पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/२६८

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प्रताप ने डेरा जमाया बाकी लोगों ने उनकी आज्ञानुसार इधर-उधर रहने का बन्दाबस्त कर लिया। इन समों का यह इरादा हो चुका था कि आज का दिन इसी मन्दिर में बिता कर सध्या होते ही यहा से रवाना हो जायगे । सवेरा होने के साथ ही वे सय मुसाफिर अपनी-अपनी मजिल को रवाना हो गये जो इन लोगों के आने से पहिले ही उस मदिर में टिके हुए थे। हमारे मुसाफिरों ने भी स्नान-पूजा से छुट्टी पाई, मौका और आर्ड का बन्दोवस्त हो जाने पर वह औरत जो पालकी पर सवार हो कर यहाँ आई थी नोजवान को साथ लकर ठाकुर जी का दर्शन करने लगी। वास्तव में इस एक मन्दिर के अन्दर दो मन्दिर थे, एक में शिव पचानन की मूर्ति थी और दूसरे में श्रीराम पञ्चायतन विराजमान थे। जिस समय यह औरत दर्शन करने गई उस समय महन्थ शिवजी की आरती कर रहा था आरती करके जब वह चूमा तब इस औरत पर महन्थ की निगाह और महन्थ पर इस औरत की निगाह जा पड़ी, दोनों ने एक दूसरे को ताज्जुब क साथ देखा । औरत बदहवास होकर पीछे की तरफ हट गई, उसका चेहरा जर्द पड गया और तमाम बदन थर. थर कापने लगा। महन्थ भी ऐसा घबराया कि वह जल्दी के साथ आरती जमीन पर न रख देता तो निसन्देह वह उसके हाथ से छूट कर गिर पडती तिसपर भी महन्थ अपने को अच्छी तरह सम्हाल न सका और पूजा का कुछ हिस्सा अधूरा ही छोड़ मन्दिर के बाहर निकल कर अपनी काठरी में चला गया। इन दोनों की विचित्र हालत देखकर नौजवान को भी हद से ज्यादे ताज्जुब हुआ यह तो उसेनिश्चयहो गया कि इन दोनों की देखा-देखी या विचित्र अवस्था के साथ प्रेम का कुछ भी सम्बन्ध नहीं है. मगर जो कुछ है वह क्या है? 'इसका पता लगाना चाहिये। दर्शन करने के बाद जब वे दोनों अपने डेरे पर आए तब भी नौजवान ने उस औरत को घबराहट और परेशानी से खाली नहीं पाया । हा यह जरूर मालूम होता था कि वह औरत अपनी अवस्था ठीक करने की चेष्टा कर रही है, अन्तु थोड़ी ही देर में उसकी अवस्था ठीक हो गई और तब नौजवान ने उससे पूछा "जैसा कि पहिल निश्चय हो चुका है. दिन भर यहा रहन का इरादा है, या नहीं? अगर यहा से इसी समय रवाना हो जाने की इच्छा हो तो कही तैयारी की जाय।' औरत- यह तो निश्चय हो ही चुका है कि आज दिन भर यहा रह कर सध्या के समय रवाना होंगे फिर पुन पूछने का क्या सवव है ? अभी तो किसी के खाने-पीने का भी कुछ बन्दोबस्त नहीं हुआ है। नौजवान-मेरे पुन पूछने का सबब यही है कि यहाँ के महन्थ को देखकर तुम कुछ घबरा या डर गई थी इसीलिये मुझे शक हुआ कि कहीं उस महन्थ ने तुम्हें पहिचान तो नहीं लिया या उससे तुम्हें किसी तरह का खौफ तो नहीं है? औरत - नहीं उससे मुझे किसी तरह का खौफ नहीं है। नौजवान - फिर तुम उसे देख कर डरी क्यों ? औरत -(कुछ सोच कर ) तुमने उसके चेहरे पर भी तो उस समय ध्यान दिया होगा। नौजवान - हा वह तो तुमसे भी ज्यादे डरा और घबडाया हुआ मालूम पड़ता था। आखिर इसका कुछ सवय तो जरूर होगा। औरत - इसका सयर थोड़ी ही देर में आप से आप तुम्हें मालूम हो जायेगा मगर इतना कहने के साथ ही वह कुछ सोचने लगी और बाहर से प्रताप के बुलाने की आवाज आई। नौजदान बाहर चला गया और थोड़ी ही देर के याद वापस आकर उस औरत से बोला,"महन्थ तुमसे मिलने के लिए आया है। प्रताप ने उससे कहा भी था कि तुम अन्दर कैसे जा सकोगे? इसक जवाब में उसने कहा कि "सकेंगे और जायेंगे, तुम इत्तला करो।' यह सदेसा सुनकर फिर उस औरत की वही दशा हो गई.चेहरे पर घबराहट की निशानी दिखाई देने लगी और वह उठ कर बिना कुछ जवाब दिये इधर-उधर टहलने लगी। आठवां बयान हाथ में नगी तलवारें लिये हुए जिन लोगों को खडहर के अन्दर आते हुए उदयसिह और रविदत्त ने देखा, वे लोग असल में दाराशिकोह की फौज के सिपाही थे और गिनती में दसा उन्हें खडहर के अन्दर इस उग से आते देख रविदत्त और उदयसिद्ध मी तलवार लेकर खड़े हो गये मगर तुरन्त ही मालूम हो गया कि वे लोग इन दोनों से लड़ने की नीयत नहीं रखते तथापि उन सभों में से एक ने आगे बढ़के उदयसिह से पूछा क्या आप दोनों आदमी कृपा करके अपना नाम बता सकते है ?" उदय -- मेरा नाम कृष्णसिह है और ( रविदत्त की तरफ बता के ) इनका नाम भानुदत्त है। सिपाही - क्या आप लोगों ने इस जगल में उदयसिह को देखा ? या उन्हें जानते है ? उदय - हा मैं उदयसिह को जानता हू मगर आप लोगों को उनसे क्या काम है? सिपाही- मैं उनके नाम की एक चीठी लाया हूँ। उदय - वह चीठी किसकी लिखी हुई है? सिपाडी- इसका जवाब मै तब तक नहीं दे सकता जब तक मुझे यह न मालूम हो जाए कि आपको उदयसिह से कोई सम्बन्ध है या नहीं, अगर है तो क्या? । देवकीनन्दन स्त्री समग्र १२७०