पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/२९२

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इतना कहकर उदयसिह वहाँ से उठा और अपने मित्र रविदत्त के पास चला गया और उसे एकान्त में ले जाकर याते करने लगा। रविदत्त को इस बात की कुछ खबर न थी कि उदयसिह की शादी गुप्त रीति से शकरसिहजी की लड़की क साथ हो चुकी है, वह यही जानता था कि हमारा मित्र अभी तक कुँआरा है। यह यात एक भेद की तरह छिपी हुई थी जिसे इस समय सुनकर रविदत्त बहुत ही प्रसन्न हुआ और अपने मित्र को बधाई देकर उसकी स्त्री के विषय में सलाह करने लगा कि अब क्या करना चाहिए थोडी देर तक बातचीत करने के बाद दोनों आदमी कुन्द के पास चले आए। उदयसिंह ने कुन्द से कहा, 'मेरे मित्र से तुम्हें किसी तरह का पर्दा न करना चाहिए, मैं इनसे किसी तरह का भेद नहीं रखता इसलिए इन्हें तुम्हारे पास ले आया हूँ इनकी राय है कि तुम्हारा इस समय अपने पिता के घर जाना मुनासिब न हागा क्योंकि ताज्जुब नहीं कि पुन देवीसिंह और हरिदतसिंह की बदौलत तुम्हें किसी तरह की तकलीफ उठानी पड़े या तुम्हारे माता- पिता ही किसी आफत में पड़ जायें। कुन्द - जी हाँ अगर ऐसा खयाल है तो उदय- और अपने घर ले चलना भी इस समय उचित नहीं जान पड़ता क्योंकि वहाँ भी आजकल खराबी मची हुई है और वहाँ से तरह तरह की खबरें उड़ रही हैं अस्तु इस समय यही उचित जान पड़ता है कि तुम्हें उदयपुर अपने मामा के यहाँ कुछ दिन के लिए पहुंचा दें, शान्ति हो जाने पर और दुश्मनों से बदला ले चुकने के बाद अपने घर ले आऊँगा। तुम्हारी क्या राय है? कुन्द -~जो आपकी मर्जी हो वही ठीक है नहीं तो मेरी राय तो यही है कि मुझे मरदानी पोशाक पहिरा दी जाय, क्योंकि मुझे इस तरह की शिक्षा भी दी गई है और मैं आपके साथ रह कर दुश्मनों का मुकाबला कर सकती हूँ। उदय - तुम्हारे हौंसले पर मुझे प्रसन्नता होती है. मगर इस समय जो कुछ मै सोच चुका हूँ वही मुनासिब जान पड़ता है। इसके बाद कुछ देर तक उदयसिह कुन्द से मीठी-मीठी बातें करते रहे और पहर भर दिन चढने के बाद सब कामों में छुट्टी पाकर जङ्गल ही जगल और पहाडी ही पहाड़ी उदयपुर की तरफ रवाना हुए। 'समाप्त देवकीनन्दन खत्री समग्र १२९४