पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/३१६

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दि तोताकत से बाहर था। सब तरफ से घूम-फिर कर नानक की आसे रामभोली कीतरफ जाकरअटक गई और एकटक उसकी सूरत देखने लगा। उस औरत ने जो बडे रोब के साथ जड़ाऊ सिहासन पर बैठी हुई थी एक नजर सिर से पैर तक नानक को देखा और फिर रामभोली की तरफ आखें फेरी । रामभोली तुरन्त अपनी जगह से उठ खडी हुई और सामने की तरफ हद कर सिहासन के बगल में खड़ी हो हाथ जाडकर बोली यदि आया हो तो हुक्म के मुताबिक कार्रवाई की जाय? इसके जवाब में उस औरत ने जिसे महारानी कहना उचित है बड़े गरूर के साथ सिर हिलाया अर्थात् मना किया और उस दूसरी की तरफ देखा जो रामभाली के बगल में थी। यह बात नानक के लिए बड़े ताज्जुब की थी। आज उसके कानों ने एक ऐसी आवाज सुनी जो कमी सुनी न थी और न सुनने की उम्मीद थी। एक तो यही ताज्जुब की बात थी जो रामभोली उसके पड़ोस में रहती थी जिसे नानक लड़कपन स जानता था और सिवाय उस दिन के जिस दिन बजडे पर सवार हो सफर में निकली जिस कभी अपना घर छोडते नहीं देखा था और न कभी जिसके मा बाप ने उसे अपनी आखों से दूर किया था आज इस जगह ऐसी अवस्था और ऊँचे दर्जे पर दिखाई दी। दूसरे जो समगोली जन्म से गूगी थी जिसके वाफ्मा ने कभी उसे बोलते नहीं सुना आज इस तरह उसके मुह से मीठी आवाज निकल रही है । इस आवाज ने नानक के दिल के साथ क्या काम किया इसे वही जानता होगा। इस बात को नानक क्योंकर समझ सकता था कि जिस रामभोली ने कभी घर से बाहर पैर भी नहीं निकाला वह इन लोगों में आपस के तौर पर क्यों पाई जाती है और ये सब औरत कौन है । नानक को इन सब बातों को अच्छी तरह सोचने का मौका न मिला। यह दूसरी औरत जो रामभोली के बगल में कुर्सी पर बैठी हुई थी और जिसको नानक ने पहिले भी देखा था इशारा पाते ही उठ खड़ी हुई और कुछ आगे बढ नानक से बातचीत करने लगी। औरत-नानकप्रसाद इसके कहने की तो जरूरत नहीं कि तुम मुजरिम बनाकर यहा लाये गये हो और तुम्हें किसी तरह की सजा दी जायेगी। नानक-हा वैशक मै मुजरिम बना कर लाया गया हूमगर असल में मुजरिम नहीं है और न मैने कसूर ही किया है। औरत-तुम्हारा कसूर यही है कि तुमने यह बडी तस्वीर जो बाबाजी के कमरे में थी और जिस पर पर्दा पड़ा हुआ था बिना आज्ञा के देखी। क्या तुम यह नहीं जानते कि जिस तस्वीर पर पर्दा पडा हो उसे बिना आज्ञा के देखना न चाहिए? नानक ( कुछ सोच कर ) वेशक यह कसूर तो हुआ। औरत-हमारे यहाँ का कानून यही है कि जो ऐसा कसूर करे उसका सिर काट लिया जाय ? नानक-अगर ऐसा कानून है तो इसे जुल्म कहना चाहिए । औरत-जो हो मगर अब तुम किसी तरह बच नहीं सकते। नानक-ौर, में मरने से नहीं डरता और खुशी से मरना कबूल करता है यदि आप कुछ मवालों का जवाब दे दें! -तुम मरने से तो किसी तरह इनकार कर नहीं सकते मगर मेहरयानी करके तुम्हारे एक सवाल का जवाब मिल सकता है, एक से ज्यादे सवाल तुम नहीं कर सकते, पूछो क्या पूछते हो? नानक-(कुछ देर तक सोच कर) खैर जय एक ही सवाल का जवाब मिल सकता है तो मैं यह पूछता है कि (रामभाली की तरफ इशारा करके ) यह यहा क्योंकर आई और यहा इन्हें इतनी बड़ी इज्जत क्योंकर मिली? औरत-ये तो दो सवाल हुए अच्छा इनमें से एक सवाल का जवाब यह दिया जाता है कि जिनके बारे में तुम पूछते हो वह हमारी महारानी की छोटी बहिन है और यही सच है कि उनके बगल मे सिहासन के ऊपर बैठी है। नानक-मुझे क्योकर विश्वास हो कि तुम सच कहती हा? औरत-- धर्म की कसम खाकर कहती है कि यह बाल झूठ नहीं है मानने न मानने का तुम्हें अख्तियार है। नानक-खैर अगर ऐसा है तो मै किसी प्रकार नरना पसन्द नहीं करता। औरत-( हस कर ) मरना न पसन्द करने से क्या तुम्हारी जान छोड दी जायेगी। नानक-येशक ऐसा ही है जब तक मैं मरना मजूर न करूँगा तुम लोग मुझे मार नहीं सकती। औरत-यह तो हम लोग जानते हैं कि तुम एक भारी कुदरत रखते हो और उसके समय से चबडे काम कर सकते हो मगर इस जगह तुम्हारे किये कुछ नहीं हो सकता । एक घात अगर तुम कबूल करो तो तुम्हारी जान छोड दी जायेगी औरत- चन्द्रकान्ता सन्तति भाग ४ २८९ १९