पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/२७६

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६ फेंका था, गॅवारी बोली में मैने दोआ दी थी। महन्थ-ठीक है, तो मामला सब लैस हो गया था? भिखमा-जी हॉरगू भी यहा से दो घटा पहिले ही अपने सगी-साथियों का बन्दोबस्त करके आगे बढ़ गये थे। महन्थ- कुछ कहा मी था? भिखमगा-जी हा इतना कह गये थे कि महन्थजी आवें तो कह दीजियो कि आप सोचन करें आपका काम जरूर हो जायेगा हम लोग जिगना, हरैया और दयालपुर तीनों जगह घेरे रहेंगे, कहीं न कहीं मिले बिना नहीं रहते, अपने घर न जायँ, हमार घर पर आवे, सवेरा होने के पहिले हम पालकी वाली और दोनों सवारों का सिर लिये हुए अगे। महन्थ-हॉ!! मिखमगा-जी हाँ, अब आप सीधे रगू के घर चले जाइये। महन्थ-नहीं, हम इस समय रगू के घर न जायेंगे बल्कि उसी पालकी की तरफ जायेंगे और वहाँ ही रगू से मिल लेंगे, क्योंकि हमारे रहने से काम अच्छा होगा और हमारे कई आदमी भी उधर गये हुए है उनका हाल भी मिल जायेगा। भिखमगा - जैसी मर्जी। महन्थ ने फिर घोड़े को लौटाया ओर जिधर से आया था उसी तरफ अर्थात् पालकी, नौजवान और प्रताप की तरफ रवाना हुआ। बारहवां बयान हमारा नौजवान प्रताप और वह पालकी वाली औरत जिस गाव में उतरने वाले थे उस गाय का नाम 'हरैया था ओर उसके चार कोस आगे एक गाव और था जिसे लोग दयालपुर के नाम से पुकारते थे। हरैया के पहिले अर्थात इस तरफ जो गाव पडता था जहा से हमारे नौजवान सवार ने हरैया के बारे में दरियाफ्त किया था वही गाव जिगना के नाम से मशहूर था। जिस आम की यारी में थोड़ी देर के लिये नौजवान ने सवारी उतरवाई थी वह जिगना ही की जमींदारी में शरीफ था। महन्थ बराबर घोडा दौडाये जिगना तक चला गया और जब उस गाव के कुछ दूर आगे निकल गया तब उसने अपने घोडे की चाल सुस्त की और सड़क के दोनों तरफ ध्यान देता हुआ धीरे-धीरे जाने लगा। इस समय रात दो घंटे से ज्यादे जा चुकी थी। यद्यपि चन्द्रदेव के उदय होने के कारण चारों तरफ अधकार छाया हुआ था तथापि आसमान साफ और मेदान होने के सबब थोडी दूर पर के आदमियों की आहट बखूबी मिल सकती थी। महन्थ ने यकायक सड़क के दाहिने किनारे दो तीन आदमियों का टहलते हुए देखा घोडा रोक कर आवाज दी : 'कौन है ?' इसक जवाब में एक ने कहा, "भिखमगा।" महन्थ ने आवाज पहिचानी और पुन पुकार कर कहा, रगू? रगू-जी हा महन्थ जी । आप क्यों चले आये? महन्थ - तुम लोग अभी तक इसी जगह हो ? रगू- जी हा अपने दो एक आदमियों की राह देख रहा हूँ मगर उस काम का पूरा-पूरा इन्तजाम कर चुका हूँ, आपके आने की तो कोई जरूरत न थी। महन्थ - अगर जरूरत न होती तो मैं कदापि न आता, तुमसे एक बात कहना बहुत जरूरी है। रगू-वह क्या? महन्थ-कहना यही है कि उस औरत, नौजवान और प्रताप का सिर ऐसे समय में काटा जाय कि उनके मुंह से एक बात भी न निकले और कोई सुनने न पावे। जहाँ तक मैं समझता हूँ उस औरत ने पूरा-पूरा इन्तजाम करके डेरा डाला होगा और रात भर में एक घड़ी के लिए भी आराम न करेगी अगर वह चिल्लाकर कुछ भी कहेगी और उसके मुंह से निकली हुई बात कोई भी सुन लेगा तो बड़ा गजब हो जायेगा, फिर हमारी जान किसी तरह मी न बच सकेगी। रगू-यह तो आपने बड़ी बेठर कही। मै तो यही सोचे हुए था कि हम लोग यकायक डाकुओं की तरह हल्ला कर देंगे और उन तीनों की जान लेने के बाद लूट-पाट कर चल देगे। उन लोगों के रोने और चिल्लाने से कुछ भी न होगा। महन्थ नहीं नहीं, ऐसा खयाल भी न करना । उस औरत की बातों में बहुत बड़ा असर है, अगर उसके मुंह से निकली हुई बात तुम लोग भी सुन लोगे तो विश्वास रखो कि तुम लोगों का साथ भी जहा का तहा रुक जाएगा और कुछ करते धरते न बनेगा। वह साधारण औरत नहीं है, अगर ऐसा होता तो हम खुद ही उसका काम तमान कर देते. तुम लोगों को तकलीफ देने की जरूरत न पड़ती। रगू- ठीक है यही तो हम लोग भी सोच रहे थे कि इस मामूली काम के लिये इतना बखेड़ा क्यों किया !मगर अब आपकी बातें सुनकर मालूम हुआ कि यह मामूली काम नहीं है। महन्थ -देशक ऐसा ही है। देवकीनन्दन खत्री समग्र १२७८ 1