पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/३२५

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GY गई थी। यक्षा की छत इतनी नीची थी कि कुन्दन को बैठ कर जाना पड़ा। एत में एक पंप लगा हुआ था जिसके भगने स एक पत्थर की चट्टान हट गई और औचल समुह दाप कुन्दन किशोरी के सामने जा खड़ा हुई। बधारी किशोरी तरह तरह की आफता से आप ही बदहवास हा रही थी. अथेरे में पत्ती लिए यकायक कुन्दनको निकलते देख घबरा गई। उसन घबराहट में कुन्दन का रिलाल नहीं पहियाना यत्कि उसे भूत प्रेत या काई आसेब समझ कर डर गई और एक चीख मार कर बेहोश हो गई। कुन्दन ने अपनी कमर से कोई दवा निकाल कर किशोरी को सुधाई जिससे वह अच्छी तरह बेहोश हो गई इस बाद अपनी छाटी गठरी में से सामान निकाल कर वह वरया अर्थार धनपति रममाया साध्यो काम इ.यादिसिर कोटरी में एक तरफ रख दिया और अपन कमर एक चादर चाली जो महल से लेती आईधी उसी में किशोरी की गठरी बाधी और नीचे घसीट ल गई। जिस तरह पंच को घुमा कर पत्थर की चहान हटाई थी उरी तरह रास्ता पन्द कर दिया। यह सुरग काठरी के नीचे यत्सम नहीं हुई थी बल्कि दूर तक चली गई थी और आगे से घोड़ी और सभी होती गई थी। किशोरी को लिए हुए कुन्दन उस सुरग में घलन लगी। लगभग सौ कदम जाने पाद एकदाजा मिला जिले कुन्दन ने उसी ताली स याला आग फिर उसी सुरग में चलना प। आधी घड़ी के माद सुरग का अन्त हुआ और कुन्दा 1 अपने को एक साल के मुह पर पाया । इस जगह पहुंच कर मुन्दन न सीटी बजाई। थाड़ीदर में इधर उधर से पाच आदमी आ मौजूद हुए और एक न बढ़ कर पूछा कौन है? धनपतिजी! कुन्दन- राना तुम लोगो का यहा बहुत दुरा भागना और कई दिन तक अटकना पड़ा। रामा-जब हमार मालिक ही इन दिनातक अपा को बला में डाले हुए थे जहा से जान बचाना मुरिकताता फिर हम लोगों की क्या बात है हम लोग तो खुले मैदा में थे। कुन्दन-ली किशारी ता हाथ लग गई अब इस ले चलो और जहा तक जल्द हो सके भागा। लोग किशोरी को लेकर वहाँ से रवाना हुए। पादकता समझ ही गये होंगे कि किशोरी धनपति के काबू में पड़ गई। कौन धनपति ? वही धनपति जिसे नानक और रामभाली के बयान में आप लोग जान चुके है। मेरे इन लियने ते पाटक महाशय चौरंगे और उनका ताज्जा घटगा नहीं बल्कि पड़ जायगा इसके साथ ही साथ पाठकों को नाक की यह यात कि वह किताब भी जो किसी करुन सं लिखी गई है भी याद आयगी जिसके सयय स नानक ने अपनी जान बचाई थी। पाठक इस बात का भी जरूर सायगे कि कुन्दन अगर असल में पति थी तो लालो जरूर राम गाली गायोकि Unifitो लिरती हुई किताव को मद मालूम था और यह भद रामनाली को भी माथूम था जब धनपति संहतासम लाली के सामाउस किताब का जिक्र किया तो लाली काप गइ जिससे मालूम होता है कि वह राममालो हो होगा। किरी के खून से लिखी हुई किताब का नाम सुन कर अगर लाली जर गई तो धनपति भी जरूर समझ गई होगी कि यह राम पोली! फिर धापति (कुन्दा) लाली से मिल क्यो न गई क्यों कि वे दोनों तो एक हो के तुत्य थी? ऐसी अवस्था में तो इस बात का शक होता है कि लाली रमभोली न थी। फिर तहयाने में धनपत्ति के लिखे हुए घर को सुन कर लाली पयो हसी चादि बातों का साथ फर पाठकों को चिन्ता अवश्य ददगी क्या किया जाय लाचारी है। बारहवां बयान दूसर दि दोपहर दिन चढ बाद किशोरी की बहाली दूर हुई। उस अपडे को एक गहा मे पड़ो की झुरमुट में जमीन पर पड़े पारा और अपने पास मुदन और कई आदमियों की दया। पारी विशारीहाई ही दिगो रह की मुसीबतों में पड़ चुशी या बल्कि जिस घर से निकलापलासमा सुन मानों सुनना उस हिस्सही में न था। एक मुसीयत से घटापूसरी में फसी. दूसरी से शूटी तीसरा में पास इस समय भी उसने अपनी धुरी अवस्था में पाया । यद्यपि अन्दा उसके सामने टीभी परन्तु उसे उसकी तर किसी तरह पर मलाई को आशा भी थी। इसके अतिरिक्त यहा और भी कई आदमियो को देय तथा अपने यहाशी की आत्या से पैतन्य हात पाउने विश्वास हो गया कि गुन्दर न उसक सायदमा किया। सीया रमन कीरहद करलगी और इस समय इस बात कारियनकरफि उत्तक साधसावर्गव किया योग चन्द्रकान्ता सन्ततिभाग ३०१