पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/२८०

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सोचता था कि इन चारों को ग्वालियर के मजबूत किले में कैद कर दे जिसमें वादशाही खानदान के लोग प्राय कैद रहा करते थे और जिसका फतह करना या जिसमें से निकल भागना पडा ही कठिन था। मगर वे चारों लड़के तरह तरह की चालबाजियों के कारण एसे जबर्दस्त हो गये थे कि उनके साथ ऐसा सलूक करना बड़ा ही कठिन था। अस्तु उसे यह निश्चय हा गया था कि ये चारों एक न एक दिन आपुस में लड़ कर या तो अपनी बादशाही अलग कर लेंगे या इसी सल्तनत में खून की नदी बहा कर रेआया को बर्बाद करने के साथ ही साथ अपनी किस्मतों का भी फैसला कर लेंगे। ऐसी ऐसी बहुत सी बातों का साच विचार कर उसने निश्चय कर लिया कि इन चारों को अलग अलग हुकूमत देकर एक को दूसरे से दूर कर दिया जाय अस्तु उसने सुलतान शुजा को बङ्गाला, औरगजेव को दखन मुरादबक्श को गुजरात और दाराशिकोह को मुलतान और काबुल का हाकिम मुकर्रर कर दिया। दाराशिकोह के सिवाय तीनों लड़के अपनी-अपनी हुकूमत पर चले गये और मनमानती कार्रवाइया करने लगे। थोड ही दिन में तरहतरह के बहाने बना कर तीनो ने वडी-वडी फोर्जे इकट्ठी कर ली और एक दूसरे की फिक्र में पड़े मगर दाराशिकोह ने जो सबसे बड़ा था और इसी लिये अपन को तख्त का मालिक समझता था आगर को न छोडा हरदम बादशाह के साथ रहने लगा। अब हमका यह दिखाना चाहिये कि शाहजहा से अलग होकर औरगजेब ने क्या किया और किस तरह वहाना करके बादशाह के जीत जी उसने आगरे पर चढाई करदी जिसके सबब से आज हमारे इस उपन्यास के नायक उदयसिह को उसके सामने होने की तकलीफ उठानी पडी। जय औरगजेय अपनी हुकूमत पर दक्षिण चला गया ता पहा उत ने भीर जुमला 'ऐसे धूर्त और चालाक आदमी के साथ चालवाजी और ऐयारी का ढग लगाया। सच तो यो है कि 'भीर जुलमा ही की बदौलत औरगजेब का सितारा चमक उठा। औरगजव की अमलदारी दक्खिन में गोलकुण्डा नाम का एक स्थान था जो आजकल हैदराबाद के अन्तगत है और जहा के हीरे को खान प्रसिद्ध है। मीरजुमला नाभी एक शख्स उसी गालकुण्डा के बादशह अब्दुल्लाइ कुतुबशाह का वजीर और उसकी कुल फौज का सिपहसालार (सेनापति था। वह अपनी बुद्धिमानी चालाकी और होशियारी के सयब तमाम हिन्दोस्तान में मशहूर था । यद्यपि वह खानदानी अमीर न था मगर उसने अपने हाथों ही अपने को इज्जतदार रोआवदार और बहुत बड़ा अमीर बना लिया था। वह जैसा सिपहगिरी में होशियार था वैसा ही रोजगार और सौदागरी धधे को भी अच्छी तरह समझता था। उसने केवल वजीर बन कर इतनी दौलत इकट्ठी नहीं की थी बल्कि सौदागरो और हीरे की खानों की बदौलत जो दूसरों के नाम से ठीके ले रख थीं इकट्ठी की थी। उन खानो में से हीरे इतने ज्यादा निकलते थे कि उसके यहा उन हीरों के गिनने या तौलने का कोई कायदाही न था वल्क हीरों से भरी हुई टाट की थैलिया गिनवा ली जाती थीं। बादशाही फौज के अतिरिक्त उसने एक अपनी फौज भी तैयार कर ली थी जिसमें एक तोपखाना भी शामिल था और जिसमें प्राय ईसाई लोग नौकर थे। इसी से समझ लेना चाहिए कि उसने चारो तरफ अपना कैसा रोव-दाब बढा रक्खा होगा। उसने मुल्क कर्नाटक के फतह का वहा कर हिन्दुओं के बडबडे मदिरों और तीर्थ स्थानों का लूट के वर्याद कर दिया था और इस तीच से भी उसने अपनी दौलत हद्द से ज्याद बढ़ा ली थी। मीरजुमला की ऐसी ताकत और दौलत देखकर खुद उसके मालिक अथात् शाह गोलकुण्डा को डाह होने लगा इसके अतिरिक्त और भी कई बातों को सोचकर उसने दिल में निश्चय कर लिया कि 'किसी न किसी तरह मीरजुमला का मार डालना चाहिए । यद्यपि वह इस भेद को अपने दिल के अन्दर छिपाए हुए था मगर इतिफाक से एक मौके पर केवल मुसाहचों के सामने उसके मुंह से निकल पड़ा कि इस जबर्दस्त को उठा देना ही उचित है । उस समय यद्यपि मीरजुमला कर्नाटक दश में था मगर बहुत जल्द ही उसे इस बात की खबर लग गई क्योंकि दर्यार में विशेष करके उसी के नातेदार लोग भरे हुए थे। मीरजुमला ने उसी समय अपने लडके महम्मद अमीनखा को जो बादशाह के यहा हाजिर था, एक पत्र लिखा कि जिस बहाने से हो सके तुम तुरन्त मेरे पास चले आओ। परन्तु बादशाह की कडी हिफाजत में पड़ जाने के कारण वह निकल कर अपने बाप के पास न जा सका। उस समय गुस्से में आकर मीरजुमला ने ऐती कारवाई की कि जिससे गोलकुण्डा एक तौर पर बर्बाद ही हो गया अर्थात उसने (मीरजुमला ने ) एक चीठी औरगजेव का जो उस समय दौलताबाद *में था इस मजमून की लिखी- 'तमाम जमाना जानता है कि मैंने रियासत गोलकुण्डा के साथ कैसी भलाई की है जिसके बदले में बादशाह को असल में इसका नाम देवगढ़ है। राजा भोज के जमाने में इसी का नाम धारानगरी था। मुहम्मदशाह तुगलक ने जो सन् ७२९ हिजरी में हिन्दोस्तान का बादशाह बना था इसको फतह करके इसका नाम दौलताबाद रक्खा था। इसी के पास गोदावरी के किनारे औरगजेब ने औरगाबाद बसाया था जहा इस समय रेयासत हैदराबाद की तरफ से केवल एक ताल्लुकेदार रहता है। +'दौलताबाद देयकीनन्दन खत्री समग्र १२८२