पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/२९७

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दि मिलना चाहिए और देखना चाहिए कि वे कैसे है और ऐयारी के फन में कितने तेज है। इस किले के अन्दर गाजा पिलाने वालों की कई दूकानें थीं जिन्हें यहा बाले असा कहा करते थे। चिराग जलने के बाद ही से गजेडी लोग वहा जमा होते जिन्हें अडडे का मालिक गाजा बनाकर पिलाता और उनसे एवज में पैसे वसूल करता। वहा तरह तरह की गप्पे उडा करती थीं जिनसे शहर भर का हाल झूठ-सच मिला-जुला लोगों को मालूम हो जाया करता था। शाम होने के पहिले ही तेजसिह जगल से लौटे लकडहारों के साथ-साथ वैरागी के भेष में किले के अन्दर दाखिल हुए और सीधे अडडे पर चले जहा गजेडी दम पर दम लगा कर धूए का गुबार बाध रहे थे। यहा तेजसिह का बहुत कुछ काम निकला और उन्हें मालूम हो गया कि महाराज के यहा केवल दो ऐयार है एक का नाम रामानन्द दूसरे का नाम गोविन्दसिंह है। गोविन्दसिह तो कुँअर कल्याणसिह को छुड़ाने के लिए चुनार गया हुआ है वाकी रामानन्द यहा मौजूद है। दूसरे दिन तेजसिह ने दरबार में जाकर रामानन्द को अच्छी तरह देख लिया और निश्चय कर लिया कि आज रात को इसी के साथ ऐयारी करेंगे क्योंकि रामानन्द का ढाचा तेजसिह से बहुत कुछ मिलता था और यह भी जाना गयाथा कि महाराज सबसे ज्यादा रामानन्द को मानते और अपना विश्वासपात्र समझते है। आधी रात के समय तेजसिह सन्नाटा देख रामानन्द के मकान में कमन्द लगा कर चढ गये। देखा कि धूर ऊपर वाले बगले में रामानन्द मसहरी के ऊपर पड़ा खर्राटे ले रहा है दर्वाजे पर पर्दे की जगह पर जाल लटक रहा है जिसमें छोटी-छोटी घटिया बंधी हुई है। पहिले तो तेजसिह ने उसे एक मामूली पर्दा समझा मगर ये तो बडे ही चालाक और होशियार थे यकायक पर्दे पर हाथ डालना मुनासिय न समझ कर उसे गौर से देखने लगे। जब मालूम हुआ कि नालायक ने इस जालदार पर्दे में बहुत सी घटिया लटका रक्खी है तो समझ गए कि यह बडा ही बेवकूफ है समझता है कि इन घटियों के लटकाने से हम बचे रहेंगे इस घर में जब कोई पर्दा हट कर आवेगा तो घटियों की आराज से हमारी आख खुल जायेगी मगर यह नहीं समझता कि ऐयार लोग बुरे होते है। तेजसिह ने अपने बटुए में से कैची निकाली और बहुत सम्हाल कर पर्दे में से एक एक करके घटी काटने लगे। थोड़ी ही देर में सब घटियों को काट के किनारे कर दिया और पर्दा हटाकर अन्दर चले गए। रामानन्द अभी तक खर्राटे ले रहा था। तेजसिह ने बेहोशी की दवा उसके नाक के आगे की हलका धूरा सास लेते ही दिमाग में चढ गया रामानन्द को एक छींक आई जिससे मालूम हुआ कि अब बेहोशी इसे घटो तक होश में न आने देगी। तजसिह ने बटुए में से एक अस्तुरा निकाल कर रामानन्द की दाढी और मूछ मूड ली और उसके बाल हिफाजत से अपने बटुए में रख कर उसी रग की दूसरी दाढी और मूछ उसे लगा दी जो उन्होंने दिन ही में किले के बाहर जगल में तैयार की थी। तेजसिह इतने ही काम के लिए रामानन्द के मकान पर गए थे और इसे पूरा कर कमन्द के सहारे नीचे उतर आए तथा धर्मशाला की तरफ रवाना हुए। तेजसिह जब बैरागी साधु के भेष में रोहतासगढ किले के अन्दर आए थे तो उन्होंने धर्मशाला के पास एक बैठक वाले के मकान में छोटी सी कोठरी किराये पर ले ली थी और उसी में रह कर अपना काम करते थे। उस कोठरी का एक दर्वाजा सडक की तरफ था जिसमें ताला लगाकर उसकी ताली ये अपने पास रखते थे इसलिए उस कोटरी में आने- जाने के लिए उनको दिन और रात एक समान था। रामानन्द के मकान से जय तेजसिह अपना काम करके उत्तरे उस वक्त पहर भर रात बाकी थी। धर्मशाला के पास अपनी कोठरी में गए और सवेरा हाने के पहिले ही अपनी सूरत रामानन्द की सी बना और वही दाढी और मूंछ ज्ने मूड लाये थे,दुरूस्त करके खुद लगा,कोठरी से बाहर निकले और शहर में गश्त लगाने लगे सवेरा होते तक राजमहल की तरफ रवाना हुए और इतिला करा कर महाराज के पास पहुंचे। हम ऊपर लिख आए हैं कि रोहतासगढ में रामानन्द और गोविन्दसिह केवल दो ही ऐयार थे। इन दोनों के बारे में इतना लिख देना जरूरी है कि इन दोनों में से गोविन्दसिह तो ऐयारी के फन में बहुत ही तेज और होशियार था और वह रोहतासगढ़ में एक ही धर्मशाला थी। देवकीनन्दन खुनी समय २७०