पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/२८१

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Us मरा अहसानमन्द होना चाहिये था मगर वह मेरी और मेरे खान्दान की वर्षादी के लिए तैयार हो रहा है, इसलिए मै अपने को बचाने के लिए आपके हजूर में हाजिर हुआ चाहता हूँ और इस अर्जी को कबूल करने के शुकराने में एक मन्सूचा अर्ज करता हूँ जिस के जरिये से आप सहज ही में उस बादशाह को गिरफ्तार करके उसके मुल्क पर कब्जा कर सकेंगे। मेरी इस प्रतिज्ञा पर आप विश्वास और भरोसा करें। इस काम में किसी तरह की कठिनाई या जोखिम का खयाल नहीं हो सकता। वह सलाह यह है कि आप केवल पाच हजार चुने हुए सवारों को साथ लेकर शीघ ही गोलकुण्डा की तरफ चले आ जिसमें केवल सोलह दिन लगेंगे. और यह मशहूर कर दें कि बादशाह शाहजहा का एलची शाह गोलकुण्डा से कुछ जरूरी मामले में बातचीत करने के लिय भाग नगर *(हैदराबाद) जाता है और यह फौज उसकी अर्दली में है । शाह गोलकुण्डा के यहॉ ऐसे मामलों की खबर करने के लिए जो आदमी मुकर्रर है वह मेरा नातेदार है और उस पर मुझ पूरा नरासा है। वह इस मामले की खबर ऐसे ढग से करेगा कि वादशाह को किसी तरह का शक न होगा और आप बेखटक भागनगर के फाटक पर पहुच जायँगे उस समय नियमानुसार जब वह आपका इस्तकबाल (अगुवानी) करने के लिये बाहर आवेगा तब आप उसको सहज ही में गिरफ्तार कर लेंगे इसके अतिरिक्त आपकी इस चढाई का कुल खर्चा मैं अपने पास स दूंगा और इस काम के पूरा होने तक ५० हजार रूपये रोज देता रहूँगा। इस चीठी को पढ़कर औरङगजेब बहुत खुश हुआ वह रोज ऐसी ही बातों के सोच विचार में पड़ा रहता था इस समय तो मानों उसके मन की हुई। उसने मीरजुमला की दरखास्त कबूल कर ली और तुरन्त हर तरह का वन्दोवस्तकरके गोलकुण्डा की तरफ रवाना हो गया। मीरजुमला की बदौलत यह काम ऐसी खूबी और होशियारी के साथ किया गया कि किसी को किसी तरह का शक न हुआ और जेव बिना रोक-टोक के भागनगर पहुच गया। यादशाह शाहजहाँ के भजे हुए एलची की अगवानी का जो नियम था उसी नियमानुसार शाह गोलकुण्डा पालकी पर सवार होकर अगवानी के लिये अपने वाग की तरफ रवाने हुआ और उस जगह पहुचा ही चाहता था जहा उसके गिरफ्तार कर लने का पूरा-पूरा बन्दोबस्त था कि यकायक एक सर्दार को जो इस भेद को जानता था और मीरजुमला से मिला हुआ था उस पर रहम आया और उसने जोर से चिल्लाकर कह दिया कि जहापनाह झटपट निकल जाइये नहीं तो आप फॅस जायेंगे यह बादशाह का एलची नहीं है बल्कि खुद औरडगजेब है। - उस सरदार की बात सुनकर शाह गालकुण्डा कैसा हैरान और बदहवास हुआ होगा इसका कहना कठिन है अस्तु वह तुरन्त घोडे पर सवार होकर गालकुण्डा की तरफ जो हैदराबाद से केवल तीन कोस है,भाग निकला और गोलकुण्डा क किले में जा पहुचा। औरङ्गजेब ने जब देखा कि शिकार उसक हाथ से निकल गया तो निराश होकर कुछ देर तक तो सोचता रहा। इसके बाद तुरन्त ही उसका खयाल बदल गया और उसने सोचा कि अब डरने का मौका नहीं है बिना कुछ साचे विचारे उसके गिरफ्तार करन की कार्रवाई जारी रखनी चाहिये, अस्तु उसने पहले यह काम किया कि भागनगर (हैदराबाद) के बादशाही महलों का लूट लिया और सब बेशकीमत चीजों और असवावों तथा उम्दा-उम्दा किताबों को लूटकर उन पर अपना कब्जा कर लिया, लेकिन महल की औरतों को बादशाही नियम के अनुसार बडी हिफाजत के साथ बादशाह शाहजहाँ के पास भेज दिया! यद्यपि उस समय औरङ्गजेर के पास तोपें न थीं मगर इससे वह हताश न हुआ बल्कि उसने निश्चय कर लिया कि किले को घेर कर लडाई शुरू कर देनी चाहिए। ऐसी अवस्था में किले में रसद न पहुचने के कारण यादशाह को किले को बचा लेना मुश्किल होगा । आखिर ऐसा ही हुआ पर किला घेर लेने के दो महीने बाद बादशाह शाहजहाँ की तरफ से यह हुक्म औरगजव के पास पहुँचा कि इस लडाई से हाथ उठाकर तुरन्त दक्षिण की तरफ लौट जाओ। यद्यपि औरगजेब इस बात को समझ गया कि यह हुक्मनामा दाराशिकोह और बेगम साहबा के बहकाने से लिखा गया है (क्योंकि दूरदर्शी दाराशिकोह को इस बात का खयाल था कि अगर औरगजेब गोलकुण्डा को फतह कर लेगा तो उसकी ताकत बहुत बढ़ जायेगी) परन्तु इस समय उसने बादशाह का हुक्म टालना उचित न समझा और बहुत चिढ जाने पर भी उसने फरमाबरदारी दिखाने के लिये यही जाहिर किया कि वह पिता की आज्ञा के विरुद्ध कोई काम करना नहीं चाहता और किले का मुहासरा उठा लिया मगर साथ ही इसके अपनी चढ़ाई का कुल खर्च और हरजाना बादशाह गोलकुण्डा से वसूल कर लिया और यह एकरारनामा लिखा कि-(१)"मीरजुमला को बाल यच्चे माल असवाय और फौज समेत अपने शहर से निकल जाने देगा और किसी तरह की रोक-टोक न करेगा। (२) गोलकुण्डा के रुपये पर शाहजहा क नाम का सिक्का लगा करे। इसक अतिरिक्त बादशाह की बड़ी बेटी से अपने लडके मुहम्मद सुल्तान की शादी कर ली और दहेज में रामगढ़ का किला भी ले लिया । औरङगजेय इन सब कामों से छुटटी पाकर मीरजुनला को साथ लिये हुए दक्खिन की तरफ लौटा मगर रास्ते में

  • हैदराबाद का नाम पहिले भागनगर या सुलतान मुहम्मद अली कुतुबशाह ने ( जिसके यहा नाचने-गाने के लिए

एक हजार रडिया नौकर थीं इस सन ९५० हिजरी से कुछ पहिले उन्हीं रडियों में से अपनी एक प्यारी रडी भागवती के नाम पर बसाया था मगर कुछ दिन बाद जब उसे शर्म आई तो बदल कर हैदराबाद नाम रख दिया इस समय भी गोलकुण्डा हैदराबाद में शरीक है। गुप्तगोदना १२८३