पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/३३७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

नतिलोत्तमा को एक खम्भे के साथ वेधे हुए पाया। हम्माम बाली काठरी में माधवी को पड़े हुए पाकर हम लोग बड़े खुश हुए और उस उठाकर ले भाग फिर न मालूम पीछ क्या हुआ और फिस पर क्या गुजरी।' कमलिनी-ताज्जुव नहीं कि वहाँ के दस्तूर के मुताबिक तिलोत्तमा बलि दे दी गई हो। इतने ही मनंगच से एक लाडी दौडी हुई आई और हाथ जोड़ कर कमलिनी स बाली तारा आ गई तालाब के बाहर खड़ी है। तारा के आने की खबर सुन कर कमलिनी बहुत खुश हुई और खुशी के मारे कुअर इन्द्रजीतसिह की घबराहट का ता ठिकाना हीन रहा क्योंकि तारा ही की जुबानी रोहतासगढ का हाल और बेचारी किशोरी की खबर सुनन वाल थ और इसी के बाद कमलिनी का असल भद उन्हें मालूम होन को था। कम--(कुमार की तरफ दखकर ) जिस तरह इन दोनों आदमियों का में तालाब के बाहर लाई हूँ उसी तरह तारा को नीलाना पड़ेगा। कुमार-हाँ हाँ उसे बहुत जल्द लाओ मैं भी तुम्हारे साथ चलता हूँ। कम-आप क्यों तकलीफ करते है। बेठिये नै उस अभी लाती हूँ। (दोनों आदमियों की तरफ देखकर) चलो सुभ दानों को भी तालाब के बाहर पहुचा दूं। लाचार कुमार उसी जगह बैठे रहे। उन दानों आदमिया को साथ लेकर कमलिनी वहाँ से चली गई तथा थाडी दर में तारा को लेकर आ पहुँधी। कुँअर इन्द्रजीतसिह को देख कर तारा चोकी और बोली- तारा- क्या कुमार यहाँ विराज रहे है । कम-हाँ कई दिनों से यहाँ है और तुम्हारी राह दख रहे है। तुम्हारी जुवानी रोहतासगढ़ और किशोरी तथा लाली और कुन्दन का असल भद और हाल सुनने के लिए बड़े बेचैन हो रहे है। आओ मेरे पास बैठ जाओ और कहो क्या हाल है? तारा-ऊँची सॉस लेकर) अफसोस में इस समय बैठ नहीं सकती और न कुछ वहाँ का हाल ही कह सकती हूँ क्योंकि हम लोगों का यह समय बडा ही अमूल्य है। कुमार को यहाँ देख मैं बहुत खुश हुई अब वह काम बखूबी निकल जायगा। (कुमार की तरफ देखकर) वेचारी किशोरी इस समय बड ही सकट में पड़ी हुई है। अगर आप उनकी जान बचाना चाहते है ल इस समय मुझस कुछ न पूछिए बस तुरत उठ खडे होइए और जहों में चलती हूँचले चलिए हॉ यदि वनपडा तो रास्ते में में दहाँ का हाल आपसे कहूगी1 (कमलिनी की तरफ देखकर आप भी चलिए और कुछ आदमी अपने साथ लेती चलिए मगर सर काई घाडे पर सवार और लडाई के सामान से दुरुस्त रहें। कम-एसा ही होगा। कुमार-(खडे होकर ) मैं तैयार हू! तीनों आदमी छत के नीचे उतर और तारा के कहे मुताबिक कार्रवाई की गई। सुबह की सुफेदी आसमान पर निकलना ही चाहती है। आओ देखो हमार बहादुर नौजवान कुँअर इन्द्रजीतसिह किस ठाठ स मुश्की घोडे पर सवार मैदान की तरफ घोडा फेके चला जा रहा है और उसकी पेटी से लटकती हुई जडाऊ नयाम (न्यान ) की तलवार किस तरह उछल उछल कर घाडे के पेट में थपकियों मार रही है मानों उसकी चाल की तेजी पर शाबाशी दे रही है। कुमार क आगे आगे घोडे पर सवार तारा जा रही है कुमार के पीछे सब्ज घौडे पर कमलिनी सवार है और घाडे की तजी को बढ़ा कर कुमार के बराबर हुआ चाहती है। उसके पीछे दस दिलायर और बहादुर सवार घोडा फैके गले जा रहे है और इस जगली मैदान के सन्नाट को घोड़ों के टापों की आवाज से तोड़ रहे है। चौथा बयान हम ऊपर लिख आए है कि देवीसिह को साथ लेकर शेरसिह कुँअर इन्द्रजीतसिह को छुडाने के लिए रोहतासगढ से रवाना हुए। शेररिम्ह इस बात को तो जानते थे कि कुँअर इन्द्रजीतसिह फल्गनी जगह हैं परन्तु उन्हें तालाब के गुप्त भेदों की कुछ भी सयर न थी। राह में आपुस में बातचीत होने लगी। यहाँ पर ता पाठक समझ ही गये होंगे कि तहखान में बडी मूरत के सामन जा औरत बलि दी गई थी वह माधवी की एयारा तिलाल्मा थी और माधरी की लाश का ले भागने वाले ये ही दोनों कमलिनी के नौकर थे चन्द्रकान्ता सन्तति भाग ५ ३१३