पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/२७०

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भरत - खास औरगजब के खम के बगल हीम छाट से खमेक अन्दर । उदय उसके चारो तरफ सख्त पहरा पड़ता होगा? भरत - वेशक। उदय - क्या आप बता सकते है कि वह कहाँ की रहने वाली है और उसका नाम क्या है ?

भरत - (मुस्करा कर ) क्या वास्तव में आप उसे नहीं जानत? उदय -- बिल्कुल नहीं। भरत - उसने तो आप ही का नाम लेकर औरगजब के गुस्से का बढ़ा दिया था। उदय - ( ताज्जुब से) मेरा नाम लेकर ॥ भरत - जी हा और इससि उस मै समझता था कि आप उस जरूर जानत होंग। उदय - जी नहीं, मैं उसे बिल्कुल नहीं जानता केवल आपकी आज्ञानुसार यहा आया हू और अव जिस तरह आप कहें उसी तरह करने के लिए तैयार हूँ। भरत - शायद ऐसा ही हो अस्तु मुझे किसी तरह का वास्ता न होने पर भी उस पर दया आती है और में उस इस आफत से छुड़ाने की फिक्र में हूँ। उदय- आप क बादशाह ने उसे कैद क्यों कर रक्खा है? भरत -- केवल मुरादवख्श की प्रसन्नता के लिये। एक तो वह पहिले ही एयाशी के नश में चूर हा रहा था दूसरे औरगजेब दिन दूनी रात चौगनी उसकी ऐयाशी को तरक्की द रहा है, सच तो यो है कि खास शाह साहब बनाकर लागों को धोखा दा वाले औरगजेब की चालाकियों का कुछ पता नहीं लगता और इसका भी भद नही खुलता कि इस बवारी औरत को मुराद की नजर करने में औरगजेब ने क्या फायदा सोचा है। इसके अतिरिक्त कल तो मुझ यह भी आशा थी कि इस होने वाली घमासान लडाई का माका उस औरत को छुड़ा देन के लिए बहुत ही अच्छा होगा मगर आज उसकी आशा जाती रही क्योकि इस लडाई में औरगजेब फतह पायेगा यह निश्चय हो गया। उदय -- (बात काटकर ) सो केस? भरत-(धीरे सदाराशिकाह की फौज का अफसर कासिमखा मिला लिया गया और वह दाराशिकोह से कुछ रज भी था मगर बादशाह ( शाहजहा) की आज्ञा का पालन करने के लिए चला आया है। उदय - ठीक है मगर उस फौज का दूसरा अफसर जसवन्तसिह एसा नहीं है जो अपन धर्म में बट्टा लगा कर औरगजब से मिल जाय। भरत-बेशक ऐसा ही है मगर जब उसका साथी ही बईमान हा रहा तब वह क्या स्वय धोखे में नहीं पड़ सकता? उदय - अस्तु जो हो आखिर आपने उसके छुडाने के लिये कोई तदबीर तो सोची ही होगी। भरत-हा भरतसिंह और कुछ कहा ही चाहता था कि उसका एक खैरखाह सिपाही खेम के अन्दर आता हुआ दिखाई दिया जिस पर निगाह पडते ही भरतसिह ने चौक कर पूछा क्यों कुशल तो है ।' सिपाही-- मे ठीक नहीं कह सकता कि कुशल है या नहीं मगर इस कुसमय की बुलाहट का कुछ न कुछ सवय तो जरूर है? भरत - क्या बादशाह ने मुझे तलब किया है । सिपाही - केवल आपही को नहीं बल्कि ( उदय की तरफ बता कर ) इनको भी तलब किया है। भरत - (ताज्जुब से ) इनसे क्या मतलब था ? सिपाही-सो ईश्वर जाने। यदि आज्ञा हो तो उस चोवदार को हाजिर करौं जो तलवी का परवाना बनकर आया है। भरत - (कुछ सोच कर ) खैर उसे मरे पास मेजो ! इतना सुन कर वह सिपाही खेमे के बाहर चला गया और थोड़ी ही देर बाद चोबदार को साथ लिये हुए पुन खेमे के अन्दर आया। चोबदार 7 भरतसिह को एक मामूली सलाम करके कहा खुदयदौलत (औरगजेब )ने आपको तलब फर्माया है और यह भी हुक्म दिया है कि आप अपने नये मेहमान को भी जिसने अपना नाम रामसिह बताया हे साथ लेते आवें। भरत - बहुत अच्छा में बहुत जल्द हाजिर होता हूँ। सिपाही- मुझे अपने साथ लाने के लिए हुक्म हुआ है खैर कोई हर्ज नहीं तब तक बाहर खडा हूँ आप बातें कर लें। इतना कहकर चोबदार वाहर चला गया और भरतसिह ने उदयसिह की तरफ देख के कहा 'यह बहुत ही बुरा हुआ मै नहीं जानता कि औरगजेब को आप लोगों के बारे में किस तरह का शक हुआ है। कुछ रुक फर और किसी तरह की आहट पाकर )दखिये मालूम होता है कि बहुत से फौजी सिपाहियों ने हमारा खमा घेर लिया है। देवकीनन्दन खत्री समग्र १२७२