पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/२६०

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वि उदय-क्या इस जगल में से किसी को हमीद-जी हो जब हम लोग इधर आ रहे थे तब रास्ते में पेड, की आड में एक बहोश आदमी को पड़े देखा, लालटेन की रोशनी जब उसके चेहरे पर डाली गई तो मालूम हुआ कि यह कोई अच्छे खानदान का और सिपाही आदमी है। मैंने बड़े गौर से उसकी सूरत देखी और चाहा कि उसे होश में लाकर हाल-बाल दरियाफ्त करने का बन्दोबस्त किया जाय मगर उसी समय बहुत से सिपाहियों के आन की आहट मालूम हुई और हम लोगों को रोशनी बन्द करक आड़ में हो जाना पड़ा इसलिये कि हमको सिर्फ जासूसी का काम सौपा गया है. दुश्मनों के सामने जाहिर होने या उनस लड़ने का हुक्म नहीं है, और उन सिपाहियों पर दुश्मन होने का गुमान था तथा दे गिनती में भी ज्यादे मालूम पड़ते थे। उदय - मगर यहाँ हमारे पास तो अब बहुत जल्द और खुल्लमखुल्ला चले आये ! हमीद-सिर्फ सीटी की आवाज सुनकर। फिरामी एक आदमी को आगे मेजकर दरियाफ्त कर लिया था कि यहाँ कितने आदमी हैं? उदय - अच्छा तो उस आदमी की सूरत-शक्ल कैसी थी और उम्र क्या होगी? हमीद-उम्र तो पचीस या तीस साल से ज्यादे न होगी, राग कुछ सावला चेहरा गोल. नाक चिपटी तुड्डी पर एक जख्म था जिस पर पटटी लगी हुई थी और दाहिनी आय के ऊपर एक बड़ा सा मसा था तथा .. उदय - अस्तु,अच्छा तो उन लोगों ने वहाँ पहुच कर क्या किया? हमीद -- वे लोग उस नौजवान को हाथों-हाथ उठा कर (हाथ का इशारा कर के इसी तरफ ले गये। उदय - कितनी देर हुई होगी? हमीद-अभी आधी घडी भी न हुई होगी. हमारा आदमी जल्द उनके पास पहुंचकर पता लगा लेगा। अच्छा तो अब मैं विदा होता हूँ। इतना कहने के बाद हमीदखौं ने सलाम करके उत्तर तरफ का रास्ता लिया। उस बेहोश नौजवान का जो कुछ हुलिया हमीदखाँ ने बयान किया था उससे हमारे चदयसिंह को निश्चय हो गया कि वह अवश्य उसका दोस्त रविदत्त था, अस्तु इससे तो निश्चिन्ती हो गई ये दोनों बेईमान उसे किसी तरह की तकलीफ पहुँचा न सकेंगे मगर फिर भी गैर के पज में फंस जाने से खुटका बना ही रहा। उदयसिह को सबसे ज्यादे आश्चर्य इस बात का था कि जबसे उसने हमीदचों से अपना नाम रामसिंह बताया तबसे हमीदखों की बातचीत का ढग बिल्कुल ही बदल गया। हमीदों ने उसके साथ इज्जत और मेहरबानी का बर्ताव किया बल्कि कभी-कभी तो यह मालूम होता था कि हमीदखाँ अपने को छोटा और कम दर्जे का आदमी समझ कर बातचीत करता है। यद्यपि पहिले तो उदयसिहाने कई बातों का ख्याल करके रुकावट के साथ बातचीत की थी मगर जम देखा कि हमीदों सभ्यता और इज्जत का बर्ताव करता है तब यह समझकर कि शायद रामसिह के नाम में कोई भेद हो और इस भेद को नष्ट करना चाहिए दिल खोल कर बातें की और ऐसा करना उदयसिह के लिए बहुत मुनासिब था। धे दोनों शैतान जिन्हें उदयसिह ने जमी किया था उसी समय सब बात सुन रहे थे और शायदकुछ देख भी रहे थे। हम नहीं कह सकते कि उदयसिह और हमीदखॉ की बातों का असर उनदोंनो पर क्या पड़ा उदयसिंह बहुत देर तक उन दोनों के पास खडा सोचता रहा और अन्त में धीरे-धीरे ये कहता हुआ वहाँ से रवाना हो गया कि पैर देखा जायेगा, पहिचान तो लिया.ही है। अब इस समय उदयसिह को तो दो बातों की फिक्र रही, एक तो औरगजेब के लश्कर में जाकर मरथसिह ने मिलना और उस औरत का भेद मालूम करना दूसर अपने दोस्त रविदत्त का पता लगाना । उदयसिह को तो मालूम ही हो गया था कि कई आदमी रविदत्त को फलानी जगह ले गये है अस्तु दोनों जख्मियों को उसी तरह छोड़ पहिले रविदत्त की फिक्र में रवाना हुआ। रात पहर भर से कम बाकी थी और चन्द्रदेव भी अपने अनूठे स्थान से बाहर निकल कर इधर-उधर झोंकने लग गये थे। उदयसिह अपने ख्यालों में डूबा हुआ आघ कोस से ज्यादे दूर न गया होगा कि पीछे से एक आदमी ने आकर उसके मोडे, पर हाथ रक्खा और उदयसिह ने चौक कर उसकी तरफ देखा उस आदमी का तमाम बदन स्याह कपडे से उका हुआ था और चेहरे पर स्याह नकाब पड़ी हुई थी। उदय-(तलवार के कब्जे पर हाथ रख कर.) तुम कौन हो? नकाबपोश-एक मामूली आदमी। उदय -हमसे क्या चाहते हो? नकाबपोश - कुछ भी नहीं। उदय -फिर हमारे पास आकर हमें होशियार करने का समय क्या है? नकाबपोश - मैं केवल इतना ही कहने के लिए आया हूँ कि यदि अपने दोस्त रविदत्त से मिलना चाहते हो तो मैं उससे मुलाकात करा सकता हूँ या तुम्हें उसके पास तक पहुंचा सकता हूँ। A देवकीनन्दन खत्री समग्र १२६२