पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/२८२

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दि उसने मीरजुमला की राय से 'बेदर के किले को जो बीजापूर के इलाके में एक मजबूत जगह है. घेर कर फतह कर लिया और इसके बाद वे दोनों ( औरङ्गजेब और मीरजुमला) दौलताबाद (धारानगरी) में पहुचकर बडी मुहब्बत के साथ रहने और अपनी हकूमत चलाने तथा ताकत बढाने का बन्दोबस्त करने लगे। भारतवर्ष के इतिहास में इन दोनों की मोहब्बत को एक अनूठी घटना समझना चाहिये क्योंकि औरडजेब को नामवरी, इज्जत, ताकत और सल्तनत वगैरह जो कुछ मिली सब इसी मोहब्बत का नतीजा था मगर साथ ही इसके यह भी समझ रखना चाहिये कि इतना हो जाने पर भी औरडजेब और मीरजुमला गुप्त रीति पर अपनी-अपनी धूर्तता से बाज न रहे। दौलताबाद पहुचने पर मीरजुमला ने ऐसे मनसूबे दौडाये और ऐसी तीचे की कि बादशाह शाहजहाँ की तरफ से उसके हाजिर होने के लिये बराबर पैगाम आने लगे यहाँ तक कि वह बादशाह के पास आगरे में जा पहुचा और बडे बडे वेशकीमती हीरे नजर देकर कुछ दिन रहने के बाद बादशाह गोलकुण्डा के फतह के फायदे दिखाये और अर्ज किया कि ‘कन्धार के पत्थर और चट्टानों की बनिस्बत, जिस पर हुजूर आजकल चढाई करना चाहते हैं गोलकुण्डा के जवाहिरात बडे ही बेशकीमत और ध्यान देने योग्य है अस्तु हुजूर को गोलकुण्डा पर चढाई की तदवीरें तब तक जारी रखनी चाहिये जब तक तमाम मुल्क रासकुमारी तक न फतह हो जाय । ऐसी-ऐसी चिकनी-चुपडी बातें करके मीरजुमला ने बादशाह का दिल अपने हाथ में कर लिया। यहाँ तक कि शाहजहाँ ने उसकी सलाह मान ली और हुक्म दे दिया कि नई फौज भरती करके भीरजुमला की मातहती में दक्खिन ( गोलकुण्डा ) की तरफ रवाना की जाय अर्थात् इस काम के लिए मीरजुमला को तैनात किया। इन दिनों बादशाह (शाहजहाँ) का दिन दाराशिकोह की बेअदवियों के सबब डर और रज में गुजरता था और वह दाराशिकोह से नाराज था क्योंकि दाराशिकोह खुदमुख्तार बन जाने के लिए तरह-तरह की कोशिशें कर रहा था और कई काम उसने खुल्लमखुल्ला ऐसे किये जिससे सभों को इस बात का विश्वास हो गया बल्कि एक काम तो उसने ऐसा किया कि कुल दर्बारियों को उससे खौफ और बादशाह को उससे नफरत हो गई अर्थात् उसने शाद अलाहखा को जिसे शाहजहा तमाम मुल्क एशिया में बड़ा बुद्धिमान और सुयोग्य वजीर समझता था और जिससे बादशाह को हद्द दरजे की मोहब्बत थी मरवा डाला। न मालूम वह कौन सा जुर्म था जिससे दाराशिकोह ने इसे इस योग्य समझा। लोगों का खयाल है कि दाराशिकोह को उससे इस बात का खटका था कि कहीं बादशाह के मरने के बाद वह मुझसे नाराज होकर मेरे किसी दूसरे भाई को तख्त पर न बैठा दे, क्योंकि सब कोई उसकी कदर करते हैं और वह इस काम को सहज ही में कर सकता है। अस्तु कुछ तो दाराशिकोह की बेअदबियों को रोकने की नीयत से और कुछ हीरों की लालच में पड़ कर बादशाह ने यह हुक्म दिया। मगर दाराशिकोह को यह बात बुरी मालूम हुई क्योंकि वह जानता था कि इस फौज से औरङ्गजेब की ताकत और हिम्मत बढ़ जाएगी। अस्तु उसने इस मामले में बहुत हुज्जत की और बादशाह को इस कार्रवाई से रोकना चाहा मगर जब देखा कि बादशाह उसके रोकने से न रुकेगा तब समझा-बुझाकर नीचे लिखी शर्त तै कराई गई - (१) यह कि इस लड़ाई में औरगजेब कुछ दखल न दे। (२) यह कि औरगजेब दौलताबाद ही में बना रहे वहा से हिले नहीं। (३) यह कि जो मुल्क औरङ्गजेब को दिया गया है वह उसी का इन्तजाम करे इस फौज या फतह से उसे कुछ सरोकार न रहे। (४) यह फौज केवल मीरजुमला के मातहत और कब्जे में रहे मगर मीरजुमला अपनी नेकनीयती की जमानत में अपने लडके-बालों को यहां छोड जाय। चौथी शर्त मीरजुमला को बहुत बुरी मालूम हुई मगर बादशाह ने उसे समझा-बुझा कर राजी कर लिया और कहा कि हम तुम्हारे बालबच्चों को तुम्हारे पास भेजवा देंगे। आखिर मीरजुमला इस बहुत बडी फौज को लेकर दक्खिन की तरफ रवाना हो गया और दौडादौड़ बीजापूर के मुल्क में पहुच कर कल्यानी को घेर लिया जो एक मशहूर और मजबूत जगह है इस समय में जब कि बादशाही हुकूमत का यह रग ढग था, शाहजहा की उम्र सत्तर वर्ष से ऊपर की हो चुकी थी यकायक वह ऐसा बीमार हो गया कि लोगों के खयाल में उसका बचना मुश्किल मालूम होता था। इसी खयाल से देहली (दिल्ली) और आगरे में तहलका पड गया और लोगों के दिल में तरह-तरह के खयालात पैदा होने लगे। इधर दाराशिकोह ने बहुत बड़ी और जबर्दस्त फौज जमा की। उधर बगाले में शुजा ने लडाई की तैयारियां शुरू कर दी। दक्खिन और गुजरात में औरगजेब और मुरादबख्श लडाई की तैयारी करने लगे और ऐसी फौजें भरती की जिनसे उनका इरादा साफ मालूम होता था। मतलब यह कि शाहजहाँ के लड़कों ने आगरे पर चढाई करने का बन्दोबस्त कर लिया और अपने दोस्त और मददगारों को बुलाकर इकट्ठा करने और छिपे-छिपे रिश्वत देने लेने का भी बन्दोबस्त करने लगे और तरह-तरह की चालबाजिया होने लगी। यद्यपि दाराशिकोह ने अपने भाइयों के पत्र पकड़ कर बादशाह (शाहजहाँ) को दिखाये और उनकी बदनीयती की शिकायत की मगर उसने कुछ न सुना क्योंकि बादशाह का दिल दाराशिकोह से फिर चुका था और दाराशिकोह पर उसे देवकीनन्दन खत्री समग्र १२८४