पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/३३६

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कह सकता हूँ कि कल रात उस कब्रिस्तान में हम लोगो न जिस दया था वह काइ ऐयार ही था। चौथा-खैर और दा तीन दिन में मालूम हो जायेगा। ओरत-तुम लागों का काम चाहे जब हो मगर मरा काम ता आज हुआ ही चाहता है। माधवी और तिलासमा का मन खूब ही धोखा दिया है। आज उसी कनिस्तान की राह से में उन दोनों को तहखा में ले जाऊँगी। एक-अब तुम्ह यहा जाना चाहिए शायद माधवी यहा पटुब गई हो! औरत-हा अब जाती पर अभी समय नहीं हुआ। दूसरा-दम भर पहिल ही पहुँचना अच्छा है। यह बातें सुन कर में उन लागों को पहिचान गया । राम वगेरह धनपतिजी के सिपाही लाम आर ओरत चला था , इतना सुनते ही कमलिनी न रोका और पूछा जिस वाह के मुहाने पर वे लोग बैठ थे व कोइरालइ काप भी इसके जवाब में उन दानों ने कहा हाहादा पड़ सलईक बहाथ पर उनके सिवाय और दूर दूर तक कह सलईका पेड दिखाई नहीं दिया। कम-बस में समझ गई वह खोह का मुहाना भी तहखान से निकला का एक रास्ता है, शायद धापति ने अपने आदमियों का कह रक्या हागा कि मैं किशारी का लिए हुए इसी राह से निकलूंगा तुम लोग मुरतेद रहना। इसी से व लाभ वहाँ बैठे थे। एक-शायद एसा ही हा। कुमार-धनपति कौन है? कम-उस आप नहीं जानत ठहरिए इन लागा का हाल सुबलू ताफएगी। (उन्नदाना की तरफ देख कर) हतिय क्या हुआ 2 उसन फिर यों कहना शुरू किया- थाडी ही दर में चमला वहा स उटी और एक तरफ को रवा | मदाना भी उसके पी पी चल ओर सुबह की सुफैदी निकलना हीचाहती थी कि उस कविरताना पास पहुँच गये जा तहवाने में जान का दयाजा है। हम दानों एक आड की जगह छिप रहे और तमाशा देरान लग उसी समय माधवी और तिलासमा भी 4६] आपली । तीज) मे धीर धीरे कुछ यात हाने लगी जिसे दूर हान क समय में बिल्कुल न सुन सका आखिर ये ती तहसार में घुस गई और पहरी गुजर जाने पर भी बाहर न निकली हम दोनों यह निश्चय कर चुक था कि जब तक सहयान निकलेंगी यहा से । टलेंग। सवरा हो गया बल्कि धीर धीर तीन पहर दिन बीत गया। आरिगर हम दानो सहयारे में घुसन के इरादे से कब्रिस्तान में गय। वहा पहुच कर हमार सार्थी ने कहा आयिर हमलाप दिन भर परशान हो ही चुके है अब शाम हा लन दो ता तहखान म धल। मैने भी यही मुनासिब समझा और हम दोनों आदमी वहा से लौटा ही चाहत थे कि तहटाने का दर्वाजा युला और चमेला दिखाई पड़ी हम दानों को भी चमेला ने देखा और पहिया ना मगर उसका ठहरन या कुछ फहन का साहस न हुआ । पह कुछ परेशान मालूम हाती थी और खून से भरा हुआ एक धूरा उसक हाथ में था। हम दाना न भी उसका कुछ टाकना मुनामिय 7 समझा और यह विचार कर कि शायद काई और भी इस तहखान से निकल एक कान की आइ में छिप कर विचली कब्र अथात तहखान क दवाज की तरफ देखने लगे। चमला हम लोगों के दयत देखत भाग गई और थाडी दर तक सन्नाटा रहा। थाडी दर बाद हम लोगों न दूर से राजा वीरन्द्रसिह के एयार पण्डित बदीनाथ को आते देया। वह तहखाने के दर्याज पर पहुच ही थे कि अन्दर से तिलोत्तमा निकली और पण्डित बद्रीनाथ ने उसे गिरफ्तार कर लिया। इसके बाद ही एक बूढा आदमी तहसान से निकला और पण्डित बद्रीनाथ रा यात करने लगा। हम लोगों का कुछ कुछ वे बातें सुनाइदती थी। इतना मालूम हो गया कि तहखार के अन्दर न हुआ है और इन दानों में तिलातमा का दापी ठहराया है मगर हम लागा न खून से भरा हुआ छूरा हाथ में लिय चमेला का देखा था इसलिए विश्वास था कि अगर तहखाने में फाई खून हुआ है ता जरुर चमला के ही हाथ से हुआ तिलोत्तमार्दाप है। पण्डित बीताय और यह चूढा आदमी तिलोत्तमा का लकर फिर तहखान में घुस गये। हम लागों ने भी वहा अटकना मुासिय न समझा ओर थाडी ही दर बाद हम लाग भी तहखाने में घुस गय तथा तहखाने की पचासों काठरिया में घूमन और दख ! लग कि कहा क्या हाता है। बद्रीनाथ थोड़ी ही देर बाद तहखाने के बाहर निकल गय और हम लोगों देवकीनन्दन खत्री समग्र ३१२