पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/२९१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

कुन्द -जी हॉ. मैं बखूबी सवार हो सकती हूँ। उदय - अच्छा हो वैसा ही प्रवन्च कर दिया जायेगा। इस समय मेरे दिल में कई तरह के खुटके पैदा हो रहे हैं इसलिए मैं दो चार बातें तुमसे दरियाफ्त किया चाहता हूँ क्या तुम मेरी बातों का ठीक-ठीक जवाब दोगी? कुन्द -मै मला आप से झूठ क्यों बोलने लगी जिसने इस आफत में मेरी इज्जत बचाई है ? उदय - अच्छा पहिले यह बताओ कि इस औरगजेब के लश्कर में तुम कब से फंसी हुई हो? कुन्द- पाँच या छ दिन से। उदय – इस बीच में खाने-पीने की तरफ से तुम्हारा धर्म क्योंकर बचा होगा? कुन्द-यदि मेरी इच्छा के विरुद्ध खाने-पीने में मेर साथ जबरदस्ती की जाती है तो क्या वास्तव में मेरा धर्म नष्ट हो जाता? मैं तो ऐसा नहीं समझती तथापि मैं ईश्वर को धन्यवाद देती हूँ कि उसकी कृपा से भरथसिंह की बदौलत मेरे धर्म में किसी तरह का धब्बा नहीं लगा, उस महात्मा ने हर तरह से मेरी मदद की। उदय-इसके लिए मैं भी ईश्वर को धन्यवाद देता हूँ। मैने भरथसिंह से सुना था कि तुम मुझे पहिचानती हो और वहाँ कई दफे तुम्हारे मुँह से मेरा नाम निकल चुका था । क्या यह बात सच है ? कुन्द -~जी हॉ. सच है। उदय - (ताज्जुब से ) तुम मुझे क्योंकर पहिचानती हो ? क्योंकि मै तुम्हें बिल्कुल नहीं जानता !! कुन्द-इसका जवाब मैं अभी नहीं दिया चाहती। उदय - अगर ऐसा करोगी तो तुम बड़ा ही अनर्थ करोगी क्योंकि इस बात के जाने बिना मेरा जी बहुत ही बेचैन हो ? कुन्द -(कुछ सोच कर ) अच्छा यह बताइये कि आप शकरसिह जी को जानते हैं? उदय - यद्यपि मैं उनस अच्छी तरह परिचित नहीं हूँ परन्तु उन्हें बखूबी जानता हूँ क्योंकि वे मेरे ससुर होत है। कुन्द - मैने तो सुना था कि आपकी शादी नहीं हुई है फिर वे आपके ससुर क्यों कर हुए उदय - हाँ लोग तो ऐसा ही कहते है और मै भी अभी तक यही समझता था मगर कुन्द – 'मगर क्या ? देखिए मै आपको ईश्वर की शपथ देकर कहती हूँ कि आप मुझसे झूठ कदापि न बोलें । उदय - नहीं नहीं, मैं कदापि झूठ न बोलूंगा। कुन्द - अच्छा तो बताइये कि 'मगर क्या ? उदय-मगर अभी बहुत थोडे दिन हुए है मेरी माता ने मरते समय अकेले में मुझे बहुत सी बातें समझाई थीं, उसी के साथ यह भी कहा था कि तुम्हारी शादी बहुत बच्चेपन में जोधपुर के प्रसिद्ध वीर शकरसिह जी की लड़की से हो चुकी है, इस बात को हमारे यहाँ तीन-चार आदमी के सिवाय और कोई भी नहीं जानता तुम नी किसी से इस बात का जिक्रन करना और उचित समय पर अपनी स्त्री को अपने घर ले आना। खबरदार अपने बाप से भी इस विषय में कुछ न पूछना और न वे तुम्हें इस बात का कुछ जवाब ही देंगे। इत्यादि इतनी ही बातें कहते कहते वह शान्त हो गई और उनकी आत्मा ने शरीर का साथ छोड दिया जिसका मुझे बड़ा हीदुख है। अभी तक मुझे इस बात का भ्रम बना ही हुआ है कि उन्होंने ये बातें सच कही थीं या यों ही बेहोशी की अवस्था में बक गई थीं ! कुन्द-(कुछ सोचकर) एक दफे मैने मी इसी ढग की बातें अपनी माता से सुनी थीं मगर उस पर मुझ पूरा भरोसा नहीं हुआ आज जब आपके मुंह से भी ऐसी बातें सुनी तो मुझे विश्वास होता है कि मेरी माँ ने सच ही कहा होगा। उदय - यह तो तुम और भी ताज्जुब की बात कह रही हो !अच्छा यह बताओ कि उन शकरसिह से तुम्हारा क्या सबध है? कुन्द - मैं उनकी इकलौती लडकी हूँ, सिवाय मेरे उन्हें और कोई औलाद नहीं है। उदय - (ताज्जुब के साथ घबड़ाकर ) है !क्या तुम शकरसिहजी की लड़की हो । कुन्द -जी हॉ. मेरे साथ देवीसिह और हरिदत्तसिह " ने दगा की और औरगजेब के हाथ में ला फंसाया । उदय - ( कुछ देर तक सोचने के बाद ) तुम्हारे माता और पिता दोनों जीते है ? कुन्द-जी होमगर इस समय न मालूम उन दोनों की क्या अवस्था होगी और मेरे विषय में कैसी बातें सोचते होंगे। उदय - अच्छा तो अब तुम क्या चाहती हो ? तुम्हें तुम्हारे घर पहुँचा दिया जाय या, कुन्द यह आप ही की इच्छा पर निर्भर है. आप जो चाहे सो करें मै आपकी थी सो ईश्वर ने आपके हाथ में मुझे पहुँचा दिया। अब आपकी जो इच्छा हो सो करें, मैं केवल इतना ही चाहती हूँ कि मेरे माता-पिता को मेरी खबर जरूर मिल जाए जिसमें उनकी चिन्ता दूर हो। उदय-(प्रसन्नता के साथ) अच्छा तुम जरा ठहरो, मैं अपने मित्र रविदत्त को इन बातों की खबर कर दूं और उससे भी राय ले लूं कि अब क्या करना चाहिए। "जिन्होंने रविदत्त को मारा और बेहोश किया था। गुप्तगोदना १२९३