पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/३०६

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GY आवाज किशोरी और लाली ने इस तहखाने में आकर सुनी थी जिसका हाल इस भाग के पहिले बयान में लिख आये हैं क्योंकि इसी सम्य लाली और किशोरी भी वहा आ पहुची थीं। ज्योतिषी जी ने किशोरी को पहिचाना किशोरी के साथ लाली का नाम लेकर भी पुकारा मगर अभी यह नहीं मालूम हुआ कि लाली को ज्योतिषीजी क्योंकर और कब से जानते थे हा किशोरी और लाली को इस बात का ताज्जुब था कि दारागा ने उन्हें क्योकर पहिचान लिया क्योंकि ज्योतिपीजी दारोगा के भेष में थे। ज्योतिषीजी ने किशोरी और लाली को अपने पास थुलाकर कुछ यात करना चाहा मगर मौका न मिला। उसी समय घण्टे के वजने की आवाज आई और ज्योतिषीजी समझ गये कि महाराज आ रहे हैं। मगर इस समय महाराज क्यों आते है शायद इस वजह से कि लाली और किशोरी इस तहखाने में घुस आई है और इसका हाल महराज को मालूम हो गया जल्दी के मारे ज्योतिपीजी सिर्फ दा काम कर सके एक तो किशोरी और लाली की तरफ देख कर बोले अफसोस अगर आधी घडी की भी मोहलत मिलती हो तुम्हें यहा से निकाल ले जाता क्योंकि यह सब बरोडा तुम्हारे ही लिए हो रहा है। दूसर उस औरत की जुबान पर मसाला लगा सके जिसमें वह महाराज के सामने कुछ कह न सके। इतने ही में मशालचियों और कई जल्लादों को लकर महाराज आ पहुचे और ज्योतिषीजी की तरफ देखकर वोले इस तहखाने में किशोरी ओर लाली आई है तुमने देखा है ? दारोगा-(खडे होकर ) जी अभी तक ता यह नहीं पहुचर्ची। राजा-सोजो कहा है यह औरत कौन है ? दारोगा-मालूम नहीं कौन है और क्यों आई है ? मैंने इसी तहखाने में इसे गिरफ्तार किया है पूछने से कुछ नहीं बताती। राजा-खैर किशोरी और लाली के साथ इसे भी भूतनाथ पर चढा देना (बलि देना चाहिये क्योंकि यहा का वधा कायदा है कि लिखे अदमियों के सिवा दूसरा जो इस तहखाने को देख ले उसे तुरन्त बलि दे देना चाहिये । सब लोग किशोरी और लाली को खोजने लगे। इस समय ज्योतिषीजी घबडाये और ईश्वर से प्रथिना करने लगे कि कुँअर आनन्दसिह और हमारे ऐयार लोग जल्द यहा आये जिसमें किशोरी की जान बचे । किशोरी और लाली कहीं दूर न थीं तुरन्त गिरफ्तार कर ली गई और उनकी मुश्के वध गई। इसके बाद उस औरत से महाराज ने कुछ पूछ। जिसकी जुबान पर ज्योतिषीजी ने दवा भल दी थी पर उसने महाराज की बात का कुछ भी जवाब न दिया। आखिर खम्भे से खोल कर उसकी भी मुश्क बाध दी गई और तीनों औरतें एक दर्वाजे की राह दूसरी सगीन वारदरी में पहुचाई गई जिसमें सिहासन के ऊपर स्याह पत्थर की वह भयानका मूरत बैठी हुई थी जिसका हाल इस सन्तति के तीसरे भाग के आखिरी बयान में हम लिख आये है। इसी समय आनन्दसिह भैरोसिह और तारासिह वहा पहुचे और उन्होंने अपनी आखों से उस औरत के मारे जान का दृश्य देखा जिसकी जुबान पर दवा लगा दी गई थी। जय किशोरी के मारने की बारी आई तय कुँअर आनन्दसिह और दोनों ऐयारों से न रहा गया और उन्होंने खजर निकाल कर उस झुण्ड पर टूट पड़ने का इरादा किया मगर न हो सका क्योंकि पीछे स कई आदमियों ने आकर इन तीनों को पकड लिया। छठवां बयान 1 अब हम अपन किस्से के सिलसिले को मोड कर दूसरी तरफ झुकते हैं और पाठकों को पुण्यधाम काशी में ले चल कर सध्या के समय गगा के किनारे बैठी हुई एक नौजवान औरत की अवस्था पर ध्यान दिलाते हैं। सूर्य भगवान अस्त हो चुके है चारों तरफ अधेरी घिरी आती है । गगाजी शान्त भाव से धीरे-धीरे वह रही है। आसमान पर छोटे-छोटे बादल के टुकड पूरव की तरफ से चले आकर पश्चिम की तरफ इकट्ठे हो रहे है। गगा के किनारे ही पर एक नौजवान औरत जिसकी उम्र पन्दह वर्ष से ज्यादे न होगी हथेली पर गाल रक्खे जल की तरफ देखती न मालूम क्या सोच रही है। इसमें कोई शक नहीं कि यह औरत नखसिख से दुरूस्त और खुबसूरत है मगर रग इसका सावला है तो भी इसकी खुबसूरती और नजाकत में किसी तरह का बट्टा नहीं लगता थोडी-थोड़ी देर पर यह औरत सर उठा कर चारो तरफ देखती और फिर उसी तरह हथेली पर गाल रख कर कुछ सोचने लग जाती है। इसके सामने ही गगाजी में एक छोटा सा बजडा खड़ा है जिस पर चार-पाच आदमी दिखाई दे रहे है और कुछ सफर का सामान और दो चार हर्षे भी मौजूद है। थोडी देर में अधेरा हो जाने पर वह औरत उठी साथ ही बजडे पर से दो सिपाही उत्तर आए और सहारा देकर चन्द्रकान्ता सन्तति भाग ४ २७९