पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/२७३

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cx महन्थ - ऐसा तो नहीं हो सकेगा। औरत - होगा और ऐसा ही होगा। महन्थ-(क्राय स दात पीस कर तो क्या मुझे जसवन्तसिह की भतीजी के लिये तामदान की सवारी का बन्दोबस्त करना ही पडेगा? और क्या पुन उदयपुर जाने की नौबत आवेगी? महन्थ की यह आखिरी बात सुनकर उस औरत का चेहरा मार क्रोध के लाल हो गया और उसके नाजुक होंठ नापने और दातों के नीचे जाने लगे। उसने जमीन पर पैर पटक करके कहा, आखिर यह क्या बात है ? क्या तुम्हें अभी विश्वास नहीं हुआ कि आज मैं मरने के लिये तैयार हो चुकी हूमगर एक सत्पुरुष के खानदान भर की आत्मा को दुखीन करुगी?' इतना कहकर वह औरत उठी और उस तरफ बढी जिधर उसका बिछावन और असबाब रक्खा हुआ था। जवरात की एक छोटी सी सन्दूकडी लाल कपड़े में बधी हुई उसी जगह रक्खी थी जिस वह उठा लाई और नौजवान की तरफ बढाकर तथा महन्थ की तरफ देखती हुई बोली, अगर कुछ प्रताप के पास है तो कुछ इसमें भी है।' अब महन्थ अपने रज को बर्दाश्त न कर सका, घबराहट के साथ उठ खडा हुआ और उस औरत की तरफ देखता हुआ बोला, अच्छा अच्छा मैं तुम्हारे साथ जहा तक कहो चलने के लिये तैयार हू इन गडे मुर्दो को उखाडने से फायदा ही क्या है? औरत -- मुझे ऐसा करने की कोई जरूरत नहीं है. अगर तुम चलने के लिए तैयार हो तो मैं भी यहा ठहरना पसन्द नहीं करती। मेरे साथी लोग यहा नहीं तो आगे चलकर कुछ खा ही लेंगे। महन्थ - मैं प्रसाद भेज देता हू तुम खा-पी कर निश्चिन्त हो जाओ तब तक मैं भी भोजन कर लेता है। औरत - (ताने के तौर पर )जी अपना प्रसाद आप उठा रखिये, किसी बड़े खानदान के काम आवेगा। इस बात ने महन्थ के बदन में पुन कपकपी पैदा कर दी और वह खून भरी आखों से उस औरत की तरफ देखता हुआ कमरे के बाहर निकल आया। इन दोनों की बातों ने हमारे नौजवान के दिल पर क्या असर किया सो वही जानता हागा मगर इतना जरूर है कि वह ताज्जुब के साथ उन दोनों की बातें सुनता और उस पर गौर करता रहा मगर असली तत्व समझ में न आया। आदमी बुद्धिमान था इसलिए येमौके कुछ बालने या पूछने का इरादा भी न किया। जब महन्थ कमरे के बाहर चला गया और वह भी उसे सीढियों तक पहुचा आया ता उस औरत से बोला में अफसोस करता हू कि यहा आने के सबब तुम्हें एक तरफ की तकलीफ उठानी पड़ी। औरत - कोई चिन्ता नहीं, बल्कि एक तौर पर अच्छा ही हुआ। हम दोनों की बातें सुनकर तुम ताज्जुब करते होगे मगर निश्चय रक्खा कि मैं इन भेदों को तुमसे छिपा न रक्खूगी क्योंकि इस भेद से और तुमसे तथा प्रताप से बहुत बड़ा सबध है। अब तुम जहा तक जल्द हो सके कूच की तैयारी कर दो महन्थ अवश्य हम लोगों के साथ चलेगा और रास्ते में तुम्हें दिखाऊगी कि यह कोई मामूली आदमी नहीं है। नौजवान "बहुत अच्छा कह कर कमरे के बाहर हो गया और थोड़ी ही देर में कूच का सामान ठीक कर दिया। दोपहर होने के पहिले ही इन लागों का डेरा कूच हो गया और महन्थ भी एक घोडे पर सवार नौजवान के साथ ही साथ जाता हुआ दिखाई देने लगा। ग्यारहवां बयान महन्थ के विषय में नौजवान का दिल तरदुद से खाली न था उसने जो कुछ दखा सुना था वह प्रताप से बयान किया और प्रताप नौजवान से भी ज्यादे सोच विचार और तरकुंद में पड़ गया। जब उन लोगों का डेरा कूच हुआ था दिन दो पहर से ज्यादे बाकी था और सूर्य भगवान किरणों द्वारा मानों अगारे उगल रहे थे। सवारी की कैफियत यह थी कि आगे आठ सवार, उसके पीछे पालकी और पालकी के पीछे बचे हुए सवार तथा कहारों की भीड थी। पालकी के वाई तरफ प्रताप और दाहिनी तरफ नौजवान अपने साथ ही साथ महन्थ को लिय जाता था।पहर भर से कुछ ज्यादे देर तक इसी तरह पर सफर जारी रहा और इस बीच किसी से किसी की बातचीत नहीं हुई मगर जब पहर भर दिन बाकी रह गया तब महन्थ न नौजवान से कहा 'हमलोग यहुत दूर निकल आये है अगर अय भी मुझे छुट्टी मिल जाती तो दिन रहतेरहते अपने ठिकान पहुच जाता नहीं तो रात हो जायेगी और रास्ते में सख्त तकलीफ होगी। नौजवान-मै इस विषय में कुछ भी नहीं कह सकता हा थोड़ी देर में दम लेने के लिए कहार लोग पालकी उतारेंगे तव मै वेशक पूछ कर कुछ कह सकता हूँ । महन्थ -- अगर आप चाहें तो इस समय भी पूछ सकते हैं। नौजवान- हा मगर उसी तरह जिस तरह आप चाहें तो बिना पूछे इसी समय लौट जा सकते हैं। गुप्तगोदना १२७५