पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/३३८

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देवी-लाली का भेद कुछ मालूम न हुआ। शेरसिह-अफसोस उसक और कुन्दन के बारे में मुझसे बड़ी भारी भूल हुई एसा घाखा खाया कि शम क मारे कह नहीं सकता। देवी-इसमें शर्म की क्या बात है. ऐसा कोई ऐयार दुनिया में न हागा जिसने कभी धाखा न खाया हो, हम लोग कभी धाखा देते है कभी स्वय धोखे में आ जाते हैं फिर इसका अफसोस कहाँ तक किया जाय। शेर-आपका कहना बहुत ठीक है खैर इस बारे में मैन जो कुछ मालूम किया है उसे कहता हूँ। यद्यपि थोड़े दिनों तक मैन राहतासगढ से अपना सम्बन्ध छोड दिया था तथापि मै कभी कभी वहा जाया करता और गुप्त राहों स महल के अन्दर जाकर वहाँ की खबर भी लिया करता था। जय किशोरी वहाँ फंस गई ता अपनी भतीजी कमला के कहने से मै यहाँ दूसरे तीसरे बराबर जाने लगा। लाली और कुन्दन को भने महल में देखा यह न मालूम हुआ कि ये दोनों कौन है बहुत कुछ पता लगाया मगर कुछ काम न चला परन्तु कुन्दन के चेहरे पर जब मैं गौर करता तो मुझ शक होता कि वह सरला है। देवी-सरला कौन? शेर-वही सरला जिसे तुम्हारी चम्पा ने चेली बना कर रखा था और जो उस समय चम्पा के साथ थीं जब उसने एक खाह के अन्दर माधवी के एयार की लाश काटी थी। देवी-हाँ वही छोकरी मुझ याद आया मालूम नहीं कि आज कल वह कहाँ है। खैर तब क्या हुआ? तुमने समझा कि वह सरला है मगर उस खोह का और लाश काटने का हाल तुम्हें कैसे मालूम हुआ। शेर-वह हाल स्वय सरला ने कहा था वह मेरे आपुस वालों में से है इत्तिफाक से एक दिन मुझम मिलने क लिए रोहतासगढ आई थी तब सब हाल भने सुना था मगर मुझे यह नहीं मालूम कि आज कल कहाँ है। देवी अच्छा तय क्या हुआ? शेर-एक दिन यही भेद खालने की नीयत से मै रात के समय राहतासागढ़ महल के अन्दर गया और छिप कर सरला के सामने जाकर बोला में पहिचान गया कि तू सरला है फिर तू अपना भेद मुझसे क्यों छिपाती है? इसके जवाब में कुन्दन ने पूछा 'तुम कौन हो? मै-शेरसिह । सरला-मुझ जय तक निश्चय न हो कि तुम शेरसिह ही हो में अपना भेद कैसे कर मैं-क्या तू मुझे नहीं पहिचानती? सरला-क्या जाने कोई ऐयार सूरत बदल के आया हो अगर तुम पहिचान गए कि मै सरंग हूँ तो कोई एसी छिपी हुइ बात कहो जो मैने तुमसे कही हा। इसके जवाब में मै वही खोह वाला अर्थात लाश काटने वाला किस्सा कह गया और अन्त मे मै बोला कि यह हाल स्वयम तूने मुझसे क्यान किया था। उस किस्से का सुन कर कुन्दन हॅसी और बोली हाँ अब मै समझ गइ। मैं चम्पा के हुक्म से यहां का हाल चाल लेने आई थी और अब किशोरी को छुडाने की फिक्र में हूँ, मगर लाली मर काम में बाधा डालती है कोई एसी तर्फीब बताइये जिसमें लाली मुझसे दव और डरे । ? मैं उस समय यह कह कर वहाँ से चला आया कि अच्छा सोच कर इसका जवाब दूगा। देवी-तब क्या हुआ शेर- मै वहाँ से रवाना हुआ और पहाड़ी के नीचे उतरते समय एक विचित्र वात मेरे देखने और सुनने में आई। देवी-वह क्या। शेर-जब में अधेरी रात में पहाडी के नीचे उतर रहा था तो जगल में मालूम हुआ कि दो तीन आदमी जो पगडण्डी के पास ही हैं आपुस में बातें कर रहे हैं। मैं पैर दबाता हुआ उनके पास गया और छिपकर बातें सुनने लगा मगर उस समय उनकी यातें समाप्त हो चुकी थीं केवल एक आखिरी यात सुनने में आई। देवी-फिर क्या हुआ। शेर-एक ने कहा- भरसक तो लाली और कुन्दन दोनों उन्हीं में से है नहीं तो लाली तो जरुर इन्द्रजीतसिह की दुश्मन है। मगर इसकी पहिचान तो सहज ही में हो सकती है। कवल किसी के खून से लिखी हुई किताब और ऑचल पर गुलामी की दस्तावेज इन दोनों जुमलों से अगर डर जाय तो हम समझ जायेंगे कि वीरन्द्रसिह की दुश्मन है। खैर बूझा जायगा पहिले महल में जाने का मौका भी ता मिले। इसके बाद और कुछ सुनने में न आया और वे लोग उठ कर न मालूम कहाँ चले गए। दूसरे दिन में फिर कुदन के पास गया और उससे बोला कि तू लाली के सामने किसी के खून से लिखी हुई किताब देवकीनन्दन खत्री समग्र ३१४