पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/२८९

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इतना कहते-कहते न मालूम क्या सोच कर रुक गई और गुस्से स फडकते हुए होंठों को दबा कर चुप ही रही। लौडी ने फिर कहा- लोडी-खैर जो जी में आवे कहा और करो मुझ कुछ कहन-सुनन का हक तो है नहीं मग आपस एक तरह की मुहब्बत हो गई है इसलिए कभी-कभी कुछ कहे या समझाए बिना जी नहीं मानता । दूसरी लौडी-बीबी नम्पलूम इनका खयाल कैसा है और क्या साचती हैं मर तो कुछ समझ ही में नही आता य जान चुकी हैं कि हमारे हूजूर कैसे जिद्दी और अपने इरादे के पक्के हैं। जिस समय इन्हें बुला भेजेंगे झक मार के जाना ही पडगा और कुछ करते वन न पडेगा । फिर जो काम हा ही नहीं सकता उसक लिए रोना काहे का ? कुन्द - (गुस्स में आकर) दुनिया में ऐसा कौन सा काम है जो आदमी के लिए नहीं हो सकता। धीरज धरना ओर ईश्वर पर भरासा रखना चाहिय। तुम लोग साचती हावोगी कि इस खेम के चारो तरफ सैकड़ों मागल पहरा दे रहे हैं और हम लोग भी कटार लगाए हरदम घर रहती हे एसी अवस्था में कुन्द यहाँ स जान बचाकर नहीं निकल जा सकती है। मगर यह सब तुम्हारा भ्रम है हमारा ईश्वर हजार हाथ से हमारी रक्षा करगा और किसी न किसी को हमारी मदद के लिए भज ही देगा। लाँडी -- ( मुस्कुरा कर ) खैर हम लोगों को इस वहस से क्या मतलब? जो कुछ होगा दखा जायेगा। इसके जवाब में दूसरी लौंडी भी कुछ बाला ही चाहती थी कि खेमे क बाहर से कुछ खडखडाहट की आहट मालूम 'हुई और साथ ही इसके धरधरी पकडो-पकडो की आवाज भी सुनाई देने लगी। बात की बात में अन्दर वालों को निश्चय हागया कि उस खेमे पर डाका पडा और वास्तव में बात भी ऐसी ही थी। इस खेमे की हिफाजल पर डढ सौभागल तैयार थे जिनपर इस समय यकायक बहुत से आदमी आ टूटे और बतरह मारने लगा। मोगलों ने बर्ड जोर के साथ उनका मुकाबला किया मगर उनकी हिम्मत और बहादुरी के सामने कुछ भी न कर सके थाडी ही देर में आधे से ज्यादे मारे गए और बाकी के भी हिम्मत हार कर छितर-बितर हो गए। उसी समय दुश्मनों को मारते हुए दस-बारह आदमी खेमे के अन्दर आ घुसे ओर लौडियों क दखत ही दखते एक न कुन्द को गोद में उठा लिया और बाकी साथियों के सहारे बचते बचाते खेमे से क्या बल्कि लश्कर से भी बाहर हो गए। सभों के चेहरे पर स्याह कपडे का नकाब पड़ा हुआ था इसलिए कोई पहिचान न सका कि कौन या किस जाति के आदमी थे जो यकायक इस तरह आ टूटे और अपना काम कर चल गए। लश्कर में इस बात का हल्ला मच गया हजारों फौजी सिपाही वहाँ आ जुट भरथसिह भी बहुत से आदमियों को लेकर वहाँ आ पहुंचा चारों तरफ मशालें रौशन हो गईमगर दुश्मनों का पता न लगा। अन्त में लाशो की जॉच होन लगी जिनमें वीस लाशें गैरों की पाई गई जिन पर राजपूत या क्षत्री होने का गुमान होता था मगर इस बात का पता न चला कि वे किसक साथी या सिपाही थे। भरथसिह बार-बार यही कहता था कि ये राजा जसवन्तसिह के सिपाही है जो दाराशिकोह की तरफ से हमारे मुकावल में आया हुआ है । इस समय रात नाममात्र का वाकी रह गई थी। हो-हल्ला और लाशों की जाच होत-हात सुबह की सुफेदी निकल आई। जिस समय औरडगजेब का यह खवर लगी मारे गुस्से के वह आगबबूला हो गया ओर छूटते ही उसके मुंह से यह निकल पड़ा कि बेशक यह काम उदयसिह का है । • बहुत थाडी दर तक औरडगजेब कुछ साचता रहा। इसके बाद खेमे के बाहर निकल आया। उसने भरथसिंह को तलब किया। जब वह हाजिर हुआ ता दोनों में इस तरह बतचीत होने लगी- औरडग -- (गुस्से में भरा हुआ ) आज तो हमारे सिपाहियों ने बहुत ही बोदापन दिखाया । थोड से आदमी इस तरह लश्कर में घुस आवें और जक देकर जले जायँ, आप लोगों के लिए कुछ न हो । बडे अफसोस की बात है । भरथ-वशक अफसोस की बात है। उन पहरे वालों से यह भी न बन पडा कि मुझ तक खबर तो पहुंचा देते | जब मैं कोलाहल सुन कर वहाँ पहुँचा तब सब काम खतम हो चुका था। औरडग- (सिर हिला फर) जो हो मगर मुझ इस बात का गुमान हाता है कि यह काम उदयसिह का है। भरथ- अगर यह काम उदससिह का हे तो मेर लिए बडे ही आश्चर्य की बात है क्योंकि मुझे उससे एसी उम्मीद नहीं हो सकती। औरड्ग-(जिस तरह तुम्हारा दिल उसकी तरफ से साफ है खुदा कर मेरा दिल भी उसी तरह साफ हो जाय और मैं ऐसा करने की कोशिश करूँगा । ( कुछ सोच कर ) अच्छा जाओ, फिर जैसे होगा देखा जायेगा। भरथसिह स ज्यादे देर तक बात करना औरगजेय ने मुनासिव न समझा क्योंकि इस समय वह कई तरह क तरदुओं में पड़ा हुआ था और इसी सबब से मौका देख कर अपने फौजी अफसर को नाराज भी नहीं किया चाहता था और न किसी को सजा ही दे सकता था क्योंकि दुश्मनों की बेशुमार फौज सामने पड़ी हुई थी और हर वक्त लडाई का ढग बना रहता था ऐसी अवस्था में अपनी फौज में किसी तरह की अबतरी डालना या नाराजी फलाना औरगजेब जैसे चालाक और मतलबी आदमी का काम न था। उसने सिर्फ दो टप्पी बातें करके भरथसिह को विदा किया और अपन खेमे गुप्तगोदना १२९१