पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/२८

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दि R . रात चाँदनी है, अगर अँधेरी रात होती तो कमन्द लगा कर ही महल के ऊपर जाने की कोशिश की जाती। आखिर तेजसिंह एकान्त में गये और यहाँ अपनी सूरत एक चोवदार की सी बना महल के ड्योढ़ी पर पहुँचे। देखा कि बहुत से चोयदार और प्यादे बैठे पहरा दे रहे हैं। एक चौबदार से बोले, "यार, हम भी महाराज के नौकर है, आज चार महीने से महाराज ने हमको अपनी अर्दली में नौकर रक्खा है, इस वक्त छुट्टी थी, चाँदनी रात का मजा देखते टहलते इस तरफ आ निकले, तुम लोगों को तम्बाकू पीते देख जी में आया कि चलो दो फूंक हम भी लगा लें, अफियूम खाने वालों को तम्बाकू की महक जैसी मालूम होती है. आप लोग जानते ही होंगे !' "हाँ हाँ आइए. बैटिए. तम्बाकू पीजिए !"कह कर चोबदार-और प्यादों ने हुक्का तेजसिंह के आगे रक्खा। तेजसिंह ने कहा, "मैं हिन्दू हूँ हुक्का तो नहीं पी सकता. हाँ हाथ से जरुर पी लूँगा।" यह कह चिलम उतार ली और पीने लगे। दो पूँक भी तम्बाकू के नहीं पीए थे कि खाँसना शुरू किया. इतना खाँसा कि थोड़ा सा पानी भी मुँह से निकाल दिया और तब कहा, "मियाँ, तुम लोग अजय कडवा तम्बाकू पीते हो ? मैं तो हमेशा सारी तम्बाकू पीता हूँ। महाराज के हुक्कायदीर से दोस्ती हो गई है, वह बराबर महाराज के पीने वाले तम्बाकू में से मुझको दिया करता है. अब ऐसी आदत पड गई है कि सिवाय उसे तम्बाकू के और कोई तम्बाकू अच्छा नहीं लगता !" इतना कह चोचदार बने हुए तेजसिंह ने अपने ग्टुए में से एक चिलम तम्बाकू निकाल कर दिया और कहा, "तुम लोग भी पीकर देख लो कि कैसा तम्बाकू है।" मला चाखदारों ने महाराज के पीने का तम्बाकू कभी काहे को पीया होगा, पीना क्या सपने में भी न देखा होगा। झट हाथ फैला दिया और कहा, "लाओ भाई तुम्हारी बदौलत हम भी सारी तम्बाकू तो पी लें, तुम बडे किस्मतवर हो कि महाराज के साथ रहते हो, तुम तो खूब चैन करले होगे।" यह कह नकली चोरदार (तेजसिंह) के हाथ से तम्बाकू ले लिया और खूब डबल जमा कर तेजसिह के सामने लाए। तेजसिंह ने कहा. "तुम लोग सुलगाओ, फिर मैं भी ले लूंगा।" अब हुक्का मुडगुड़ाने लगा और साथ ही गप्पं भी उड़ने लगी। . थोड़ी ही देर में अब चोयदार और प्यादों का सर घूमने लगा, यहाँ तक कि झुकते झुकतं सब औधे होकर गिर पड़े और बेहोश हो गये। अब क्या था. बड़ी आसानी से तेजसिंह फाटक के अन्दर घुस गये और नजरबाग में पहुंचे। देखा कि हाथ में रोशनी लिए सामने से एक लौड़ी चली आ रही है। तेजसिंह ने फुर्ती से पास जाकर उसके गले में कमन्द डाली और ऐसा झटका दिया कि वह चूं तक न कर सकी और जमीन पर गिर पड़ी। तुरंत उसे बेहोशी की बुकनी सुंघाई और जब बेहोश हो गई तो उसे वहाँ से उठाकर किनारे ले गये। बटुए में से सामान निकाल मोमबत्ती जलाई और सामने आईना रस अपनी सूरत बनाई. इसके बाद उसको वहीं छोड़ उसी का कपड़ा पहिन महल की तरफ रवाना हुए और वहाँ पहुंचे. जहाँ चन्दकान्ता. चपला और चम्पा दस पाँच लौडियों केसाथ बैठी बातें कर रही थीं। लौडी की सूरत बने हुए तेजसिंह भी एक किनारे जाकर बैठ गये। तेजसिंह को देख चपला बोली, "क्यों केतकी. जिस काम के लिए मैने तुझको भेजा था क्या वह काम तू कर आई जो चुपचाप आकर बैठ रही है?" चपला की बात सुन तेजसिंह को मालूम हो गया कि जिस लौडी को मैंने बेहोश किया है या जिसकी सूरत बन कर आया हूं उसका नाम केतकी है। नकली केतकी-हाँ, काम करने तो गई थी मगर रास्ते में एक नया तमाशा देख तुमसे कुछ कहने के लिए लौट आई . चपला-ऐसा ! अच्छा तैने क्या देखा कह ? नकली केतकी-सभों को हटा दो तो तुम्हारे और राजकुमारी के सामने बात कह सुनाऊं। सब लोड़ियाँ हट गईं और केवल चन्द्रकान्ता, चपला और चम्पा रह गईं। अब केतकी ने हँस कर कहा."कुछ इनाम दो तो खुशखबरी सुनाऊँ।" चन्द्रकान्ता ने समझा कि शायद यह कुछ बीरेन्द्रसिंह की खबर लाई है, मगर फिर यह भी सोचा कि मैने तो आज तक कभी बीरेन्द्रसिंह का नाम भी इसके सामने नहीं लिया तय यह क्या मामला है ? कौन सी खुशखबरी है जिसके सुनाने के लिए यह पहिले ही से इनाम मांगती है ? आखिर चन्द्रकान्ता ने केतकी से कहा." हाँ हाँ इनाम दूंगी, तू कह तो : सही क्या खुशखबरी लाई है?" केतकी ने कहा, " पहिले दे दो तो कहूँ नहीं तो जाती हूँ !" यह कह उठकर खड़ी हो गई। चन्द्रकान्ता भाग १