पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/३११

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34 - AAJ मुँह देखने लगा। दो ही तीन तान लेकर वह औरत चुप हो गई और नानक से बोली- औरत-अब तू मेरे पीछे-पीछे क्यों घूम रहा है? जहा तेरा जी चाहे जा और अपना काम कर, व्यर्थ समय क्यों नष्ट करता है ? अब तुझे तेरी रामभोली किसी तरह नहीं मिल सकती उसका ध्यान अपन दिल से दूर कर दे। नानक रामभोली झख मारेगी और मेरे पास आयेगी, वह मरे कब्जे में है। उसकी एक ऐसी चीज मेरे पास है जिससे वह जीते जी कभी नहीं छोड़ सकती। औरत-(हस कर) इसमें कोई शक नहीं कि तृ पागल है तेरी बातें सुनने से इसी आती है खैर तू जान तेरा काम जाने मुझे इससे क्या मतलब इतना कह कर उस औरत ने कुएँ मे झांका और पुकारन्कर कहा 'कूपदेव मुझे प्यास लगी है जरा पानी तो पिला। औरत की यात सुन कर नानक घबराया और जी मे सोचने लगा कि यह अजब औरत है। कुएँ पर हूकूमत चलाती है और कहती है कि मुझे पानी पिला । यह औरत मुझे पागल कहती है मगर मैं इसी को पागल समझता हूँ। मला कुआ इसे क्योंकर पानी पिलावेगा? जो हो मगर यह औरत खूबसूरत है और इसका गाना भी बहुत उग्दा है। नानक इन बातों को सोच ही रहा था कि कोई चीज देखकर चौक पडा बल्कि घघडाकर उठ खडा हुआ और कापते हुए तथा डरी हुई सूरत से कूए की तरफ देखने लगा। वह एक हाथ था जो चादी के कटोरे में साफ और ठडा जल लिये हुए कुए के अन्दर से निकला और इसी को देख कर नानक धबडा गया था । वह हाथ किनारे आया उस औरत ने कटोरा ले लिया और जल पीने बाद कटोरा उसी हाथ पर रख दिया हाथ कूएँ के अन्दर चला गया और वह औरत फिर उसी तरह गाने लगी। नानक ने अपने जी में कहा 'नहीं नहीं यह औरत पागल नहीं बल्कि में ही पागल हू, क्योंकि इसे अभी तक न पहिचान सका। बेशक यह कोई गन्धर्व या अप्सरा है नहीं नहीं देवनी है जो रूप बदल कर आयी है तभी तो इसके बदन में इतनी ताकत है कि मेरी कलाई पकड और झटका देकर इसने तलवार गिरा दी। मगर रामभोली से इसका परिचय कहा हुआ? गाते-गात यकायक वह औरत उठ खडी हुई और बडे जोर से चिल्लाकर उसी कूरें में कूद पडी। सातवां बयान लाल पोशाक वाली औरत की अद्भुत बातों ने नानक को हैरान कर दिया। वह घबडाकर चारो तरफ देखने लगा और डर के मारे उसकी अजब हालत हो गई। वह उस कूऐं पर भी ठहर न सका और जल्दी-जल्दी कदम बढाता हुआ इस उम्मीद में गगाजी की तरफ रवाना हआ कि अगर हो सके तोकिनारे-किनारे चलकर उस यजड़े तक पहुच जाय मगर यह भी न हो सका क्योंकि उस जगल में बहुत सी पगडण्डिया थी जिनपर चलकर वह रास्ता भूल गया और किसी दूसरी ही तरफ जाने लगा। नानक लगभग आधे कोस के गया होगा कि प्यास के मारे बेचैन हो गया। वह जल खोजने लगा मगर उस जगल में कोई चश्मा या सोता ऐसा न मिला जिससे प्यास बुझाता। आखिर धूमते-घूमते उसे पत्ते की एक झोपड़ी नजर पडी जिसे वह किसी फकीर की कुटिया समझकर उसी तरफ चल पडा मगर पहुधने पर मालूम हुआ कि उसने धोखा खाया। उस जगह कई पेड ऐसे थे जिनकी डालिया झुककर और आपस में मिलकर ऐसी हो रही थी कि दूर से झोपडी मालूम पडती थी, तो भी नानक के लिए वह जगह बहुत उत्तम थी क्योंकि उन्हीं पेडों में से एक चश्मा साफ पानी का बहता हुआ दिखाई पड़ा जिसके दोनों तरफ खुशनुमा सायेदार पेड लगे हुए थे जिन्होंने एक तौर पर उस चश्मे को भी अपने साये के नीचे कर रखा था। नानक खुशी-खुशी चश्मे के किनारे पहुचा और हाथ-मुँह धोने के बाद जल पीकर आराम करने के लिए बैठ गया। थोडी देर चश्मे के किनारे बैठे रहने के बाद दूर से कोई चीज पानी में बहकर इसी तरफ आती हुई नानक न देखी। पास आने पर मालूम हुआ कि कोई कपड़ा है। वह जल में उतर गया और कपड़े को खैच लाकर गौर से देखने लगा क्योंकि यह वही कपड़ा था जो बजड़े से उतरते समय रामभोली ने अपने कमर में लपेटा था। नानक ताज्जुब में आकर देर तक उस कपडे को देखता और तरह-तरह की बातें साचता रहा। रामभोली उसके देखते-देखते घोडे पर सवार हो चली गई थी फिर उसे क्योंकर विश्वास हो सकता था कि यह कपड़ा रामभोली का है। तो भी उसन कई दफें अपनी आखेमली और उस कपड़े को देखा आखिर विश्वास करना ही पडाकि यह रामभोली की चादर है। रामभोली से मिलन की उम्मीद में वह चश्मे केकिनारे-किनारे रवाना हुआ क्योंकि उसे इस बात का गुमान हुआ देवकीनन्दन खत्री समग्र २८४ .