पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/३०

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दि येवकूफी पर अफसोस करती लौट आई और बोली, “क्या कहूँ, सचमुच अहमद नाजिम को छुड़ा ले गया। अब तेजसिंह ने छेड़ना शुरू किया, "बड़ी ऐयारा बनती थीं, कहती थी हम चालाक हैं, होशियार है.ये है वो हैं। बस एक अदने ऐयार ने नाकों दम कर डाला !" चपला झुंझला उठी और चिढ़ कर बोली, “चपला नाम नहीं जो अक्की दोनों को गिरफ्तार कर इसी कमरे में ला बेहिसाव जूतियाँ न-लगाऊँ ।" तेजसिंह ने कहा, "बस तुम्हारी कारीगरी देखी गई. अब देखो मै कैसे एक एक को गिरफ्तार कर अपने शहर में ले “जा के कैद करता हूं।" - इसके बाद तेजसिंह ने अपने आने का पूरा हाल चन्द्रकान्ता और चपला से कह सुनाया और यह भी बतला दिया कि फलानी जगह पर मै केतकी को येहोश करके डाल आया हूँ तुम जाकर उसे उठा लाना। उसके कपड़े में न दूंगा क्योंकि इसी सूरत से बाहर चला जाता हूँ। देखो सिवाय तुम तीनों के यह सब हाल और किसी को न मालूम हो नहीं तो सब काम बिगड़ जायगा। चन्द्रकान्ता ने तेजसिंह से ताकीद की कि "दूसरे तीसरे तुम जरूर यहाँ आया करो, तुम्हारे आने से ढाढ़स बनी रहती . "बहुत अच्छा, मैं ऐसा ही करूँगा !: कह कर तेजसिंह चलने को तैयार हुए। चन्द्रकान्ता उन्हें जाते देख रो कर याली, "क्यों तेजसिंह, क्या मेरी किस्मत में कुमार की मुलाकात नहीं बदी है ?" इतना कहते ही गला भर आया और फूट फूट कर रोने लगी। तेजसिंह ने बहुत समझाया और कहा कि देखो यह सब बखेड़ा इसी वास्ते किया जा रहा है जिसमें तुम्हारे उनके हमेशा के लिए मुलाकात हो, अगर तुम ही घबड़ा जाओगी तो कैसे काम चलेगा? बहुत कुछ समझा बुझा कर चन्द्रकान्ता को चुप कराया, तब वहाँ से रवाना हो केतकी की सूरत में दर्वाजे पर आये। देखा तो दो चार प्यादे होश में आये है याकी चित्त पड़े हैं. कोई औंधा पड़ा है, कोई उठा तो है मगर फिर भी झुका ही जाता है। नकली केतकी ने डपट कर दरबानों से कहा, "तुम लोग पहरा देते हो या जमीन सूंघते हो ! इतनी अफीम क्यों खाते हो कि आँखें नहीं खुलती और सोते हो तो मुर्दो से बाजी लगा कर ! देखो मै बड़ी रानी से कह कर तुम्हारी क्या दशा करती हूँ !" जो चौबदार होश में आ चुके थे केतकी की बात सुन कर सन्न हो गए और लगे खुशामद करने-- "देखो केतकी माफ करो, आज एक नालायक सरकारी चोबदार ने आकर धोखा दे ऐसा ज़हरीला तम्बाकू पिला दिया कि हम लोगों की यह हालत हो गई। उस पाजी ने तो जान से ही मारना चाहा था, अल्लाह ने बचा दिया. नहीं तो मारने में क्या छोड़ा था। देखो रोज तो ऐसा नहीं होता था, आज धोखा खा गये। हम हाथ जोड़ते हैं, आगे कभी ऐसा देखना तो जो चाहे सजा देना नकली केतकी ने कहा, 'अच्छा आज तो छोड़ देती हूँ मगर खबरदार जो फिर कभी ऐसा हुआ ! यह कहते हुए तेजसिंह बाहर निकल गये। डर के मारे किसी ने यह भी न पूछा कि केतकी तू कहाँ जा रही है ? .

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पांचवाँ बयान अहमद ने.जो वाग के पेड़ पर बैठा हुआ था, जब देखा कि चपला ने नाजिम को गिरफ्तार कर लिया और महल में चली गई तो सोचने लगा कि चन्द्रकान्ता, चपला और चम्पा बस यही तीनों महल में गई है, नाजिम इन सभों के साथ नहीं गया तो जरूर वह इस बगीचे में ही कहीं कैद होगा, यह सोच कर वह पेड़ से उतर इधर उधर ढूँढने लगा. जब उस तहखाने के पास पहुँचा जिसमें नाजिम कैद था तो भीतर से चिल्लाने की आवाज आई जिसे सुन उसने पहिचान लिया कि नाजिम की आवाज है। तहखाने के किवाड़ खोल अन्दर गया, नाजिम को बंधा पाझट उसकी रस्सी खोली और तहखाने से बाहर ला कर बोला, "चलो जल्दी, इस बगीचे के बाहर हो जाये तब हाल कि क्या हुआ ! नाजिम और अहमद बगीचे के बाहर आए और चलते चलते आपुस में बातचीत करने लगे। नाजिम ने चपला के . हाथ फंस जाने और कोड़ा खाने का पूरा हाल कहा । अहमद-भाई नाजिम जब तक पहले चपला को हम लोग न पकड़ लेंगे तब तक कोई काम न होगा क्योंकि चपला - बड़ी चालाक है और धीरे धीरे चम्पा को भी तेज कर रही है। अगर वह गिरफ्तार न की जायगी तो थोड़े ही दिनों में एक की दो हो जायंगी यानी चम्पा भी इस काम में तेज होकर चपला का साथ देने के लायक हो जायगी। नाजिम-ठीक है, खैर आज तो कोई काम नहीं हो सकता मुश्किल से जान बची है, हाँ पहिले कल यही काम करना है चन्द्रकान्ता भाग १ ७