पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/३१८

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टूट रहा था। इतना कह बाबाजी उठे और नानक का हाथ पकड कर दूसरी तरफ ले चल। यावाजी का हाथ इतना कडा था कि नानक की कलाई दर्द करने लगी उस मालूम हुआ मानो लोहे के हाथ ने उसकी कलाई पकडी हो जो किसी तरह नर्म यर ढीला नहीं हो सकता। माफ सवरा हो धुका था बल्कि सूर्य की लालिमा ने बाग को खुशनुमा पेडों क ऊपर वाली टहनियों पर अपना दखल जमा लिया था जब बाबाजी नानक को लिए एक कोटरी के दर्वाजे पर पहुंचे जिसमें ताला लगा हुआ था। बागजीन दूसरे हाथ से एक ताली निकाली जो उनके कमर में थी और उस कोठरी का गला खालकर उसके अन्दर ढकेल दिया और फिर दर्वाजा चन्द करके ताला लगा दिया। चाहे दिन निकल चुका हो मगर उस कोटरी के अन्दर नगरक को रात ही का समा नजर आया। बिल्कुल अधेरा था कोई सुराख भी ऐमा नहीं था जिससे किसी नरह की रोशनी पहुचती। नानक को यह भी नहीं मालूम हो सकता था कि यह काढरी कितनी बडी है हाउस कोठरी की पत्थर की जमीन इतनी सर्द थी घण्टे ही भर में नानक के हाथ पैर चैकार हो गये। घण्ट भर याद नानक को चारो तरफ की दीवार दिखाई देने लगी। मालूम हुआ कि दीवारों में से किसी तरह की चमक निकल रही है और वह समकधीरे-धीरे बढ़ रही है यहा तक कि थाडी देर मे वहा अच्छी तरह उजाला हो गया और उस जगह की हर एक चीज साफ दिखाई देने लगी। यह कोडरी बहुत बड़ी न थी इसके चारो कोनों में हडड़ियों के हर लगे थे चारो तरफ दीवारों में पुरसे भर ऊँचे चार मोखे (छेद) से जो बहुत बड़नाथ मगर इस लायक थे कि आदमी का सर उसके अन्दर जा सके। नानक ने देखा कि उसक सामन की तरफ वाले (माखे) में कोई चीज चमकती हुई दिखाई दे रही है। बहुत गौर करने पर थोड़ी देर बाद मालूम हुआ कि बड़ी-बडी दो आखें है जो उसी की तरफ देख रही है । उस अधेरी कोठरी में धौर-धीरे चमक पैदा होने और उजाला हो जाने ही से नानक डरा था अब उन आखों ने और भी डरा दिया। धीरे-धीरे नानक का डर बढता ही गया क्योंकि उसने कलेजा दहलाने वाली और भी कई बातें यहा पाई। हम ऊपर लिख आये है कि उस कोठरी की जमीन पन्थर की थी। धीरे-धीरे यह जमीन गर्म होने लगी जिससे नानक के बदन में हरारत पहुची और वह सर्दी जिसके सयच से वह लाचार हो गया था जाती रही। आखिर वहाँ की जमीन यहाँ तक गर्म हुई कि नानक का अपनी जगह सं उठना पड़ा मगर कहा जाता [उस कोठरी की तमाम जमीन एक सी गरम हो रही थी वह जिधर जाता उधर ही पर जलता था। मानक का ध्यान फिर मोखे की तरफ गया जिसमें चमकती हुई आखें दिखाई दी थी क्योंकि इस समय उसी माये म से एक हाथ निकल कर नानक की तरफ बढ़ रहा था। नानक दयक कर एक कोने में हो रहा जिसमें वह हाथ उस तक न पहुचे मगर हाथ बढ़ता ही गया यहा तक कि उसने नानक की कलाई पकड़ ली। न मालून वह हाथ कैसा था जिसने नानक की कलाई मजबूती से थाम ली। बदन के साथ छूते ही एक तरह की झुनझुनी पैदा हुई और यात की बात में इतनी बढी कि नानक अपने को किसी तरह सम्हाल न सका और न उस हाथ से अपने को छुडा ही सका यहा तक कि वह बेहोश होकर अपने आपको बिल्कुल भूल गया । जय नानक होश में आया उसने अपने आप को गगा के किनारे उसी जगह पाया जहा रामभोली के साथ बजडे से उतरा था। बगल में पक्के केले का एक घौद भी देखा। दिन बहुत कम बाकी था और सूर्य भगवान अस्ताचल की तरफ आठवॉ बयान अब हम फिर उस महारानी के दर्वार का हाल लिखते है जहा से नानक निकाला जाकर गगा के किनारे पहुंचाया गया था। नानक का कोठरी में ढकेल कर वाचाजी लौटे तो महारानी के पास न जाकर दूसरी ही तरफ रवाना हुए और एक चारहदरी में पहुँचे जहा कई आदमी बैठे कुछ काम कर रहे थे। बाबाजी को देखते ही वे लोग उठ खडे हुए। बाबाजी ने उन लोगों की तरफ देखकर कहा 'नानक कोभै ठिकाने पहुंचा आया हू, बड़ा भारी ऐयार निकला हम लोग उसका कुछ न कर सका खैर उसे गगा किनारे उसी जगह पहुचा दोजहा बजड़े से उतरा था उसके लिये कुछ खाने की चीज भी वहा रख देना! इतना कह कर चाचाजी वहा से लौटे और महारानी के पास पहुचे। इस समय महारानी का दार उस दग कान था और न भीडभाड ही थी। सिहासन और कुर्सियों का नाम निशान नथा केवल फर्श विछा हुआ था जिस पर महारानी रामभोली और वह औरत जिसके घोडे पर सवार हो राममोली नानक से जुदा हुई थी बैठी आपुस में कुछ बातें मन्तत्ति भाग ४ २९१