पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/३२९

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दूसरा बयान पाठक अभी भूले न होंगे कि कुँअर इन्द्रजीतसिह कहाँ हैं। हम ऊपर लिख आए हैं कि उस मकान में जो तालाब के अन्दर बना हुआ था कुंअर इन्द्रजीतसिह दो'औरतों को देखकर ताज्जुब में आ गए। कुमार उन औरतों का नाम नहीं जानते थे मगर पहिचानते जरूर थे क्योंकि उन्हें राजगृही में माधवी के यहाँ देख चुके थे और जानते थे कि ये दोनों माधवी की लौडिया है। परन्तु यह जानने के लिए कुमार व्याकुल हो रहे थे कि ये दोनों यहाँ क्योंकर आई, क्या इस औरत सजो इस मकान की मालिक है और उस माधवी से कोई सम्बन्ध है ? इसी समय उन दोनों औरतों के पीछे पीछे वह औरत भी आ पहुँची जिसने इन्द्रजीतसिह के ऊपर एहसान किया था और जो उस मकान की मालिक थी। अभी तक इम औरत का नाम भी मालूम नहीं हुआ मगर आगे इससे काम बहुत पडेगा इसलिए जब तक इसका असल नाम मालूम न हो काई बनावटी नाम रख दिया जाय तो उत्तम होगा मेरी समझ में तो कमलिनी नाम कुछ युरा न होगा। जिस समय कुँअर इन्द्रजीतसिह की निगाह उन दोनों औरतों पर पड़ी वे हैरान होकर उनकी तरफ देखने लगे उसी समय दौड़ती हुई कमलिनी भी आई ओर दूर ही से बोली- कमलिनी कुमार इन दोनों हरामखोरियों का कोई मुलाहिजा न कीजिएगा और न किसी तरह की जुबान ही दीजिएगा अपनी जान बचाने के लिए ही दोनों आपके पास आई है। इन्द-क्या मामला है ये दोनों कोन है? कम-ये दोना माधवी की लोडिया हे आपकी जान लेने आई थीं मेर आदमियों के हाथ गिरफ्तार हो गई। इन्द्र-तुम्हारे आदमी कहाँ है ? मैने तो इस मकान में सिवाय तुम्हारे किसी को नहीं देखा। कम-बाहर निकल कर देखिये मेरे सिपाही मौजूद है जिन्होंने इसे गिरफ्तार किया। इन्द-अगर ये गिरफ्तार होकर आई है तो इनके हाथ पैर खुले क्यों है ? कम-इसके लिए कोई हर्ज नहीं य मेरा कुछ नहीं बिगाड सकती जब तक कि में जागती हू या अपने होश में हूँ। इन्द-(उन दानों की तरफ देख कर ) तुम क्या कहती हो? एक-(कमलिनी की तरफ इशारा करके ) य जा कुछ कहती हैं ठीक है परन्तु आप वीर पुरुष है आशा है कि हम लोगों का अपराध क्षमा करेंगे। कुँअर इन्द्रजीतसिह इन बातों को सुनकर सोच में पड़ गये। उन्हें उन दोनों औरतों की और कमलिनी की बातों का विश्वास न हुआ बल्कि यकीन हो गया कि ये लोग किसी तरह का धोखा दिया चाहती है। आधी घड़ी तक सोचने के बाद कुमार बगले के बाहर निकल तो दखा क्या कि तालाब के बाहर लगभग बीस सिपाही खडे आपुस में कुछ बातें कर रहे और घडी घडी इसी तरफ देख रहे हैं। कुमार वहाँ से लौट आये और कमलिनी की तरफ देख कर वाले- इन्द-खैर जो तुम्हारे जी मे आय करी हम इस बारे में कुछ नहीं कह सकते। कम-करना क्या है इन दोनों का सिर काटा जायेगा। इन्द-खुशी तुम्हारी । मै जरा इस तालाव के बाहर जाना चाहता हूँ। कम-क्या ? इन्द-यह समय मजेदार है जरा मैदान की हवा गाऊँगा और उस घाडे की भी यवर लूगा जिस पर सवार होकर आया था। कम-इस मकान की छत पर चढन स अच्छी और साफ हवा आपका मिल सकती है घोड़े के लिए चिन्ता न करे या फिर ऐसा ही है ता सवेर जाइयेगा। न मालूम क्या सोचकर इन्दजीतसिह चुप ही रहे। कमलिनी ने उन दोनों औरतों का हाथ पकड़ा और धमकानी हुई न जाने कहाँ ल गई इसका हाल कुमार को न मालूम हुआ और न उन्होंन जानने का उद्याग ही किया ! यद्यपि इस औरत अर्थात कमलिनी ने कुमार की जान बचाई थी तथापि उन्हें विश्वास हो गया कि कमलिनी न दास्ती की राह पर ये काम नहीं किया बल्कि किसी मतलय से किया है। उस मकान में गुलदस्त के नीचे स जो धीठी कुमार न पाई थी उसके पढन से होशियार हो गय श तथा समझ गए थे कि यह मुझे नकर में लाया चाहती ओर किशोरी के साथ भी किसी तरह की बुराई किया चाहती है। इसमें कोई शक नहीं कि कुमार इस चाहने लगे थे और जान बचाने का यदला चुकाने की फिक्र में थे मगर उस चीठी के पढते ही उनका रम यदल गया और वे किसी दूसरी ही धुन में लग गए। चन्द्रकान्ता मन्तति भाग ५ २०