पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/३२१

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GY तेज-वह क्या। ज्योतिषी-आपको याद होगा कि तहखाने का हाल कहते समय मैने कहा था कि जाय तहखान में किशोरी और लाली को मेने देखा तो दानों का नाम ले कर पुकारा जिससे उन दोनों को आश्चर्य हुआ। तेज-हा हा मुझे याद है मै यह पूछने ही वाला था कि लाली को आपने कैसे पहिचाना? ज्योतिषी-बस यही वह ताज्जुब की बात है जो अब मै आपसं कहता हूँ। तेज-कहिए जल्द कहिए। ज्योतिषी-एक दफे रोहतासगढ के तहखाने में बैठे-बैठे मेरी तबीयत घबराई तो मै कोठरियों को खोल खोल कर देखने लगा। उस ताली के झटके में जो मेर हाथ लगा था एक ताली सबसे बडी है जातहखाने की सब काठरियों में लगती है मगर बाकी बहुत सी तालियों का पता मुझ अभी तक नहीं लगा कि कहा की है। तेज-खैर तब क्या हुआ ? ज्योतिषी-सब कोठरियों में अधेरा था चिराग ले जाकर मै कहा तक देखता मगर एक कोठरी में दीवार के साथ चमकती हुई कोई चीज दिखाई दी। यद्यपि काठरी में बहुत अधेरा था तो भी अच्छी तरह मालूम हो गया कि यह कोई तस्वीर है। उस पर ऐसा मसाला लगा हुआ था कि अधेरे में भी यह तस्वीर साफ मालूम होती थी आख कान नाक बल्कि याल तक साफ मालूम होते थे। तस्वीर के नीचे लाली ऐसा लिखा हुआ था। मैं बड़ी देर तक ताज्जुब से उस तस्वीर को देखता रहा आखिर कोठरी बन्द करके अपने ठिकाने चला आया उसके बाद जब किशोरी के साथ मैने लाली को देखा तो साफ पहिचान लिया कि वह तस्वीर इसी की है। मैन तो सोचा था कि लाली उसी जगह की रहने वाली है इसीलिए उसकी तस्वीर वहा पाई गई मगर इस समय महाराज दिग्विजयसिह की जुबानी उसका हाल सुनकर ताज्जुब हाता है लाली अगर वहा की रहने वाली नहीं तो उसकी तस्वीर वहा कैसे पहुची । दिग्वि-मैने अभी तक वह तस्वीर नहीं दखी ताज्जुब है। वीरेन्द्र--अभी क्या जब मैं आपको साथ लेकर अच्छी तरह उस तहखाने की छानबीन करूमा तो बहुत सी बातें ताज्जुब की दिखाई पड़ेंगी। दिग्वि ब-इश्वर करे जल्द ऐसा मौका आये अव तो आपको बहुत जल्द रोहतासगढ बलना चाहिए। चीरेन्द-(तजसिह की तरफ देख कर ) इन्दजीतसिह के बारे में क्या बन्दोवस्त हो रहा है? तेज-मैं बेफिक्र नहीं हूँ, जासूस लोग चारो तरफ भजे गये है ? इस समय तक राहतासगढ की कारवाई में फसा हुआ था अव स्वय उनकी खोज में जाऊगा कुछ पता लगा भी है ? वीरेन्द-हा? क्या पता लगा है? तेज-इसका हाल कल कहूगा आज भर और सब कीजिए। राजा वीरेन्द्रसिह अपने दोनों लड़कों का बहुत चाहते थे इन्द्रजीतसिह के गायब होने का रज उन्हें यहुत था, मगर वह अपने चित्त के भाव को भी खूब ही छिपाते थे और समय का ध्यान उन्हें बहुत रहता था। तेजसिह का भरोसा उन्हें बहुत था और उन्हें मानते भी बहुत थे जिस काम में उन्हें तेजसिह रोकते थे उसका नाम फिर वह जुबान पर तब तक न लाते थे जब तक तेजसिह स्वय उसका जिक्र न छेडते यही सबब था कि इस समय व तेजसिह के सामने इन्द्रजीतसिह क बार में कुछ न वाले। दूसर दिन महाराज दिगिविजयसिह सेना सहित तेजसिह का राहतासगढ किले में ले गये। कुँअर आनन्दसिह के नाम का डका बजाया गया। यह मौका एसा था खुशी के जलसे होते मगर कुँअर इन्द्रजीतसिह के खयाल से किसी तरह की खुशी न की गई। राजा दिग्विजयसिह के वर्ताव और खातिरदारी से राजा वीरेन्द्रसिह और उनके साथी लोग बहुत प्रसन्न हुए। दूसर दिन दीवानखाने में थोडे आदमियों की कमेटी इसलिए की गई कि अब क्या करना चाहिए। इस कुमेटी में केवल नीचे लिख बहादुर और ऐयार लोग इकटठे थे---राजा वीरेन्द्रसिह कुँअर आनन्दसिह तजसिह दवीसिह पण्डित धदीनाथ ज्योतिपीजी राजा दिग्विजयसिह और रामानन्द। इनके अतिरिक्त एक और आदमी मुंह पर नकाब डाले मौजूद था जिसे तजसिह अपने साथ लाये थे और उसे अपनी जमानत पर कमेटी में शरीक किया था। चीरेन्द्र-(तेजसिह की तरफ देख कर) इस नकाबपोश आदमी के सामन जिसे तुम अपने साथ लाये हो हम लोग भेद की बात कर सकते है? तेज-हा हा कोई हर्ज की बात नहीं है। चन्द्रकान्ता सन्तति भाग ४ २९७