पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/२६

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दि क्यारियों की रविर्शा में अच्छी तरह छिड़काव किया हुआ है और फूलों के.दरख्त भी अच्छी तरह पानी से धोए है। कहीं गुलाब, कहीं जूही. कहीं बेला, कहीं मोतिये की क्यारियाँ अपना अपना मजा दे रही है। एक तरफ बाग से सटा हुआ ऊँचा महल और दूसरी तरफ सुन्दर सुन्दर युजियाँ अपनी बहार दिखला रही हैं। चपला जो चालाकी के फन में बड़ी तेज और चन्द्रकान्ता की प्यारी सखी है अपने चंचल हावभाव के साथ चन्द्रकान्ता को साथ लिए चारों और घूमती और तारीफ करती हुई खूशयूदार फूलों को तोड़ तोड़ कर चन्द्रकान्ता के हाथ में दे रही है मगर चन्दकान्ता को बीरेन्द्रसिंह की जुदाई में ये सब बातें कब अच्छी मालूम होती है, उसे तो दिल बहलाने के लिए उसकी सखियाँ जबर्दस्ती बांग में खींच लाई है। चन्द्रकान्ता की सखी चम्पा तो गुच्छा बनाने के लिए फूलों को तोड़ती हुई मालती लता के कुंज की तरफ चली गई लेकिन चन्द्रकान्ता और चपला धीरे धीरे टहलती हुई बीच के फव्वारे के पास जा निकली और उसकी चमकदार टोटियों से निकलते हुए जल का तमाशा देखने लगी। चपला-न मालूम चम्पा किधर चली गई ! चन्दकान्ता-कहीं इधर उधर घूमती होगी। चपला-दो घडी से ज्यादे हुआ कि हम लोगों के साथ नहीं है। चन्द्रकान्ता-देखो वह आ रही है। चपला-इस वक्त तो इसकी चाल में फर्क मालूम होता है। . इतने में चम्पा ने आकर फूलों का एक गुच्छा चन्द्रकान्ता के हाथ में दिया और कहा, “देखिये यह कैसा अच्छा गुच्छा बना लाई हूँ, अगर इस वक्त कुँअर वीरेन्दसिंह होते तो इसको देख मेरी कारीगरी की तारीफ करते और मुझको बहुत कुछ इनाम देते।" वीरेन्दसिंह का नाम सुनते ही यकायक चन्द्रकान्ता का अजब हाल हो गया । भूली हुई बात फिर याद आ गई. कमल मुख भुरझा गया, ऊँची ऊँची सांस लेने लगी आँखों से आँसू टपकने लगे। धीरे धीरे कहने लगी, "न मालूम विधाता ने मेरे भाग्य में क्या लिखा है ? ने मालूम मैने उसे जन्म में कौन ऐसे पाप किये है जिनके बदले यह दुःख भोगना पड़ा। देखो पिता को क्या धुन समाई है। कहते है कि चन्द्रकान्ता को कुआरी ही रखूगा ।हाय !बीरेन्द्रसिंहके पिता ने शादी कराने के लिए कैसी कैसी खुशामदें की मगर दुष्ट क्रूर के बाप कुपथसिंह ने उनको ऐसा कुछ अपने बस में कर रक्खा है कि कोई काम होने नहीं देता. और उधर कम्बख्त क्रूर मुझसे अपनी ही लसी. लगाना चाहता है।" यकायक चपला ने चन्द्रकान्ता का हाथ पकड़ कर जोर से दयाया मानों चुप रहने के लिए इशारा किया । चपला के इशारे को समझ चन्द्रकान्ता चुप हो रही और चपला का हाथ पकड़ कर फिर बाग में टहलने लगी, मगर अपना रुमाल जानयूझ कर उसी जगह गिराती गई। थोड़ी दूर आगे बढ़ कर उसने चम्पा से कहा, " सखी देख तो फव्वारे के पास कही मेरा रुमाल गिर पड़ा है।" चम्पा रुमाल लेने फौव्वारेके तरफ चली गई तब चन्द्रकान्ता ने चपला से पूछा, "सखी तूने बोलते समय मुझे यकायक क्यों रोका?" चपला ने कहा, “मेरी प्यारी सखी, मुझको चम्पा पर शुबहा हो गया है। उसकी बातों और चितवनों से मालूम होता है कि वह असली चम्पा नहीं है।" इतने में चम्पा ने रूमाल लाकर चपला के हाथ में दिया। चपला ने चम्पा से पूछा, “सखी, कल रात को मैंने तुझको जो कहा था सो तैने किया?" चम्पा बोली."नहीं मैं तो भूल गई।" तब चपला ने कहा," भला वह बात तो याद है या वह भी भूल गई ! चम्पा बोली, "बात तो याद है।" तब फिर चपला ने कहा मला दोहरा के मुझसे कह तो सही तब मैं जानूँ कि तुझे याद है।" • इस बात का जवाब न देकर चम्पा ने दूसरी बात छेड़ दी जिससे शक की जगह यकीन हो गया कि यह चम्पा नहीं है। आखिर चपला यह कह कर कि मैं तुझसे एक बात कहूंगी चम्या को एक किनारे ले गई और कुछ मामूली बातें करके योली,"देखो तो चम्पा मेरे कान से कुछ बदबूतो नहीं आती? क्योंकि कल से कान में दर्द है ! नकली चम्पा चपला के फेर में पड़ गई और फौरन कान सूंघने लगी। चपला ने चालाकी से बेहोशी की बुकनी कान में रख कर नकली चम्पा को सुंघा दिया जिसके सूंघते ही चम्पा बेहोश होकर गिर पड़ी। चपला ने चन्द्रकान्ता को पुकार कर कहा, "आओ सखी अपनी चम्पा का हाल देखो।" चन्द्रकान्ता ने पास आकर चम्पा को बेहोश पड़ी हुई देख चपला से कहा, "सखी कहीं ऐसा न हो कि तुम्हारा ख्याल धोखा ही निकले और पीछे चम्पा से शरमाना पड़े !""नहीं ऐसा न होगा।" कह कर चपला चम्पा को पीठ पर लाद फौदारे के पास ले गई और चन्द्रकान्ता । चन्द्रकान्ता भाग १