पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/३०४

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तेजसिह के जाने के बाद हमारे नए दारोगा साहब ने खम्भे से बंधे हुए उस तार को खैचा जिसके सबर से दिग्विजयसिह के दीवानखाने वाला घन्टा बोलता था। उस समय दो घण्टे रात जा चुकी थी महाराज अपने कई मुसाहबों को साथ लिए दीवानखाने में बैठे दुश्मन पर फतह पाने के लिए बहुत सी तरकीबें सोच रहे थे यकायक धण्टे की आवाज सुनकर चौके और समझ गये कि तहखाने में हमारी जरूरत है। दिग्विजयसिह उसी समय उठ खडे हुए और उन जल्लादों को बुलाने का हुक्म दिया जो जरूरत पड़ने पर तहखाने में जाया करते थे और जान के खौफ या नमकहलाली के समय से वहा का हाल किसी दूसरे से कभी नहीं कहते थे। महाराज दूसरे कमरे में गए जब तक कपडे बदल कर तैयार हो जल्लादलोग भी हाजिर हुए। ये जल्लाद बडे ही मजबूत,ताकतवर और कद्दावर थे। स्याह रग मूछे चढ़ी हुई पोशाक में केवल जाधिया मिर्जई और कन्टोप पहिरे हाथ में भारी तेगा लिए बड़े ही भयकर मालूम होते थे ! महाराज ने केवल चार जल्लादों को साथ लिया और उसी मामूली रास्ते से तहखाने में उतर गए। महाराज को आते देख दारोगा चैतन्य हो गया और सामने आ हाथ जोड़कर बोला, 'लाचार महाराज को तकलीफ देनी पड़ी। महाराज-क्या मामला है। दारो-वह ऐयार मर गया जिसे दीवान रामानन्दजी ने गिरफ्तार किया था। महा-( चौक कर ) है मर गया। दारोगा--जी हा मर गया न मालूम कैसी जहरीली बेहोशी दी गई थी कि जिसका असर यहा तक हुआ महा-यह बहुत ही बुरा हुआ दुश्मन समझेगा कि दिग्विजयसिह ने जान बूझ कर हमारे ऐयार को मार डाला जो कायदे के बाहर की बात है। दुश्मनों को अब हमसे जिदद हो जायेगी और वे भी कायदे के खिलाफ बेहोशी की जगह जहर का बर्ताव करने लगे तो हमारा बड़ा नुकसान होगा और बहुत आदमी जान से मारे जायेंगे। दारोरह-लाचारी है फिर क्या किया जाय? भूल तो दीवान साहब की है । महा-(कुछ जोश में आकर ) रामानन्द तो पूरा उजडड है ! झक मारने के लिए उसने अपने को ऐयार मशहूर कर रक्खा है तभी तो बीरेन्दसिह का एक अदना ऐयार आया और उसे पकड़ कर ले गया चलो छुट्टी हुई। महाराज की बात सुन कर मन ही मन ज्योतिषीजी हसते और कहते थे कि देखो कितना होशियार और बहादुर राजा इस जरा सी बात में बेवकूफ बना है । बाह रे तेजसिह तू जो चाहे कर सकता है । महाराज ने रामानन्द की लाश को खुद देखा और दूसरी जगह ले जाकर जमीन में गाड देने के लिए जल्लादों को हुक्म दिया। जल्लादों ने उसी तहखान में एक जगह जहा मुर्दे गाडे जाते थे लेजाकर उस लाश को दबा दिया। महाराज अफसास करते हुए तहखाने के बाहर निकल आए और इस सोच में पडे कि देखें बीरेन्द्रसिह के ऐयार लोग इसका क्या बदला लेते है। पांचवां बयान ऊपर लिखी वारदात के तीसरे दिन दारोगा साहब अपनी गददी पर बैठे रोजनामचा देख रहे थे और उस तहखाने की पुरानी बातें पढ़ कर ताज्जुय कर रहे थे यकायक पीछे की कोठरी में खटके की आवाज आई। घबरा कर उढ़ खडे हुए और पीछे की तरफ देखने लगे। फिर आवाज आई। ज्योतिषीजी दर्वाजा खोल कर अन्दर गये मालूम हुआ कि उस कोठरी के दूसरे दर्वाजे से कोई भागा जाता है। कोठरी में बिल्कुल अधेरा था ज्योतिषीजी कुछ आगे बढे ही थे कि जमीन पर पड़ी एक लाश उनके पैर में अडी जिसकी ठोकर खा ये गिर पडे मगर फिर सम्हल कर आगे बढे लेकिन ताज्जुब करते थे कि यह लाश किसकी है । मालूम होता है यहा कोई खून हुआ है और ताज्जुब नहीं कि वह भागने ही वाला खूनी हो। वह आदमी आगे-आगे सुरग में भागा जाता था और पीछे पीछे ज्योतिषीजी हाथ में खजर लिए दौडे जा रहे थे मार उसे किसी तरह पकड न सके। यकायक सुरग के मुहाने पर रोशनी मालूम हुई। ज्योतिषीजी समझे कि अब वह साहर निकल गया दम भर में ये भीवहा पहुचे और सुरंग के बाहर निकल चारो तरफ देखने लगे। ज्योतिषीजी की पहिली निगाह जिस पर पडी,वहाण्डित बद्रीनाथ थे देखा कि एक औरत को पकडे हुए बदीनाथ खड़े है और दिन आधी घडी से कम बाकी है। बद्री-दारोगा साहब देखिये आपके यहा चोर घुसे और आपको खबर भी न हो। चन्द्रकान्ता सन्तति भाग ४ २७७