पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/२६९

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उदय - अस्तु इसी तरह मुझे भी मालूम हो जाना चाहिए कि आप लोग उदयसिह के विपक्षी है या सिपाही- क्या आप इतना नहीं सोचते कि अगर हमलोग उनके दुश्मन होते तो उनके नाम की चिट्ठी लाते ? उदय-दुश्मन के नाम की चिट्ठी या हुक्मनामा लाना क्या कोई पाप है ? खैर तुम लोग अगर हमारे दुश्मन भी होवो तो हम कुछ परवाह न करके साफ-साफ कह देते है कि उदयसिह मेरा ही नाम है। सिपाही-(सलाम करके) मगर हमार मालिक की यही आज्ञा है कि तुम किसी की बात पर विश्वास न करना और उदयसिह का परिचय लेकर तब पत्र देना। परिचय में उन्होंने “मामा का शब्द कहा था। उदय - (प्रसन्न होकर ) अच्छा तो मेरी तरफ से पूर्ण शब्द उसके उत्तर में समझ लो और अब चाहे अपने मालिक का नाम न भी बताओ मगर मुझे मालूम हो गया कि तुम लोगों को जसवन्तसिहजी ने भेजा है। सिपाही-(पुन सलाम करकं और एक पत्र उनकी तरफ बढा के) नि सन्दह ऐसा ही है अस्तु यह पत्र लीजिये और इस का उत्तर शीघ्र ही दीजिये। उदयसिह ने सिपाही के हाथ स पत्र लिया और खोलकर पढा। पढन के साथ ही भृकुटी चढ गई आखों में अन्दाज से ज्यादे सुखी दिखाई देने लगी और ओठों की फडकन ने साफ बता दिया कि उदयसिह इस समय क्रोध के वंश म हो रहे है। पत्र पढ कर उदयसिह ने रविदत्त के हाथ में दिया और उसे पढ़ने के बाद रविदत्त की भी वही अवस्था हुई। उदय - (सिपाही से ) कोई चिन्ता नहीं परन्तु पत्र का उत्तर कैसे दिया जाय ? क्योंकि हम लोगों के पास लिखने का कोई सामान नहीं है। सिपाही- मैं कलम,दवात और कागज अपने साथ लाया हू। यह कह कर सिपाही ने कलम दवात और कागज उदयसिह के सामने रख दिया और उन्होंने उस पत्र का जवाब लिख कर सिपाही के हवाले किया और इसके बाद वह पत्र जो सिपाही लाया था फाड कर फेंक दिया। सिपाहियों ने जगल का रास्ता लिया और रविदत्त तथा उदयसिह में बातें होने लगी। नौवां बयान सूर्य भगवान अस्त हो चुके हैं और पल-पल में बढने वाली अधियारी चारों तरफ अपना दखल जमा रही है। उदयसिह और रविदत्त भेष बदले हुए औरगजेब के लश्कर में घूम रहे हैं। इस समय उन दोनों के बदन पर जो पोशाक है उसके विषय में इतना ही कह सकते हैं कि इसके पहिले जब इन दोनों को हमने देखा था तब उनके पास इन कपड़ों का नामो-निशान भी न था मगर यह नहीं कह सकते कि ये कपड़े इन दोनों को कब कहा से और क्योंकर मिले। दोनों की पोशाक सादी और सिपाहियाना ढग की थी औरहों की किस्म में से केवल ढाल तलवार उनके पास थी और वे दोन बडी देफिकी के साथ सैर करते हुए उस तरफ जा रहे थ जिधर सर्दारों के बड़े बड़े खेमे खड़े थे और आशा करते थे वि भरथसिह का खेमा भी उसी तरफ होगा। थोड़ी ही देर बाद उन दोनों को मालूम हो गया कि यद्यपि यहा किसी ने किसी तरह की रोक-टोक नहीं की मगर दो तीन आदमी गुप्त रीति से उनका पीछा किये हुए है अस्तु वे दोनों भी रुके और लौट कर उन्हीं लोगों से रविदत्त ने। पूछा कि 'मरथसिह का डेरा कहाँ है? एक-आप कहा के रहने वाल है और भरतसिह को क्यों खोजते हैं। रवि-उनस मिलन की जरूरत है। वही- क्या आप लोग अपना नाम बता सकते है? रवि - हाँ हाँ ( उदयसिह की तरफ यता कर इनका नाम रामसिह है। रामसिह नाम सुनते ही उसने झुक कर सलाम किया और कहा, "आप मेरे साथ-साथ चले आवें मैं आपको भरतसिह जी के पास ले चलता हूँ | उदयसिंह और रविदत्त उसके पीछे-पीछे रवाना हुए और चक्कर देते हुए थोड़ी ही देर में भरतसिह के खेमे के दर्वाजे पर पहुचे। उसी आदमी ने अन्दर जाकर मरतसिह को इत्तिला दी और वह स्वय आकर यडी खातिर से उन दोनों को खेमे के अन्दर ले गय और इसके बाद भी वह आदमी भी किसी तरह चला गया जिसके साथ य दोनों यहा तक आये थे। खमे के अन्दर बिल्कुल सन्नाटा था अथात् सिवाय भरतसिह के कोई दूसरा आदमी वहाँ न था। जमीन वहाँ की सिर्फ एक दरी से ढकी हुई थी और पिछले भाग में एक छोटा सा फर्श बिछा हुआ था। इधर-उधर बहुत स हर्वे पड़े थे और फर्श के पास छाटी सी चोकी पर बहुत से लिख और साद कागज तथा लिखने का सामान भी मौजूद था। भरतसिह ने दानों को अपने पास ही फर्श पर बैठाया और बातचीत होने लगी- भरत - ( रविदत्त की तरफ बता कर ) इनका नाम शायद रविदत्त है। उदय- जी हाँ। भरत - मैं कल तक आपके आने का इन्तजार करक नाउम्मीद हा चुका था। उदय- ठीक है मगर में कई एसी आफतों में फंस गया कि आ न सका । बताइये उस औरत का क्या हाल हे? भरत-बुरा हाल है। उदय वह है किस जगह पर? गुप्तगोदना १२७१