पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/२९६

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दूसरा बयान कचनसिह के मारे जाने और कुँअर इन्द्रजीतसिह के गायब हो जाने से लश्कर में बड़ी हलचल मच गई। पता लगाने के लिये चारो तरफ जासूम भेजे गये। ऐयार लोग भी इधर-उधर फैल गये और फसाद मिटाने के लिये दिलोजान से काशिश करने लगे। राजा वीरेन्द्रसिह से इजाजत लेकर तेजसिह भी रवाना हुए और भेष बदलकर रोहतासगढ किले के अन्दर चले गये। किले के सदर दाजे पर पहरे का पूरा इन्तजाम था मगर तेजसिह की फकीरी सूरत पर किसी ने शक न किया। साधु की सूरत यो हुए तेजसिह सात दिन तक रोहतासगढ किले के अन्दर घूमते रहे। इस बीच में उन्होंने हर मोहल्ला बाजार गली रास्ता देवल धर्मशाला इत्यादि को अच्छी तरह देख लिया कई बार दर में भी जाकर राजा दिग्विजयसिह और उनके दीवान तथा ऐयारों की चाल और बातचीत के ढग पर ध्यान दिया और यह भी मालूम किया कि राजा दिग्विजयसिह किस-किसको चाहता है किस-किस की खातिर करता है और किस-किस को अपना विश्वासपात्र समझता है। इस सात दिन के बीच में तेजसिह को कई बार चोपदार और औरत बनने की भी जरूरत पड़ी और अच्छे- अच्छे घरो में घुस कर वहा की कैफियत और हालत को भी देख-सुन आये। एक दफे तेजसिह उस शिवालय में भी गये जिसमें भैरोसिर और बद्रीनाथ न ऐयारी की थी या जहा स कुँअर कल्याणसिह को पकड़ ले गये थे। तेजसिह 7 उस शिवालय के रहने वालो तथा पुजारियों की अजय हालत देखी। जय से कुअर कल्याणसिट गिरफ्तार हुए थ तय से उन लोगों के दिल में ऐसा डर समा गया था कि ये बात-बात में चौकत्ते और डरते थे रात में एक पती के खडकन से भी किसी ऐयार के आने का गुमान होता था साधु बाहह्मणों की सूरत से उन्हें घृणा हो गई थी किसी सन्यासी-बाहरण साधु को देखा और चट बोल उठे कि ऐयार है किसी मजदूर को भी अन्दर मन्दिर के आगे खडा पाते तो चट उ एयार समझ लेते और जब तक गर्दन में हाथ दे हाते के बाहर न कर देते चैन न लेते। इत्तिफा से आज तेजसिट भी साधु की सूरत यने शिवालय में जा उटै । पुजारियों ने देखते ही गुल करना शुरू किया कि ऐयार है ऐयार है, धरा पकड़ा जान न पाए बेचार तेजसिर वडा घबड़ाये और ताज्जुब करने लगे कि इन लोगों को कैसे मालूम हो गया कि हम ऐयार है क्योकि तेजसिह को इस बात का गुमान भी न था कि युहा के रहने वाले कुत्ते बिल्ली को भी ऐयार समझते है मगर यकायकी वहा से भाग निकलना भी मुनासिब न समझ कर रूके और बोले- तेज-तुम कैसे जानते हो कि हम ऐयार है? एक पुजारी अजी हम खूब जानते है कि सिवाय ऐयार के कोई दूसरा हमारे सामने आ नहीं सकता है । अजी तुम्ही लोग तो हमारे कुँअर साहब को पकड़ ले गये हो या कोई दूसरा ? बस बस यहा से चले जाओ नहीं तो कान पकड के खा जायगे। यस बस यहा से चले जाओ इत्यादि सुनते ही तेजसिर समझ गये कि ये लोग बेवकूफ हैं अगर हमारे ऐयार होने का इहें विश्वास हाता तो ये लोग चले जाओ कभी न कहते बल्कि हमें गिरफ्तार करने का उद्योग करते बस इन्हें भैरोसिंह और बदीनाथ उरा गये है और कुछ नहीं। तेजसिह खडे सोच ही रहे थे कि इतने में एक लगडा भिखमगा हाथ में ठीकरा लिये लाठी टेक्त्ता वहा आ पहुचा और पुजरीजी की जय जयकार मनाने लगा। सूरत देखते ही एक पुजेरी चिल्ला उठा और बोला 'ला देखो एक दूसरा ऐयार भी आ पहुचा अवकी शैतान लगडा बनकर आया है जानता नहीं कि हमलोग बिना पहिचान रहेंगे भाग नहीं तो सर तोड डालूगा - अब तेजसिह को पूरा विश्वास हो गया कि ये लोग सिडी हो गये है जिसे देखते हैं उसे ही ऐयार समझ लेते है। तेजसिह वहा से लौटे और सोचते हुए खिड़की की राह दीवार के पार हो जगल में चले गए कि अब यहा के ऐयारों से रोहतासगढ किले की बड़ी चहारदीवारी में चारो तरफ छोटी-छोटी बहुत सी खिड़किया थीं जिनमें लाहे के मजबूत दर्वाजे लगे रहते थे और दो सिपाही बराबर पहरा दिया करते थे। फकीर मोहताज और गरीब रिआया अक्सर उन खिड़कियों (छोटे दर्वाजों ) की राह जगल में से सूखी लकडिया चुनने या जगली फल तोडने या जरूरी काम के लिए बाहर जाया करते थे मगर चिराग जलते हीये खिडकिया बंद कर दी जाती थी। चन्द्रकान्ता सन्तति भाग ४ २६९