पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/२८३

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कुछ भी एतबार न था। बल्कि बादशाह समझता था कि दाराशिकोह उसे जहर दिलवा देने की फिक्र में है इसी ख्याल से वह खाने पीने का भी बहुत खयाल रखता था। इसी बीच में बादशाह की बीमारी इतनी बढ़ गई कि चारो तरफ उसक मरने की खबर फैल गई और तमाम दर्बार में अवतरी छा गई। आगरा निवासियों को यहाँ तक डर हो गया कि कई दिनों तक तमाम बाजार में हडताल रही और चारों शाहजादे भी मनमानती कार्यवाई करने लगे और साफ साफ कह दिया कि अब इस मामले का फैसला तलवार ही से होगा और वास्तव में व अपने इस लडाई के इरादे को तोड़ नहीं सकते थे क्योंकि फतह पाने पर आगरे के तख्त पर बैठने की आशा थी और हारने अथवा लडाई से मुँह फर लेने की अवस्था में जान जाने का खौफ था। जिस तरह खुद शाहजहाँ अपने भाइयों के खून से हाथ रग कर तख्त पर बैठा था उसी तरह आज उसके सामने ही उसके लडके अपने भाइयों को मार तख्त पर पैठन का बन्दाबस्त करने लग। सबके पहिल शुजाउद्दौला ( सुलतान शुजा ) न जो बहुत से राजों को वर्वाद करके मालामाल हो गया था फौज जमा करक बडी तेजी के साथ आगरे की तरफ चढाई कर दी और यह इश्तहार दे दिया कि दाराशिकोह ने बादशाह (शाहजहाँ) को जहर देकर मार डाला है इसलिये हम इस खून का बदला उसस जरूर लेंगे और आगरे के तख्त पर जो इस समय खाली पड़ा हुआ है बैठ कर हुकूमत करेंगे। यद्यपि खुद बादशाह ने इस इश्तहार का जवाब दिया और उसको साफ साफ लिखा कि में जीता जागता हू बल्कि मरी बीमारी कुछ कुछ आराम हो रही है अस्तु तुम्हें हुक्म दिया जाता है कि फौरन अपने सूर्य की तरफ लौट जाओ। मगर इसका नतीजा कुछ भी न निकला क्योंकि शुजा के दोस्त लाग बरावर खबर दे रहे थे कि अब बादशाह की बीमारी आराम हाने लायक नहीं है और उनका बचना असम्भव है । अस्तु उसन यह हीला किया कि अगर मेरा बाप जीता है तो मैं एक दफे उसका दशन करके अपने सूब की तरफ लौट जाऊँगा । इसी तरह औरडगजेब ने भी वेस ही हील वहान करक आगरे की तरफ कूच किया। यद्यपि इसकी आमदनी बहुत कम थी और इसकी फोज में कुल तीस हजार सवार थे मगर हिम्मत में किसी तरह की कमी न थी। साथ ही इसके अपनी ताकत बढा लन का खयाल इसे ज्याद था इस लिएमुरादबख्श और मीरजुमला की तरफ इसका ध्यान गया और इसने चाहा कि किसी तरह इन दोनों को अपना साथी बनाये आखिर औरगजब ने एक चीठी अपने छोटे भाई मुरादबख्शके पास भजी जिसका मतलब यह था- प्यारे भाई तुम खुद जानते हो कि मरी तबीयत किस तरह की है और मै हुकूमत की मेहनत को कैसा बुरा समझता हूँ। आज जब कि दाराशिकोह और शुजा बादशाही पाने के लिए जोर मार रहे है मेरी जान को फकीराना ढग पर रहने ही की फिक्र पड़ी हुई है। यद्यपि बादशाही हुकूमत और दौलत की तरफ मेरा ध्यान नहीं जाता तथापि मैं अपने प्यारे माई, तुम) को राय दन से बाज नहीं रह सकता और एसा करना उचित समझता हू। दाराशिकोह वादशाही करने लायक नहीं है और उसने अपना मजहब भी छोड दिया है सल्तनत क बडे बडे उमरा लोग भी उससे रज रहते है। इसी तरह शुजा में भी हुकूमत करने की अक्ल नहीं है और अधर्मी होने के साथ ही साथ हिन्दोस्तान का दुश्मन भी है। ऐसी अवस्था में इतने बडे हिन्दोस्तान की हुकूमत करने के लायक केवल आप ही है। वहाँ ( आगरे) के बडेबडे उमरा भी यही कह रहे हैं और आपके आने का इन्तजार करते है। मरे लिए आपको किसी तरह की फिक्र न करनी चाहिए। अगर आप इतना ही मुझसे करें कि जब आप वादशाह हा जायगे तो मुझ अपने मुल्क में कोई एकान्त स्थान ईश्वर का ध्यान करने के लिये दंग क्यों कि मैं फकीरी को बहुत पसन्द करता हूँ, तो इस काम में हर तरह से आपकी मदद करने के लिए तैयार हूँ, । अपने दोस्तों से भी मदद ले सकता हू और अपनी तमाम फौज भी आपके हवाले कर सकता है। इस समय एक लाख रुपये बतौर नजर के आपके पास भेजता हू जिसे आप कबूल कीजिये और इस मौके को गनीमत समझकर जल्दी के साथ 'सूरत के किले पर कब्जा कर लीजिये। मुझे खूब मालूम है कि वहाँ बहुत से बादशाही खजाने गडे हैं जो इस समय आपके काम आग। भाई की चीटी पाकर मुरादबख्शबहुत ही खुश हुआ और बहादुरों तथा सौदागरों का (जिनसे कर्ज लेने की उम्मीद थी) खुश करके अपना साथी बनाने के लिए वह चीटी दिखाई और कई तरह की तीये करके उसने बहुत जल्द अपनी ताकत बढा ली और सूरत पर चढाई कर दी। जव मुरादयख्श की तरफ से दिलजमई हो गई तब औरगजेब ने अपने बड़े बेटे मुहम्मद सुलतान को मीरजुमला के पास भेजा और कहलाया कि एक बडा ही जरूरी काम है। मेहरबानी करके आप फौरन चले आयें और मुझसे मिलकर चल जाय ।मगर मीरजुमला तो बडा ही चालाक आदमी था वह असल मतलय को समझ गया ओर आने से इनकार करके कहला भेजा कि कल्यानी की लडाई छाडकर इस वक्त मेरा फौज स बाहर होना अच्छा नहीं है आप विश्वास करें कि यादशाह (शाहजहा) अभी जीते है अभी हाल ही में मरा आदमी ताजी खबर लेकर आया है इसके अतिरिक्त जब गुप्तगोदना १२८५