पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/२६७

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lari प्रताप - दाराशिकोह अपने तीनों भाइयों का नाम तक मिटाने के लिए तैयार है मगर बादशाह की मुहब्बत नहीं चाहती कि उसके चारों लडकों में से एक भी मारा जाय। जसवन्तसिह और कासिमखा का हाल तो आपको मालूम हुआ ही होगा जिनको दाराशिकोह ने मुकाबले में भेजा है ? नौजवान - हा सुना है कि बादशाह (शाहजहा) ने उन्हें गुप्त रीति पर कह दिया था कि जंहा तक हो सके लडाई मत होने देना। प्रताप --'कासिमखा तो दाराशिकोह से रज भी रखता है मगर हमलोगों को अफसोस इस बात का है कि हमारे उदयसिहजी को लोगों ने व्यर्थ ही बदनाम कर रखा है। नौजवान – जहा तक मै ख्याल करता हू यह हुक्म हुआ है सो खास बादशाह का हुक्म है या दाराशिकोह का ? प्रताप-जहा तक मै ख्याल करता हूयह हुक्म सिर्फ दाराशिकोह की तरफ से है, बादशाह बेचारे को तो इन बातों की खबर भी न होगी, वह तो आज कल एक प्रकार से कैदी हो रहा है। इसी प्रकार की बातें करते वे दोनों आदमी पालकी के साथ साथ जा रहे थे सवारी खेत ही खेत जा रही थी और रास्ता बहुत ही खराब तथा ऊँचा नीचा था इसलिए वे लोग बडी मुश्किल से सफर तै कर रहे थे, चाँदनी रात का इन लोगों को बहुत कुछ सहारा था। इसी तरह पहर भर तक बराबर चले जाने के बाद कहारों ने कुछ देर तक दम लेने के लिए पालकी जमीन पर रख दी और इसी वजह से सवारों ने भी नौजवान की आज्ञानुसार थोडी देर के लिए घोडों की पीठ खाली की नौजवान भी घोडे से नीचे उत्तर पडा और प्रताप से कुछ कहकर पालकी के पास आया और एक तरफ (जिधर निराला था )का पर्दा कुछ उठा कर पूछा, 'किसी चीज की जरूरत तो नहीं है ? औरत - नहीं,मुझे किसी चीज की जरूरत नहीं है मगर यह तो बताओ कि अब रात कितनी बाकी होगी? नौजवान - रात तो अभी दो घटे से कुछ ज्यादे ही होगी। औरत - किसी तरह से सवेरा हो तो डाकुओं का खौफ दिल से निकले। नौजवान- मुझे तो अब डाकुओं का कोई ख्याल नहीं रहा और बादशाह का भी कुछ ऐसा ख्याल नहीं हैक्योंकि हम लोग सडक से दूर हट आये है, इसके अतिरिक्त मालूम होता है कि यहा पास ही में कोई गाव भी है। औरत -- (कुछ खुश होकर ) क्या कोई गाव मालूम पड़ता है? नौजवान - हा कुछ स्याही नजर आती है। औरत- तो फिर यहा क्यों ठहर गये उसी गाव में चले चलना था। नौजवान-गाव का पता लगाने के लिये मैने प्रताप को भेजा है वह लौटकर आ जाय और निश्चय हो जाय कि पास में कोई गाव है तो अवश्य वहा चल कर ठहरेंगे। इसके बाद उन दोनों में कुछ देर तक बातचीत होती रही और तब तक प्रताप भी लौट कर आ गया, नौजवान ने प्रताप के पास जाकर पूछा, क्यों क्या खबर है ? प्रताप - यहा से थोड़ी ही दूर पर बहुत बडा गाव है और उसके किनारे ही पर बधुत बडा शिवालय और सुन्दर पक्का कूआ है। शिवालय में हमलोगों के रहने लायक जगह भी काफी है। नौजवान - तो बस अब देर करने की कोई जरूरत नहीं, सवारी उठाओ और उसी जगह चले चलो। तुरन्त सवारी (पालकी )उठवाई गई और घडी भर के अन्दर ही सब कोई उस शिवालय के दर्वाजे पर जा पहुंचे। अभी वह जमाना नहीं आया था कि औरगजेब के हाथों से यडे बडे शिवालय और मन्दिर मटियामेट हो जाते। अभी तक भारतवर्ष के हर एक हिस्से में जगह-जगह हिन्दुओं के आराम और उपासना का स्थान मिल सकता था। इसीलिए यह मन्दिर भी यद्यपि एक मामूली गाव वालों की भक्ति और श्रद्धा का नमूना था तथापि इस योग्य था कि आए गए सौ पचास परदसियों को आराम पहुचाता। इसके चारो तरफ एक मजिल की और सामने फाटक के ऊपर दो मजिल की पक्की इमारत बनी हुई थी जिसमें अमीर और गरीब हर तरह के मुसाफिर आराम पा सकते थे। इस समय उसमें बाहर से आए हुए केवल दस बारह मुसाफिर उतरे हुए थे मगर फाटक के ऊपर वाला कमरा बिल्कुल खाली था। इन सभों के वहा पहुचने पर महन्थ ने दर्वाजा खुलवा दिया और कह दिया कि जहाँ तुम लोगों को आराम मिले डेरा डालो और जिस चीज की जरूरत या कमी हो मुझसे बेखटक माग लो और उसे ठाकुरजी का प्रसाद समझो। महन्थ की यह असाधारण कृपा कुछ इन्हीं लोगों के लिये न थी बल्कि जितने मुसाफिर उस शिवालय में आया करते सभों के साथ ऐसा ही वर्ताव होता क्योंकि जिस गाव में यह मन्दिर या शिवाला था उस गाव की आमदनी (मालिकों की तरफ.से )इस मन्दिर में इसी काम के लिये लगी हुई थी। हमारे इन अनोखे मुसाफिरों ने जिस समय मन्दिर में डेरा डाला उस समय रात बहुत कम बाकी थी।पालकी में जो औरत सवार थी उसका डेरा फाटक के ऊपर वाले कमरे में पड़ा और उसी के दर्वाजे वाली एक कोठरी में नौजवान तथा गुप्तगोदना १२६९