पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/२७

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दि 4 से बोली, तुम फौव्वारे से चिल्लू भर पानी इसके मुँह पर डालो, मै धोती हूँ।" चन्द्रकान्ता ने ऐसा ही किया और घपला सूर रगड़ रगड़ कर उसका मुंह धोने लगी। थोड़ी देर में चम्पा की सूरत बदल गई और साफ नाजिम की सूरत निकल आई। देखते ही चन्द्रकान्ता का चेहरा गुस्से से लाल हो गया और यह बोली, "सरवी इसने तो बड़ी बेअदबी की!" "देखो तो अब मैं क्या करती हूँ।" कह कर चपला नाजिम को फिर पीट पर लाद बाग के कोने में ले गई जहां बुर्ज को नीचे एक छोटा सा तहखाना था। उसके अन्दर बेहोश नाजिर को ले जाकर लिटा दिया और अपने ऐयारी के गए में से मोमबत्ती निकाल कर जलाई। एक रस्सी से नाजिम के पैर और दोनों हाथ पीट की तरफ खूब कस कर बाँचे और डिविया से लखलखा निकाल उसको सुंघाया जिससे नाजिम ने एक छोक मारी और होश में आकर अपने को कैद और येवरा देखा। घपला कोडा लेकर खड़ी हो गई और मारना शुरू किया। "माफ करो, मुझसे बडा कसूर हुआ. अदमै ऐसा कभी न करुगा बल्कि इस काम का नाम भी न लूँगा ! इत्यादि कह कार नाजिम चिल्लाने और रोने लगा, मगर चपला काय सुनती थी? यह कोड़ा जमाए ही गई और बोली, “सब कर. अभी तो तरे पीढ की खुजली भी न मिटी होगी तू यहाँ क्यो अआया था? क्या वाकी हम अछी मालूम हुई थी? या वाग की सैर को जी चाहा था? क्या नहीं जानता था कि चपला भी यहाँ होगी हरामजाद कोदणे, देईमान, अपने बायको कहन से तूने यह काम किया? देख में उसकी भी बीयत खुश कर देती हूँ।" यह कह कर फिर मारना शुरु किया तय पूछा, "सच यता तू कैस यहाँ आया और चम्पा कहीं गई?" भार के खौफ से नाजिम को असल हाल कहना ही पड़ा। वह बोला, "चाप को मैने ही बेहोश किया बेहोशी की दवा छिड़क कर फूलों का गुच्छा उसके रास्ते में रख दिया जिसको सैंध कर यह बहस हो गई तब मैंने उसे मालती लता के में डाल दिया और उसकी सूरत बन उरसके कपडे पहिर तुम्हारी सरफ घला या लो मैने सब हाल कर दिया, अबछोड दो!" चपला ने कहा, 'सहर छोडती हूँ। मगर फिर भी दरा पाँच खूबसूरत कोई और नगाली दिए. यहाँ तक बिनाजिर बिलबिला उठा, ताप चपला ने चन्द्रकान्ता से कहा, सखी तुम इसकी निगहबानी करो, म चम्पा को कार लगती हैं। काहीं यह पाजी झूट न कहता हो !" ग्रा को खोजती हुई चपला मालती लता को पारा पहुँधी ओर ती बाल कर दूँदने लगी। देखा कि सचमुच चम एक झासी में बहाश पड़ी है और बदन पर उसके एक लत्ता भी नहीं है। लखलखा मुंग्या कर होश में लाई और पूरा क्यों मिजाज कैसा है. खान मई धोखा !" "चम्पा ने कहा, 'मुझको क्या मालूम था कि इस समय यहाँ ऐयारी होगी? इरर जगह फूलो का एक गुष्ठा पड़ा ५१ जिजसको उठा कर सूंघते ही मै बेहोश हो गई. फिर न मालूग क्या हुआ। हाय हाय, न जाने किसने मुझे बेहोश किया, मेरे कण्डे भी उतार लिएबड़ी लागत के कपड़े थे!" यहाँ पर नाजिम के कपड़े पड़े हुए थे जिनमें से दो एक लेकर चपला ने चम्पा का बदन ढोका और तगह के कि"भैर साथ आ. मै उसं दिखलाऊँ जिसने तेरी ऐसी हालत की!"चम्पा को साथ ले उस जगह आईजही चन्द्रकान्ता. और नाजिम थे। नाजिम की तरफ इशारा करके चपला ने चम्पा से कहा, "देख, इसी ने तेरे साथ यह भलाई की थी! "चम्पा को नाजिम की सूरत देखते ही बड़ा गुस्सा आया और यह चपला से बोली, “वहिन अगर इजाजत दो तो मै भी दो चार कोड लगा कर अपना गुस्सा निकाल लें। चपला ने कहा, "हाँ हॉ, जितना जी चाहे इसे मूए को जूतियाँ लगाओ !"यस फिर गय था, चम्पानं मनमानस कोले नाजिम को लगाए. यहाँ तक कि नाजिम घबडा उठा और की मैं कहने लगा, "सुदा सुसंह को गारत करे जिसकी बदौलत मेरी यह हालत हुई !" आखिरकार नाजिम को उसी तहखाने में कर टीनो महल की तरफ रवाना हुई। यह छोटा सा याग जिसमें ऊपर लिखी रातें हुईं. महल के सग सटा है. सिकं पिछवाडे की तरफ पड़ता था और खास कर चन्द्रकान्ता के दालने और हवा खाने के लिए ही बनवाया गया। इसके चारों तरफ मुसलमानों का पहरा होने के सचब से ही अहमद और नाजिम को अपना काम करने का का मिल गया था। चौथा बयान तेजसिंह चीरेन्द्रसिह से रुखसत होकर विजयगढ़ पहुंचे और चन्द्रकान्ता से मिलने की कोशिश करने लगे, मगर कोई तरकीय न बैठी क्योंकि पहरे वाले बड़ी होशियारी से पहरा दे रहे थे। आखिर सोचने लगे कि अब क्या करना चाहिए। देवकीनन्दन खत्री समग्र