पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/३१४

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रात आधी से कुछ ज्यादै जा चुकी थी जब नानक के कानों में दो आदमियों के बातचीत की आवाज आई। वह गौर से सुनने लगा क्योंकि जो कुछ बातचीत हो रही थी उसे वह अच्छी तरह सुन और समझ सकता था। नीचे लिखी बातें उसने सुनी-आवाज बारीक होने से नानक ने समझा कि वे दोनों औरतें हैं- एक-नानक ने इश्क को दिल्लगी समझ लिया। एक-इस कम्यख्त को सूझी क्या जा अपना घर-बार छोड-कर इस तरह एक औरत के पीछे निकल पड़ा। दूसरी-यह ता उसी से पूछना चाहिये। एक–दायाजी ने उसस मिलना मुनासिब न समझा, मालूम नहीं इसका क्या सवय है। दूसरी-जा हा मगर नानक आदमी बहुत ही हाशियार और चालाक है ताज्जुब नहीं कि उसने जो कुछ इरादा कर रक्खा है उसे पूरा करे । एक-यह जरा मुश्किल है मुझे उम्मीद नहीं कि रानी इसे छोड दें क्यों कि वह इसके खून की प्यासी हा रही है, हॉ अगर यह उस यजर्ड पर पहुच कर वह डिब्या अपने कब्जे में कर लेगा तो फिर इसका कोई कुछ न कर सकेगा। दूसरी-(हस कर जिसकी आवाज नानक ने अच्छी तरह सुनी ) यह तो हो नहीं सकता। एक-खैर इन बातों से अपने को क्या मतलब? हम लौद्धियों की इतनी अक्ल कहॉ कि इन बातों पर बहस करें। दूसरी-क्या लौडी होने से अक्ल में बट्टा लग जाता है ? एक-नहीं मगर असली बातों की लौडियों का खबर ही कब हाती है । दूसरा-मुझे तो खबर है। एक-सो क्या? दूसरा यही कि दम भर में नानक गिरफ्तार कर लिया जायगा। यस अब बातचीत करना मुनासिब नहीं हरिहर आता ही होगा। इसके बाद फिर नानक ने कुछ न सुना मगर इन बातों ने उसे परेशान कर दिया डर के मारे कॉपता हुआ उठ बैठा और चुपचाप यहा से भाग चलने पर मुस्तैद हुआ। धीरे से किवाड खोलकर काठरी के बाहर आया चारो तरफ सन्नाटा था। इस मकान से बाहर निकल कर जगल में भालू चीते या शेर के मिलने का डर जरूर था मगर इस मकान में रहकर उसने बचावकी कोई सूरत न समझी क्योंकि उन दोनों औरतों की बातों ने उसे हर तरह से निराश कर दिया था। हाँ चजडे पर पहुच उस डिब्बे पर कब्जा कर लेने के ख्याल ने उसे बेबस कर दिया था और जहा तक जल्द हो सके बजडे तक पहुचना उसने अपने लिए उत्तम समझा। नानक वारामदे से होता हुआ सदर दाजे पर आया और सीढी के नीचे उतरना ही चाहता था कि दूसरे दालान में से झपटते हुए कई आदमियों ने आकर उसे गिरफ्तार कर लिया। उन आदमियों ने जबर्दस्ती नानक की आखें चादर से बाघ दी और कहा जिधर हम ले चलें चुपचाप चला चल नहीं तो तेरे लिए अच्छा न होगा! लाचार नानक को ऐसा ही करना पड़ा। नानक की आखें बन्द थीं और हर तरह से लाचार था तो भी वह रास्ते की चलाई पर खूब ध्यान दिये हुए था। आधे घण्टे तक वह बराबर चला गया पत्तों की खडखडाहट और जमीन की नमी से उसने जाना कि वह जगल ही जगल जा रहा है। इसके बाद एक डयोढी लाघने की नौबत आई और उसे मालूम हुआ कि वह किसी फाटक के अन्दर जाकर पत्थर पर या किसी पक्की जमीन पर चल रहा है। वहा से कई दफे वाई और दाहिनी तरफ घूमना पड़ा। बहुत देर बाद फिर एक फाटक लाधने की नौबत आई और फिर उसने अपने को कच्ची जमीन पर चलते पाया। कोस भर जाने बाद फिर एक चौखट लाधकर पक्की जमीन पर चलने लगा। यहा पर नानक को विश्वास हो गया कि रास्ते का भुलावा देने के लिए हम बेफायदे घुमाये जा रहे हैं ताज्जुब नहीं कि यह वही जगह हो जहा पहिले आ चुके है। थोडी दूर जाने के बाद नानक सीढी पर चढाया गया बीस-पचीस सीढिया चढे बाद फिर नीचे उतरने की नौबत आई और सीदिया खतम होने के बाद उसकी आँखें खोल दी गई। नानक ने अपने को एक विचित्र स्थान में पाया। उसकी पीठ की तरफ एक ऊंची दीवार और सीढिया थीं सामने की तरफ खुशनुमा बार था जिसके चारो तरफ ऊंची दीवारे थी और उसमें रोशनी बखूबी हो रही थी। फलों के कलमी पेडों में लगी शीशे की छोटी-छोटी कन्दीलों में मोमबत्तिया जल रही थीं और बहुत से आदमी भी घूमते फिरते दिखाई दे रहे थे। बाग के बीचोबीच में एक आलीशान बगला था नानक यहाँ पहुचाया गया और उसने आसमान की तरफ देख कर मालूम किया कि अब रात बहुत थोडी रह गई है। यद्यपि नानक बहुत होशियार चालाक बहादुर और ढीठ था मगर इस समय बहुत ही घबराया हुआ था। उसके चन्द्रकान्ता सन्तति भाग ४ २८७