पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/२६३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

art 1 उदय - एसा ही सही ( अपना हाल खुलासा कहन के बाद ) अच्छा अब तुम कहो। रविदत्त-आपकी बातों से मालूम होता है कि हम दोनों आदमी इसी जगल में एक दूसरे को खोजते ओर भटकत रहे । मैं जब आपकी खोज में घूमत-घूमता थक गया तो एक पड़ के नीच जीनपोश विछाकर बैठ गया और दर तक सोचता रहा कि अब क्या करना चहिये इसी बीच में एक औरत क चिल्लान की आवाज मरे कान में आइ और वह आवाज एसी ददनाक थी कि जिस सुनकर मैं वचैन हो गया और तुरन्त उट कर उसी तरफ रवाना हुआ जिधर से आवाज आई थी। थोड़ी ही दर में पहुच कर देखा कि एक पड के नीचे नहायत हसीन और खूबसूरत औरत पड़ी है उसकी आखे यद थी और होंठ कुछ हिल रहे थे मानों कुछ कह रही थी। मैं अपना कान उसके मुंह के पास ल गया और जो कुछ सुना वह बड ही ताज्जुब की बात थी ! धीर-धीरे उसक मुँह से य शब्द मेन सुने कौन कहेगा गाविन्ददेव के उदयसिह न मेरी जान ली चालाक औरडगजब का फिर भी उदय की याद वही उसी की याद हाय प्यारा उदय उदयसिह - (ताज्जुब स कुछ बेचैन होकर ) वशक ताज्जुब की बात तुमन सुनी उसकी सूरत-शक्ल कैसी थी? रविदत्त - बेशक वही औरत थी जैसे आपने देखा था। जब मैंन देखा तब भी वह दुनाली तमचा उसकी जेब में मौजूद था। उदय - वही औरत थी? रविदत्त - बशक वही थी। आपने उसकी गर्दन में एक मसा भी शायद देखा उदय -- { वात काटकर ) हॉ हॉ बेशक वही थी वह मसा ता मुझ कभी न भूलेगा। अच्छा तब क्या हुआ 2 रविदत्त-उसक याद फिर कोई आवाज उसके मुँह से न निकली और मुझे वह बहाश हा गई सी जान पड़ी। मैंने सोचा कि यदि उसके चेहरे पर जल का छींटा दिया जाय तो कदाचित होश आ जाय। आखिर इसी ख्याल से जल लाने के लिए मै नदी की तरफ गया और अपना पटूका तर करके ल आया स्गर अफसोस कि लौट कर मैन उस औरत का व्हान पाया ! मुझे बडा ही ताज्जुब हुआ और मैं उसकी खाज में चारों तरफ घूमने लगा। उसी समय आपक सीटी की आवाज मैंने सुनी और सीटी ही में उसका जवाब देकर आपकी तरफ रगना हुआ और थाडा ही दूर गया था कि यकायक फिर उसी औरत पर निगाह पड़ी जो कि सब्ज घास के ऊपर पड़ी हुई थी। 1 मैं विश्वास नहीं दिला सकता कि यह वही औरत थी क्योंकि उसका तमाम बदन मुफेद चादर स ढका था केवल एक हाथ और पैर का हिस्सा खुला हुआ था। मगर हाथों में वही माने के कड और स्याह चूडिया तथा उँगलियों में जडाऊ छल्ले दखन स मुझ निश्चय हा गया कि वही औरत है और यह दखन के लिय कि कहीं यह मर ता नहीं गई या मारी ता नहीं गई जा उसके ऊपर सुफेद चादर डाल दी गई है मैं आपकी तरफ जान का ख्याल छाड उसी की तरफ वढा और वैठे- बैठाय आफत की टोकरीसर पर उठा ली। जब वह औरत मुझस छ सात हाथ की दूरी पर रह गई और में उसक पास पहुंचना ही चाहता था कि घास स ढकी हुई पोली जमीन पर पैर पड़ा और मैं एक गडह के अन्दर चला गया । शिकारी लाग जानवरों का फंसान के लिये जिस तरह गडहा खोद कर ऊपर स घास-फूस पिछा के उसका मुँह बन्द कर दते है ठीक वैसा ही मामला यहा पर भी था। उस गडहे का मुँह इस तरह घास फूस से ढका हुआ था कि मुझे कुछ भी मालून न हुआ और मैं उसक अन्दर चला गया इसके अतिरिक्त सध्या का समय भी था और कुछ अधकार सा भी हो रहा था। में यह नहीं कह सकता कि वह गडहा तैयार किया गया था या पहिल ही का बना हुआ था मगर उसके नीचे मिट्टी कडी थी और मैं मुँह के बल गिरा भी था इसलिए मुझे चोट ज्यादे लगी और मैं बहोश हो गया। उसके बाद क्या हुआ इसकी खबर मुझ कुछ भी नहीं हा जब मुझे कई आदमी वहा से उठाकर दूसरी जगह ल चले तब मुझे होश आया और जरा सी आख खोल कर मैने अपने दुशमन को पहिचान लिया मगर कई बातों का ख्याल करके फिर उसी तरह आखें बन्द कर ली। उसी समय मर दुश्मनों में से एक ने कहा 'वही कपडा फिर उसके मुंह पर रख दो और चल चलो। बस मेर मुँह पर एक गीला रूमाल रख दिया गया जिसमें किसी तरह की तेज महक बेहाशी पैदा करने वाली थी और में पुन दहाश हा गया। इसके बाद दीन-दुनिया की खबर कुछ भी न रही। उदय - आखिर व लाग कौन थे जो तुम्हें वहाँ से उठा कर ले गए ? रविदत्त- वे हमारे सिपाही लोग थे जा पीछ छूट गये थे और हम लोगों का खोजत हुए इत्तिफाक से वहा आ पहुचे थे। उन्हीं की बदौलत मेरी जान बची और वे ही लोग मुझे उठाकर खंडहर में ले आए थे। उदय - अगर वे लाग आ मिले थे तो उस समय जब मे हाश में आया तो तुम अकेल क्यों नजर पडे और वे लोग कहा है? गुप्तगोदना १२६५ GO