पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/३०९

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चीज पर पड़ी जिसे देखते ही वह चौकी और बाहर जाकर यजड़ा रोको और किनारे लगाने का इशारा करने लगी। वजडा किनारे लगाया गया और वह गूगी औरत अपने सिपाहियों को कुछ इशारा करके नानक को साथ लेकर नीचे उतरी। घण्टे भर तक वह जगल में घूमती रही इसी बीच में उसने अपन जरूरी कान और नहाने धोने से छुट्टी पा ली और तय वजडे में आकर कुछ भोजन करने के बाद उसने अपनी मर्दानी सूरत बनाई । चुस्त पायजामा घुटने के ऊपर तक का चपकन कमरचन्द सर से बड़ा सा मुडासा बाधा और ढाल तलवार खजर के अलावे एक छोटी सी पिस्तौल जिसमें गोली भरी हुई थी,कमर में छिपा और थोड़ी सी गोली बारूद भी पास रख पजड़े से उतरने के लिए तैयार हुई। नानक ने उसकी ऐसी अवस्था देखी तो सामने अड़कर खड़ा हो गया और इशारे से पूछा कि अब हम क्या करें? इसके जवाब में उस औरत ने पटिया और खडिया मागी और लिख-लिख कर दोनों में यातचीत होने लगी। औरत-तुम इसी बजडे पर अपने ठिकाने चले जाओ। मैं तुमसे आ मिलूगी ! मानक-मैं किसी तरह तुम्हें अकेला नहीं छोड सकता तुम सब जानती हो कि तुम्हार लिए मैंने क्तिनी तकलीफें उठाई है और नीच से नीच काम करने को तैयार रहा। औरत-तुम्हारा कहना ठीक है मगर मुझ गूगी क साथ तुम्हारी जिन्दगी खुशी से नहीं बीत सकती हा तुम्हारी मुहबत के बदले नै तुम्हें अमीर किये देती इजिसके जरिये तुम खूबसूरत से खूबसूरत औरत टूढ कर शादी कर सकते हो। नानक अफसोस, आज तुम इस तरह की नसीहत करने पर उतारू हुई और मेरी सच्ची मुहब्बत का कुछ खयाल न किया। मुझ धन-दौलत की परवाह नहीं और न मुझे तुम्हार गूगी होने का रज है बस मै इस बारे में ज्यादे बातचीत नहीं करना चाहता यों तो मुझे कबूल करो या साफ जवाव दो ताकि मै इसी जगह तुम्हारे सामने अपनी जान देकर हमेशा के लिए छुट्टी पाऊँ। मै लोगों के मुह से यह नहीं सुना चाहता कि रामभोली के साथ तुम्हारी मुहब्बत सम्ची न थी और तुम' कुछ न कर सके। रामभोली--(गूगी औरत ) अभी में अपने कामों से निश्चिन्त नहीं हुई जब आदमी बेफिक्र होता है तो शादी ब्याह और हसी-खुशी की बातें सृझती है मगर इसमें शक नहीं कि तुम्हारी मुहब्बत सच्ची है और मै तुम्हारी कद्र करती हूं। नानक-जब तक तुम अपने कामों से छुट्टी नहीं पाती। । अपने साथ रक्सो मै हर काम में तुम्हारी मदद करूगा और जान तक दे देने को तैयार रटूगा। रामभोली-खैर मै इस बात को मजूर करती हू, सिपाहियों को समझा दो कि बजडे को ले जाए और इसमें जो कुछ चीजे है अपना हिफाजत में रक्खें क्योंकि वह लोहे का डिव्या भी जो तुम कल लाये थे मैइसी नाव में छोड़े जाती है। जानकप्रसाद खुशी के मारे ऐंठ गये। बाहर आकर सिपाहियों को बहुत कुछ समझाने-बुझाने के बाद आप भी हर तरह से लेंस हो बदन पर हर्षे लगा साथ चलने को तैयार हो गए। राममोली और नानक बजड़े के नीचे उतरे। इशारा पाकर माझियों ने यजडा खोल दिया और वह फिर वहाव की तरफ जाने लगा। नानक को साथ लिए हुए रामभोली जगल में घुसी। थोड़ी ही दूर जाकर यह एक ऐसी जगह पहुँची जहा बहुत सी पगडण्डिया थी खडी होकर चारो तरफ देखने लगी। उसकी निगाह एक कटे हुए साखू के पेड पर पड़ी जिसके पत्ते सूख कर गिर चुके थे। वह उस पेड़ के पास जाकर खड़ी हो गई और इस तरह चारो तरफ देखने लगी जैसे कोई निशान टूढती हो। उस जगह की जमीन बहुत पथरीली और ऊँची नीची थी। लगभग पचास गज की दूरी पर एक पत्थर का ढेर नजर आया जो आदमी के हाथ का बनाया हुआ मालूम होता था। वह उस पत्थर के देर के पास गई और दम लेने या सुस्ताने के लिए बैठ गई। नानक ने अपना कमरबन्द खोला और एक पत्थर की चट्टान झाड कर उसे बिछा दिया, रामभोली उसी पर जा बैठी और नानक को अपने पास बैठने का इशारा किया । ये दोनों आदमी अभी सुस्ताये भी न थे कि सामने से एक सवार सुर्ख पोशाक पहिरे इन्हीं दोनों की तरफ आता हुआ दिखाई पडा। पास आने पर मालूम हुआ कि यह एक नौजवान औरत है जो बड़ेठाठ के साथ हर्षे लगाये मर्दो की तरह घोड़े पर बैठी बहादुरी का नमूना दिखा रही है। वह रामभोली के पास आकर खड़ी हो गई और उस पर एक भेद वाली नजर डाल कर हँसी। रामभोली ने भी उसकी ईसी का जवाव मुस्कुराकर दिया और कनखियों से नानक की तरफ इशारा किया। उस औरत ने रामभोली को अपने पास बुलाया और जय वह धोडे के पास जाकर खड़ी हो गई तो आप घोडे से नीचे उतर पडी। कमर से छोटा सा बटुआ खोल एक चीठी और एक अगूढी निकाली जिस पर एक सुर्ख नगीना जड़ा हुआ था और रामभोली के हाथ में रख दिया। - देवकीनन्दन खत्री समग्र २८२