पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/३३३

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एक दिन शाम के वक्त उस मकान की छत पर कुमार और कमलिनी बेठे बातें कर रहे थे इसी बीच में कुमार ने पूछा- कुमार-कमलिनी अगर किसी तरह का हर्ज न हा तो इस मकान के यार में कुछ कहो। इन पुतलियों की तरफ जो इस मकान के चारों कोनों में तथा इस छत के बीचोबीच में है जब मेरी निगाह पडती है तो ताज्जुब से अजय हालत हा जाती है। कम-वशक इन्हें देख आप ताज्जुब करते होंगे। यह मकान एक तरह का छाटा सा तिलिस्म है जो इस समय बिल्कुल मेर आधीन है मगर यहाँ का हाल बिना मेरे कहे थोडे ही दिनों में आपको पूरा मालूम हो जायगा। कुमार-उन दोनों ओरतों के साथ जो माधवी की लौडियों थी तुमने क्या सलूक किया? कम-अभी ता वे दोनों कैद है। कुमार-माधवी का भी कुछ हाल मालूम हुआ है? कम-उसे आपके लश्कर और रोहतासगढ के चारो तरफ घूमते कई दफे मरे आदमियों ने देखा है। जहाँ तक में समझती हूँ वह इस धुन में लगी है कि किसी तरह आप दोनों भाई और किशोरी उसके हाथ लगें और वह अपना बदला ले। कुमार--अभी तक रोहतासगढ का कुछ हाल मालूम नहीं हुआ न लश्कर का कोई समाचार मिला। कम-मुझे भी इस बात का ताज्जुब है कि मेरे आदमी किस काम में फंसे हुए है क्योंकि अभी तक एक ने भी लोटकर खबर न दी। (चौंक कर और मैदान की तरफ देख कर ) मालूम होता है कि इस समय कोई नया समाचार मिलेगा। मैदान की तरफ देखिए. दो आदमी एक याझ लिए इसी तरफ आते दिखाई दे रह हैं ताज्जुब नहीं कि ये मेरे ही आदमियो में से हो। कुमार--(मैदान की तरफ देख कर ) हाँ ठीक है इसी तरफ आ रह है उस गटठर में शायद कोई आदमी है। कम-वेशक ऐसा ही है (हॅस कर) नहीं तो क्या मेरे आदी माल असबाब चुरा कर लावेंगे। देखिए वे दोनों कितनी तजी के साथ आ रहे है। (कुछ अटक कर ) अब मैने पहिचाना बेशक इस गठरी में माधवी होगी। थोडी देर तक दोनों आदमी चुपचाप उसी तरफ देखते रहे जब वे लोग इस मकान के पास पहुंचे तो कमलिनी ने कुमार से कहा- कम-मुझे आज्ञा दीजिए तो जाकर इन लोगों को यहाँ लाऊँ। कुमार-क्या बिना तुम्हारे गये वे लोग यहाँ नहीं आ सकते? कम-जी नहीं जब तक मैं खुद उन्हें किश्ती पर चढा कर यहॉन लाऊँ ये लोग नहीं आ सकते वे क्या कोई भी नहीं आ सकता। कुमार-क्या हर एक के लिए जब वह इस मकान में आना या जाना चाहे तो तुम्हीं को तकलीफ करनी पड़ती है ? मैं समझता हूँ कि जिस आदमी को तुम एक दफे भी किश्ती पर चढा कर ले जाओगी उसे रास्ता मालूम हो जायेगा। कम-अगर ऐसा ही होता तो मैं इस मकान में बेखटके क्योंकर रह सकती थी! आप जरा नीचे चलें में इसका सबब आपको बतला देती हूँ। कुमार खुशी खुशी उठ खडे हुए और कमलिनी के साथ नीचे उतर गए। कमलिनी उन्हें उस कोठरी में ले गई जा नहाने के काम में लाई जाती थी और जिसे कुमार देख चुके थे। उस कोठरी में दीवार के साथ एक आलमारी थी जिसे कमलिनी ने खोला। कुमार ने देखा कि उस दीवार के साथ चॉदी का एक मुट्ठा जो हाथ भर से छाटान होगा लगा हुआ है। इसके सिवाय और कोई चीज उसमें नहीं थी। कम-मैं पहिले भी आपसे कह चुकी हूँ कि इस तालाब में चार्रा ओर लोहे का जाल पड़ा हुआ है। कुमार-हॉ ठीक है मगर उस रास्ते में जाल न होगा जिधर से तुम किश्ती लेकर आती जाती हो। कम-ऐसा ख्याल न कीजिए उस रास्ते में भी जाल है मगर उसे यहाँ आने का दर्वाजा कहना चाहिए जिसकी ताली यह है। देखिये अब आप अच्छी तरह समझ जायेंगे। (उस चाँदी के मुद्दे को कई दर्फ घुमा कर ) अब उतनी दूर का या उस रास्ते का जाल जिधर से किश्ती लेकर मै आती जाती हूँ हट गया मानो दर्वाजा खुल गया अव मैं क्या कोई भी जिसको आने जाने का रास्ता मालूम है किश्ती पर चढ के आ जा सकता है। जब मै इसको उल्टा घुमाऊँगी तो वह रास्ता चन्द हो जायगा अर्थात वहाँ भी जाल फैल जायगा फिर किश्ती आ नहीं सकती। कुमार-(हॅस कर ) बेशक यह एक अच्छी बात है। इसके बाद कमलिनी किश्ती पर सवार होकर तालाब क बाहर गई और उन दोनों आदमियों को गठरी सहित सवार 1 चन्द्रकान्ता सन्तति भाग ५ ३०९