पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/२९८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

व नि रात वही काम किया करता था। रामानन्द भी ऐयारी का फन अच्छी तरह जानता था मगर उसे अपनी दाढी और | बहुत प्यारी थी इसलिए वह एयारी के वे ही काम करता था जिसमें दाढी और मूछ मुडाने की जरूरत न पडे और इसलिए महाराज ने भी उसे दीवान का काम दे रखा था। इसमें भी कोई शक नहीं कि रामानन्द बहुत ही खुशदिल म्सखरा और बुद्धिमान था और उसने अपनी तदवीर से महाराज का दिल अपनी मुट्ठी में कर लिया था। रामानन्द की सूरत बने हुए तेजसिह महाराज क पास पहुचे मामूल से बहुत पहिल रामानन्द को आते देख महाराज समझा कि कोई नई खबर लाया है। महाराज-आज तुम बहुत सदेरे आय । क्या कोई नई खबर है? रामा-(खास कर) महाराज हमारे यहा कल तीन मेहमान आय है। महा-कौन-कौन? रामा-एक तो खासी जिसने मुझे बहुत ही तग कर रक्खा है दूसरे कुँअर आनन्दसिह तीसरे उनके चार ऐयार जो आज ही कल में किशोरी को यहा से निकाल ले जाने का दावा रखते है। महा-(हस कर ) मेहमान तो पडे नाजुक है। इनकी खातिर का भी कोई इन्तजाम किया गया है या नहीं? रामा-इसीलिए ता सरकार आया है। कल दर्यार में उनके ऐयार मौजूद थे। सबके पहिले किशोरी का बन्दोबस्त करना चाहिए उसकी हिफाजत में किसी तरह की कमी न हानी चाहिए । महा-जहा तक मैं समझता हू वे लोग किशोरी को तो किसी तरह नहीं ले जा सकते हा वीरेन्द्रसिह के ऐयारों को जिस तरह भी हो सको गिरफ्तार करना चाहिये। रामा-धीरेन्टसिह के एयार तो अब मेरे पजे से बच नहीं सकत वे लोग सूरत बदल कर दरबार में जरूर आयेंगे और ईश्वर चाहे तो आज ही किसी को गिरफ्तार करूगा मगर वे लोग बडे ही धूर्त और चालयाज है प्राय कैदखाने से भी निकल जाया करते हैं।- महा-खैर हमारे तहखाने से निकल जायेंगे तो समझेगे कि चालाक और धूर्त है। महाराज की इतनी ही बातचीत स तेजसिह को मालूम हो गया कि यहा कोई तहखाना है जिसमें कैदी लोग रक्खे जाते है अब उन्हें यह फिक्र हुई कि जहा तक हो सक इस तहखाने का ठीक-ठीक हाल मालूम करना चाहिए। यह साच तेजसिह ने अपनी लच्छेदार बातचीत मे महाराज को एसा उलझाया कि मामूली समय से भी आधे घण्टे की देर हो गई। ऐसा पारने स तेजसिह का अभिप्राय यह था कि देर होने से असली रामानन्द अवश्य महाराज के पास आवेगा और मुझे देख चौकेगा उनी समय में अपना काम निकाल लूगा जिसके लिए उसकी दाढी मूछ लाया हू और आखिर तेजसिह का सोचना ठीक भी निकला। तेजसिह रागनन्द की सूरत में जिस समय महाराज के पास आये ये उस समय डयोढी पर जितने सिपाही पहरा दे न्ह 4 रुप बदल गए और दूसरे सिपाही अपनी वारी के अनुसार योदी क पहर पर मुस्तैद हुए जो इस बात से बिल्कुल ही बसवर थकि रामानन्द महाराज स मिलने के लिय महल में गय है। ठीक समय पर दरवार लग गया। बरे-जडे आहदेदार नायब दीवान तहसीलदार मुन्शी मुत्सद्दी इत्यादि और मुसाहब लोग दग्चार में आकर जमा हो गये। असली रामानन्द अपनी दीवार की गद्दी पर आकर बैठ गया मगर अपनी दाढी की तरफ से बिल्कुल ही बेखवर था। उन्ने तजसिह का मामला कुछ भी मालूम न था तो भी यह जानने के लिए वह वडी ही उलझन में पड़ा हुआ था कि उस दरवाजे के जालीदार पर्दे में की घटिया किसने काट डाली थीं। घर भर के आदमियों से उसने पूछा और पता लगाया मगर पता न लगा इससे दिल में शक पैदा हुआ कि इस मकान में जरूर कोई एयार आया मार उसने आकर क्या किया सो नहीं जाना जाता हा मेरे इस खयाल को जरूर मटियामेट कर दिया कि घटियाँ लगे जालीदार पर्दे के अन्दर मेरे कमरे में चुपक से कोई नहीं आ सकता उसने बता दिया कि यो आ सकता है। देक मेरी भूल थी कि उस पर्दे पर इतना भरोसा रखता था पर तो क्या खाली यही बताने के लिये वह ऐयार आया था। इन्हीं सब बातों को सोचता हुआ रामानन्द अपने जरूरी कार्मों से छुट्टी पा दरबारी कपडे पहिन वनठन कर दरवार की तरफ रवाना हुआ। बेशक आज उसे कुछ देरी हो गई और वह सोच रहा था कि महाराज दरबार में जरूर आ गये होंगे मगर वहा पहुच कर उसने गद्दी खाली देखी और पूछने से मालूम हुआ कि अभी तक महाराज के आने की कोई खयर नहीं ! रामानन्द क्या सनी दरवारी ताज्जुब कर थे कि आज महाराज को देर क्यो हुई । रामानन्द को महाराज बहुत मानते थे यह उनका मुंहलगा था इसीलिए सभों ने वहा जाकर हाल मालूम करने के लिए इभको ही कहो। रानानन्द खुद भी घबराया हुआ था और महाराज का हाल मालूम किया चाहता था अस्तु थोडी चन्द्रकान्ता सन्तति भाग ४