पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/३०१

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Qyi होकर बैठे। अब सिग तेजसिह के दूसरे का बनाया लखलखा उसे कय होश में ला सकता है, हा दो एक रोज पड़े रहने पर वह आप स आप चाहे भले ही होश में आ जाय। दम भर में दारोगा साहर लखलखै की डिबिया लिये आ पहुचे तेजसिह ने पाहा वस आपही सुधाइये और देखिये इम लखलखे से कुछ काम निकलता है या नहीं। दारोगा साहब ने लखलख की डिविया बेहोश रामानन्द के नाक स लगाई पर क्या असर होना था लाचार तेजसिह का मुंह दखने लगे। तेज-क्यों व्यर्थ महनत करते है मैं पहिल ही कह चुका है कि इस लखलखे से काम नहीं चलेगा। चलिये महाराज के पास चलें इसे यों ही रहन दीजिये अपना लखलखा लेकर फिर लौटेंग ता काम चलेगा। दारोगा-जैसी मर्जी इस लखलखे से तो काम नहीं चलता। दारोगा साहब ने रोजनामचे की किताव बगल में दावी और तालियों का झग्या और लालटेन हाथ में लेकर रवाना घुसकर दारोगा साहब ने दूसरा दर्वाजा खोला ऊपर चढने के लिये सीढिया नजर आईं। ये दोनों ऊपर चढ गये और दो-तीन कोठरियों से घुसते हुए एक सुरग में पहुचे। दूर तक चले जाने के बाद इनका सर छत से अडा। दारोगा ने एक सूराख में ताली लगाई और खटका दयाया एक पत्थर का टुकडा अलग हो गया और ये दोनों बाहर निकले। यहा तेजसिह ने अपने को एक कनिस्तान में पाया। इस सन्तति के तीसरे भाग के चौदहवें बयान में हम इस कनिस्तान का हाल लिख चुके है। इसी राह से कैंअर आनन्दसिह भैरोसिह और तारासिह उस तहखाने में गये थे। इस समय हम जो टाल लिख रहे है यह कुँअर आनन्दसिह के तहखाने में जाने के पहिले का है सिलसिला मिलाने के लिए फिर पीछे की तरफ लौटना पड़ा। तहखाने के हर एक दर्याज में पहिले ताला लगा रहता था मगर जब से तेजसिह न इसे अपने कब्जे में कर लिया (जिसका हाल आगे चलकर मालूम होगा ) तब से ताला लगाना बन्द हो गया केवल खटको पर ही कार्रवाई रह गई। तेजसिह ने चारों तरफ निगाह दौडाकर देखा और मालूम किया कि इस जगल में जासूसी करते हुए कई दफे आ चुके है और इस कविस्तान में भी पहुच चुके है मगर जानते नहीं थे कि यह कब्रिस्तान क्या है और किस मतलब से बना हुआ है। अब तेजसिह ने सोच लिया कि हमारा काम चल गया दारोगा साहब को इसी जगह फसाना चाहिये जान न पावे हुए। एक कोठरी में तेज-दारोगा साहब हकीकत में तुम बड़े ही जूतीखोर हो। दारोगा- ताज्जुब से तेजसिह का मुंह देख क ) मैने क्या कसूर किया है जो आप गाली दे रहे है ? ऐसा तो कभी नहीं हुआ था ॥ तेज-फिर मेरे सामने गुर्राता है । कान पकड के उखाड लुगा 11 दारोगा-आज तक महाराज न भी कभी भरी ऐसी बेइज्जती नहीं की थी । तणसिह ने दारोगा का एक लात एसी गरी कि बेचारा धम्म स जमान पर गिर पड़ा तसिह उसकी छाती पर चाट बैठे और बेहोशी की दवा जबदस्ती नाक में दूस दी। बेचारा दारोगा यहोश हो गया। तेजसिह नदारोगा की कमर से और अपनी कमर से भी चादर खाली और उसी में दारोगा की गठरीबाँधा ताली का गुच्छा और रोजनामचे की किताब भी उत्ती में रख पीठ पर लाद तेजी के साथ अपने लश्कर की तरफ रवाना हुए तथा दोपहर दिन चढते राजा बीरेन्दसिह के खेमे में जा पहुचे। पहिल तो रामानन्द की सूरत देख वीरेन्द्रसिह चौस मगर जब धधे हुए इशारे से तेजरिह न अपने को जाहिर किया तो वे बहुत ही खुश हुए। तीसरा बयान तेजसिह के लौट आने से राजा वीरेन्द्रसिह बहुत खुश हुए और उस समय तो उनकी खुशी और भी ज्यादे हो गई जव तेजसिह ने रोहतासगठ आकर अपनी कारवाई करने का खुलासा हाल कहा। रामानन्द की गिरफ्तारी का हाल सुनकर हसत-हसते लोट गये मगर साथ ही इसके यह सुनकर कि कुँअर इन्द्रजीतसिह का पता रोहतासगढ़ में नहीं लगता बल्किा मालूस होता है कि रोहतासगढ में नहीं है राजा बीरेन्द्रसिह उदास हो गये। तेजसिह ने उन्हें हर तरह से समझाया और दिलासा दिया। थोड़ी देर बाद तजसिह ने अपने दिल की वे सब बातें कहीं जो दे किया चाहते थे वीरन्द्रसिह न उनकी राय बहुत पसन्द की और बोले- वीरेन्द्र-तुम्हारी कौन सी एनी तरकी है जिसे मै पसन्द नहीं कर सकता हा यह कही कि इस समय अपने साथ देवकीनन्दम खत्री समग्र २७४