पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/२६१

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उदय-कौन रविदत्त? नकाबपोश -- जिसकी खोज में तुम परशान हो रहे हो ! उदय- मै तो कित्ती रविदत्त को नहीं खोजता शायद तुम्हें धोखा हुआ हो या तुम किसी और की खोज में हा। नकाबपोश-(जार से हस कर) बहुत खास मुझ कई बातों में धाखा ही धोखा हाकर रह गया !हो ठीक बहुत अच्छा वह आदमी कोई दूसरा ही होगा जिसने अपने दोस्त के दो दुश्मनों को जख्मी करके जमीन पर गिरा दिया धावह कोई और ही होगा जिसने एक फौजी अफसर से बेहोश रविदत्त का हुलिया पूछा था खेर मुझे उसस क्या मतलव मैं क्यों जोर दकर तुम्हें कहूँ कि चल के रविदत्त से मिले और उसकी सहायता करे जाओ आनन्द करो मै भी सलाम करता इतना कह कर नकाबपाश पीछ की तरफ लौटा पर दो ही चार कदम गया था कि कुछ सोच कर उदयसिह न उसे पुकारा और कहा 'सुनो सुनो, भागे क्यों जाते हो ?' नकाबपाश-जब तुमसे और रविदत्त से कोई वास्ता ही नहीं और तुम उदयसिह हा ही नहीं तो हम क्यों अपना काम हर्ज करके तुम्हारे पास खड़े रहें। उदय - अच्छा अच्छा बताआ रविदत्त कहाँ है? नकाबपाश-(जार स हँसकर)क्या सहज ही कह दिया कि बताजा रविदत्त कहाँ है ? अजी मैं जा इस भयानक जगल में दौड़ता हुआ तुम्हारे पास आया हूँ आखिर इसका भी काई सपष है या नहीं ? उदय - सा तो तुम ही कह सकत हो ? नकाबपोग- नहीं नहीं सो तो तुम ही कह सकने हो कि रविदत्त का पता लगा देन के बदले में तुम मुझ क्या दाग? उदय - इस समय जो कुछ कोमती चीजें मरे पास है वह सब तुम्हार हवाले कर दूगा । नकाबपोश - इसक अतिरिक्त और कुछ भी दना होगा। उदय - इस समय और में क्या द त्तकता हूँ? नकाबपोश - इस समय नहीं ता समय मिलने पर दे सकते हो। मैं इस समय उसक बदल में एक हुण्डी लिख देना ही काफी समझूगा। उदय -हा इस बात को मै मजूर करता हूँ। नकाबपाश - अच्छा तो इस पत्थर की चटटान पर बैठ जाआ मर नौकर को आ लने दो। उदय- बहुत अच्छा मै बैठता हूँ। इतना कहकर उदयसिह बैठ गये और उन्हीं के पास वह नकाबपोश भी बैठ गया। थाडीदर तक उदयसिह क मतलय की बातें कहकर नकाबपोश ने समय बिताया और इसके बाद उदयसिह को मालूम हुआ कि यह हमारी मलाई करने नहीं आया था जय कि पन्द्रह वीस आदमियों ने वहा पहुच उस चारों तरफ से घर लिया और उस नकाबपोश ने कहा अब साप ढाल-तलवार जमीन पर रख दीजिए। चौथा बयान यद्यपि उदयसिह नकाबपाश के फदे में फतं गया और उसे कई आदमियों न आकर चारों तरफ से घेर लिया मगर इससे वह डर कर बदहवास नहीं हुआ और न उसने हिम्मत हारी क्योंकि वह बहादुर था और लडाई के फन में अपने को अनूठा समझता था। नकाबपाश के इस कहन पर कि अब आप ढाल-तलवार जमीन पर रख दीजिए उदयसिह उठ खड़ा हुआ और नेजा सम्हाल कर बोला, 'क्या इन थोडे से नामर्दो स डर कर मै ढाल-तलवार रख दूगा? इस समय चन्द्रमा की राशनी खूबी फैल चुकी थी और इस जगह जगली पड भी बहुत कम थे जिससे उदयसिह को लडाई में बहुत कुछ सुभीता हा सकता था। उदयसिह ने खडे होकर नजा घुमाना शुरू किया और ललकार कर कहा "जिसको मेरे मुकाबले में आना हो, आवे और देखे कि मुझमें क्या करामात है। उस नकाबपोश ने जिसने उदयसिह को धोखा दिया था अपने आदनियों को ललकार कर कहा 'हा देखना जानेन पावे जिस तरह हा सके जीता ही गिरफ्तार कर लो। उदयसिह नजा चलान में बहुत ही तज और होशियार था यद्यपि हाथ में नगी तलवार लिए हुए तीन आदमियों ने एक साथ उत्त पर हमला किया मगर उदय का कुछ मीन विगडा बल्कि उदयसिह कनेजे की चोट खाकर एक दुश्मन जमीन पर गिर पड़ा और उस समय सनों ने एक साथ ही उदयसिह पर हमला कर दिया। उदयसिह ने अपने दिल में निश्चय कर लिया था कि वह नकाबपोश जिसने उसको धोखा दिया था इन सभों का सदार है इसलिए जहाँ तक हो सके पहिले उत्ती को बेकाम करना चाहिये, साथ ही इसके उदयत्तिह को यह भी बहुत जल्द मालूम हो गया कि दहनकाबपोश अपने को सामना करन से बचाता है और अपने साथियों के पीछे ही रहकर काम गुप्तगोदना १२६३