पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/३१३

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दि काम से छुट्टी पा लू तो तुझसे बाते करू । घबराइयो नहीं मै ठीक एक घण्टे में आऊँगा । इतना कह कर साधू वहाँ से चला गया । दर्वाजे की आवाज और अन्दाज से नानक को मालूम हुआ कि साधू उसी कोठरी में गया जिसका दर्गाजा बन्द था और जिसके अन्दर नानक न जा सका था। लाचार नानक यैठारहा मगर इस चात से कि साधू को आने में घण्टे भर की देर लगेगी वह घबराया और सोचने लगा कि तब तक क्या करना चाहिए। -यकायक उसका ध्यान उन दोनों तस्वीरों पर गया जो दीवार के साथ लगी हुई थीं। जी में आया कि इस समय यहाँ सन्नाटा है साधू महाशय भी नहीं है, जरा पर्दा उठाकर देखे तो यह तस्वीर किसकी है। नहीं नहीं कहीं ऐसा न हो कि साधू आ जाय अगर देख लेंगे तो रज होंगे जिस तस्वीर पर पर्दा पडा हो उसे बिना आज्ञा कभी न देखना चहिए। लकिन अगर देख ही लेंगे तो क्या होगा? साधू तो आप ही कह गए है कि हम घण्टे भर में आवेगे फिर डर किराका है ? नानक एक तस्वीर के पास गया और डरते-डरते पर्दा उठाया। तस्वीर पर निगाह पड़ते ही वह खौफ से चिल्ला उठा हाथ से पर्दा गिर पडा हाफ़ता हुआ पीछे हटा और अपनी जगह पर आकर बैठ गया यह हिम्मत न पड़ी कि दूसरी तस्वीर देखे। यह तस्वीर दो औरत और एक मर्द की थी, नानक उन तीनों को पहिचानता था। एक औरत तो रामभोली और दूसरी वह थी जिसके घोड पर सवार होकर रामभोली चली गई थी और जो नानक के देखते-देखते कुए में कूद पडी थी तीसरी तस्वीर नानक क पिता की थी। उस तस्वीर का भाव यह था कि नानक का पिता जमीन पर गिर पड़ा हुआ था दूसरी औरत उसके सर के बाल पकड हुए थी राममोली उसकी छाती पर सवार गले पर छुरी फेर रही थी। इस तस्वीर को देख कर नानक की अजव हालत हो गई। वह एक दम घवडा उठा और बीती हुई बातें उसकी आँखों के सामने इस तरह मालूम होने लगी जैसे आज हुई है। अपने बाप की हालत याद कर उसकी आँखें डबड्या आई और कुछ दर तक सिर नीचा किए कुछ सोचता रहा । आखीर में उसने एक लम्बी सास ली और सिर उठा कर कहा ओफ क्या मेरा बाप इन औरतों के हाथ से मारा गया? नहीं कभी नहीं ऐसा नहीं हो सकता। मगर इस तस्वीर में ऐसी अवस्था क्यों दिखाई गई है ? बेशक दूसरी तरफ वाली तस्वीर भी कुछ ऐसे ढंग की होगी और उसका भी सन्बन्ध कुछ मुझ ही से होगा | जी घबराता है यहाँ बैठना मुश्किल है | इतना कह नानक उठ खडा हुआ और बाहर बारामदे में जा कर टहलने लगा। सूर्य बिल्कुल अस्त हा गये शाम की पहिली अधेरी चारो तरफ फैल गई और धीरे-धीरे अधकार का नमूना दिखान लगी इस मकान में भी अधेरा हो गया और नानक सोचने लगा कि यहाँ रोशनी का कोई सामान दिखाई नहीं पड़ता क्या याचाजी अधेरे में ही रहते हैं। ऐसा सुन्दस्साफ मकान मगर पालने के लिए दीया नक नहीं और सिवाय एक मृगछाला के,जिस पर बाबाजी पैठते है एक चटाई तक नजर नहीं आती: शायद इसका सवय यह हो कि यहाँ की 'जमीन यहुत साफ,चिकनी और धोई हुई है। इस तरह के साच-विचार में नानक को दो घण्ट बीत गए। यकायक उस याद आया कि बाबाजी एक घण्टे का वादा करके गये थे अब वह अपन ठिकाने आ गये होंग और वहा मुझे न देख न मालूम क्या सोचते होंगे। बिना उनसे मिले और बातचीत किए यहा का कुछ हाल मालूम न होगा चले देखें तो सही के आ गये या नहीं। नानक उट कर उस कमरे में गया जिसमें याबाजी से मुलाकात हुई थी मगर वहाँ सिवाय अधकार के और कुछ दिखाई न पडा थोडी देर तक उसने ऑखे फाड कर अच्छी तरह देखा मगर कुछ मालूम न हुआ लाचार उसने पुकारा- याचाजी!' मगर कुछ जवाब न मिला उसने और दो दर्फ पुकारा मगर कुछ फल न हुआ। आखिर टटोलता हुआ वायाजी के मृगछालें तक गया मगर उसे खाली पाकर लौट आया और बाहर यारामदे में जिसके नीचे चश्मा बह रहा था,आकर बैठ रहा। घण्टे भर तक चुपचाप सोच-विचार में बैठे रहने बाद याचाजी से मिलने की उम्मीद में वह फिर उठा और उस कमरे की तरफ चला । अबकी उसने कमरे का दर्वाजा भीतर से बन्द पाया ताज्जुय और खौफ से कापता हुआ फिर लौटा और बारामदे में अपने ठिकाने आकर बैठ रहा। इसी फेर में पहर भर स ज्यादे रात गुजर गई और चारो तरफ से जगल में बोलते हुए दरिन्दे जानवरों की आवाजें आने लगी जिनके खौफ से वह इस लायक न रहा कि मकान के नीचे उतरे बल्कि बारामदे में रहना भी उसने नापसन्द किया और बगल वाली कोठरी में घुस कर किंजाड बन्द करके सो रहा । नानक आज दिन भर भूखा रहा और इस समय भी उसे खाने को कुछ न मिला फिर नींद क्यों आने लगी थी इसके अतिरिक्त उसने दिन मर में ताज्जुब पैदा करने वाली कई तरह की बातें देखी और सुनी थीं जो अभी तक उसकी आँखों के सामने घूम रही थीं और नींद की बाधक हो रही थीं। आधी रात बीनने पर उसने और भी ताज्जुब की बातें देखीं। । देवकीनन्दन खत्री समग्र २८६