पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/२७४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

he महन्थ- नहीं नहीं. मुझमें और आप में बहुत बडा फर्क है जब मैं अपने घर में था जहा मेरी हुकूमत थी तब तो मैं साथ आने से इनकार कर ही नहीं सका और अब जब मैं अकेला आप लोगों के कब्जे में हूतब क्योंकर लौटने का इरादा कर सकता हूँ? नौजवान - खैर थाडी देर और सब कीजिए कोई बाग या ठिकाने का कूआ आ जाय तो मै सवारी रुकवा कर आप के बारे में दरियाप्त करता हू, मगर वे तो आप से पहिले कह चुकी थी कि सूर्य' अस्त होने के घट भर पहिले तुम्हें छोड दूंगी। महन्थ - ठीक है मगर आप चाहें तो जल्द छुट्टी दिला सकते है असल तो यों है कि मुझ पर व्यर्थ अत्याचार हो नौजवान -- (मुस्कुरा कर ) व्यर्थ ! तो आप चले क्यों नहीं जाते? महन्थ - यह मेरी मलमनसी है। क्या उन्होंने मेरे विषय में आप से कुछ कहा था? नौजवान - बहुत कुछ कहा था बल्कि यों कहना चाहिये कि आपके सम्बन्ध की सभी बातें कही है। महन्थ - केवल आपही से या किसी और से भी? नौजवान - कई आदमियों से। महन्थ - किस-किस से? नौजवान -- नाम बताने की काई जरूरत नहीं और न इस विषय में बातें करने की मुझे आज्ञा ही है। लीजिए यह आम की यारी आ गई इसी में कुछ देर के लिए ठहरने का बन्दोबस्त करता हूँ। यद्यपि उस स्त्री ने महन्थ के विषय में कोई हाल या उसका भेद नौजवान से नहीं कहा था मगर मौका मुनासिब समझकर नौजवान ने महन्थ से कह दिया कि हा आपका सब हाल मुझसे कह चुकी हैं। सवारी उठते समय उस औरत ने सफर के विषय में कई बातें नौजवान को समझा दी थीं उसी मुताबिक अभी तक नौजवान ने कहारों को ठहरने की इजाजत नहीं दी थी मगर इस समय जब वे लोग एक ऐसे मुकाम पर पहुचे जहा सडक के बगल ही में एक आम की बारी (गाछी) और सुन्दर कूआ था और उसके थोड़ी ही दूर आगे एक गाव भी दिखाई दे रहा था तब नौजवान का इशारा पाकर सवारों और कंहारों ने सुस्ताने का इरादा किया। प्रताप आगे बढकर आम की बारी में चला गया और उसके बाद कहारों ने वहा पहुच कर पालकी उतारी। उसी समय महन्थ को दूसरी तरफ ठहरने की इजाजत देकर नौजवान उस पालकी के पास चला गया जिस तरफ निराला या सन्नाटा था उस तरफ का पर्दा उठा कर पूछा, “कहिये, किसी चीज की आवश्यकता है? औरत-सिवाय जल के और किसी चीज की आवश्यकता नहीं। पालकी में जल तो है मगर गरम हो गया है। नौजवान - बहुत अच्छा, मैं अभी ताजा जल मंगवाता हूँ। इतना कहकर नौजवान ने प्रताप की तरफ देखा जो उस से थोड़ी ही दूर पर खड़ा था, जब प्रताप पास आया तब उसे जल मगवाने के लिये कहा और आप पालकी के अन्दर से एक कपड़ा ले बिछाकर बैठ गया और कुछ देर के बाद उस औरत से यो बातचीत होने लगी- औरत - पालकी के उस तरफ कोई है या नहीं? नौजवान - कोई नहीं सब लोग दूर खडे हैं। औरत - वह कम्बख्त महन्थ कहा है? नौजवान-(हाथ का इशारा करके) उसी तरफ एक पेड़ के नीचे जीनपोश निछा कर बैठा है। औरत - तुमसे कुछ कहता भी था? नौजवान-हा, पहिले तो उसने यह कहा था कि मुझे लौट जाने की इजाजत दिला दो। इसके बाद उसने यह जानना चाहा कि मुझे उसका कुछ भेद मालूम है या नहीं, अथवा तुमने उसके विषय में मुझसे कुछ कहा है या नहीं? औरत - तुमने क्या जवाब दिया? नौजवान-मैंने कह दिया कि तुम्हारा बहुत कुछ हाल मुझे बल्कि और भी कई आदमियों को मालूम हो चुका है। बस इससे ज्यादे और कोई बात मैने नहीं कही। औरत-बहुत अच्छा किया। अब मैं इसी जगह उस कम्बख्त का असल भेद तुमसे बयान करूगी और तुम भी वह भेद प्रताप से इसी समय कह देना । असल तो यों है कि यह महन्थ बड़ा ही दुष्ट और जालिम आदमी है, इसका गुप्त भेद जब तुम सुनोगे तो अपने क्रोध को रोक न सकोगे मगर समय पर ध्यान देकर क्रोध रोकना ही पड़ेगा और प्रताप को तो तुमसे भी ज्यादे रंज और क्रोध होगा जब वह तुम्हारे मुँह से इस कम्बख्त का असल भेद सुनेगा। मगर तुम प्रताप को भी समझा देना के यह मौका उदलने का नहीं है बल्कि मुनासिव ढग पर काम करने का है। नौजवान-ऐसा ही होगा। जब से मैने तुम्हारी और इस महन्थ की बातचीत सुनी है तब से मेरे दिल का क्या हाल है सो मैंडी जानता हू बयान नहीं कर सकता। देवकीनन्दन खत्री समग्र १२७६