पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/२८५

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eri रुपये की कुछ कमी नहीं है जहा तक जल्दी हो सके आगरे की तरफ कूच कर दो और मुझसे मिलन के लिये कोई ठिकाना मुकर्रर करके लिखो तो मैं भी उसी जगह तुम्हारी फौज स आ मिलू । मुरादबख्श का शहबाज नामी एक खाजसरा था। इसने इन सब बातों को देखकर मुरादबख्श को बहुत समझाया और बराबर समझाता रहा कि आप अपने नेमाजी भाई साहब की बातों में न पडिय और इनके फेर में आकर धोखान खाइये। ऐसा ही जी चाहे तो उन्हें चिकनी चुपडी बातों में फसा रखिये और अकेल उन्हीं को आगरे की तरफ बढ़ने दीजिये, आपका उनकी फौज में मिल जाना अच्छा न होगा इत्यादि ! मगर इसका नतीजा कुछ भी न हुआ क्योंकि बादशाह बन जाने के शौक में मुरादवख्श अन्धा हो रहा था और उसके भाई साहब का जादू उसपर चल चुका था खत पर खत आ रहे थे और सब्जबाग आखों के आग नाच रहा था। आखिर इसका नतीजा इसके लिए अच्छा न हुआ, जैसा कि आग चलकर मालूम होगा। आखिर मुरादबख्श ने अपने मिलने का पता औरगजेब को लिखकर आगरे की तरफ कूच कर दिया और थोड ही दिनों में वहा जा पहुचा जहा औरगजब टिका हुआ उसका इन्तजार कर रहा था। मुलाकात होने पर औरगजेब ने मुरादबख्श की बडी खातिर की और उसको फंसाने के लिए बहुत ही खूबसूरत जाल फैलाया जिसका खुलासा हाल इतिहासों के देखने से मालूम हो सकता है। हम इस छोटे से किस्से में लिखना उचित नहीं समझते। इसी तरह कूच दर कूच करता हुआ औरगजेब उज्जैन में आ पहुंचा था और इसी औरगजेब से हमारे उदयसिह को वास्ता था। अब हम भी इस बयान को यहा खतम करके अपने उदयसिह का हाल लिखते हैं। पन्द्रहवां बयान जब भरथसिह को मालूम हो गया कि फौजी सिपाहियों ने उसका खेमा घेर लिया है तब वह एक दफे तो घबराया सा होकर सोचने लगा कि अब क्या करना चाहिये मगर तुरन्त ही कुछ ख्याल आजाने के कारण उसने चैतन्य होकर सिर उठाया और उदयसिह की तरफ देख कर वाला कोई चिन्ता नहीं भरथसिह क साथ दुश्मनी करना कोई मामूली बात नहीं मेिर मातहत में जितने सिपाही है व अपने को औरगजेब का नोकर नहीं समझते बल्कि अपने को मेरा नौकर समझते है। अस्तु अब तुम अपना नाम मत छिपाओ और रामसिह के नाम को भी मत छोडा। जो कुछ मै कहता हू, तुम उसी ढग पर काम करो। फिर देखो तो सही कि ईश्वर क्या करता है। भरथसिह ने कुछ देर तक उदयसिह और रविदत्त को समझाया और चीठी लिखकर रविदत्त के हाथ में देने के बाद रविदत्त को तो उसी खेमे में छोड़ा और खुद उदयसिह का हाथ पकड हुए खेमे के बाहर निकला और लापरवाही की चाल चलता हुआ औरगजेब के खेमें की तरफ रवाना हुआ। साथ में वह चोरदार भी था। जब य दोनों आदमी उस खेमे के दर्याजे पर पहुचे तो इत्तिला होने पर खेमे के अन्दर बुलाए गए। उदयसिह ने इस खेमे को वैसा सजा हुआ न पाया जैसा वादशाहो या शाहजादों के लिए होना चाहिए और न उदयसिह को यह देखकर ताज्जुब ही हुआ कि साफ-सुथरा फर्श विछा रहने पर भी ऊपर से एक-फूस की चटाई बिछा कर उस पर हाथ में तस्वीह (माला) लिए औरगजेब बैठा हुआ है क्योंकि यह औरगजेब की चालाकी का हाल खूब जानता था। दोनों ने झुक कर औरगजब को सलाम किया । औरड्ग - ( भरथसिह से) भरथसिह 'तुम ताज्जुब करोगे कि मैंने इस वक्त तुम्हें क्यों याद किया? भरथ - (हाथ जोड के ) हुजूर मुझे तो इस बात का कोई ताज्जुब नहीं है क्योंकि लडाई का जमाना है और हमलोग हर वक्त चौकन्ने रहते हैं और रहना ही चाहिए। यह कोई नहीं कह सकता कि किस वक्त कैसा काम आ पडेगा या कैसी खबर सुनने में आदगी । औरग-ठीक है। भरथ - इसके अलावा मैं खुशखबरी के साथ एक शिकायत लेकर खुद हाजिर होने वाला था। औरग - वह क्या ? और यह तुम्हारे साथ कौन है ? भरथ - वह खुशखबरी या शिकायत जो मैं अर्ज करूगा इन्हीं के बारे में है। औरग-(अपने तस्वीह वाले हाथ से बैठने का इशारा करके ) बैठ जाओ और कहो कि क्या मामला है। इस समय कम से कम पचास आदमी नगी तलवारे लिए हुए खेमे के अन्दर निगहबानी के लिए खड़े थे जिनमें से दस तो ऐसे जरूर होंगे जो भरथसिह को इज्जत के साथ प्यार करते थे। हुक्म के मुताबिक ये दोनों आदमी बैठ गए और इस तरह पर बातचीत होने लगी- मरथ-(उदयसिह की तरफ इशारा करके ) आप जानते ही होंगे कि इनके पिता सुजानसिह बादशाह सलामत (शाहजहाँ ) के बहुत बड़े खैरखाह हैं ! औरग - बेशक बेशक मै खूब जानता है । तो क्या ये उदयसिह है ? भरथ-जी हा। ) गुप्तगोदना १२८७