थे? गुप्तगोदना १२६१