पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/३३९

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cyt 1 ओर ऑचल पर गुलामी की दस्तावेज का जिक्र करके देख क्या होता है देवी-फिर क्या हुआ? शेर--तीन चार दिन बाद जब म कुन्दन के पास गया तो उसकी जुबानी मालूम हुआ कि कुन्दन के मुंह से ये बातें सुन कर लाली बहुत डरी और उसने कुन्दन का मुकाबला करना छोड दिया। मगर मुझ थोड़े ही दिनों में मालूम हो गया कि कुन्दन सरला न थी उसने मुझे धोखा दिया और चालाकी से मेरी जुबानी कई भेद मालूम करके अपना काम निकाल लिया। मुझे इस बात की बडी शर्म है कि मैने अपने दुश्मन को दोस्त समझा और धोखा याया। देवी-अक्सर ऐसा धोखा हो जाया करता है खेर लालो तो अभी हम लोगों के कैद ही में है कही जाती नहीं रही कुन्दन सो इन्द्रजीतसिंह का लेकर लौटने पर कोई तीब ऐसी जसर निकाली जायगी जिसमें वाकी लोगों का असल हाल मालूम हो। इसी तरह की बातें करते हुए दोनों ऐयार चलत गये। रात को एक जगह दो घण्टे साराम किया और फिर चल पड़े। सवेरा होते होत एक ऐसी जगह पहुँचे जहाँ एक छोटा सा टीला ऐसा था जिम पर चढ़ने से दूर दूर तक की जमीन दिखाई देती थी तथा वहा से कमालनी का तालाय वाला मकान भी बहुत दूर न था। दोनों एयार उस टीले पर चढ गये और भैदान की तरफ देखने लग। यकायक शेरसिह ने चांक कर कहा अहा हम लोग क्या अच्छे मौके पर आये है। देखो वह कुअर इन्द्रजीतसिह और यह औरत जिसने उन्हें फंसा रक्खा है घाडे पर सवार इसी तरफ चल आ रहे है। देवी-हा ठीक तो है उनके साथ और भी कई सवार है। शेर-मालूम होता है उस औरत ने उन्हें अच्छी तरह अपने वश में कर लिया है। बेगरे इन्दजीतसिह क्या जाने कि यह उनकी दुश्मा है। चाहे जो हो इस समय इन लोगों को आगे न बढने देना चाहिए। देवी-साके आगे एक औरत घोडे पर सवार आ रही है। मालूम होता है कि उन लोगों को रास्ता दिखाने वाली यही है। शेर-बेशक ऐसा ही है तभी तो सब कोई उसके पीछे पीछे चल रहे हैं। पहिले उसी को रोकना चाहिए मगर घोडों की चाल बहुत तेज है। देवी-कोई हर्ज नहीं हम दोनों आदमी घोड़े की राह पर अड़ कर खडे हो जाय और अपने को घोडे से बचाने के लिए मुस्तैद रहे अच्छी नसल का घोडा यकायक आदमी के ऊपर टाप न रक्खेगा बह लोगों को राह में देख जरुर अडेगा या झिझकगा बस उसी समय घोडे की बाग थाम लेंगे। दानों ऐयारों न बहुत जल्द अपनी राय ठीक कर ली और दोनों आदमी एक साथ घोडों की राह में अड के खड़ हो गये। बात की बात में थे लोग भी आ पहुचें। तारा का घाला रास्ते में आदमियों को खडा देख कर झिझका और आडद कर बगल की तरफ घूमना चाहा उसी समय देवीसिह ने फुर्ती से लगाम पकड़ ली। इस रामय तारा का घोड़ा लाचार रुक गया और उसक पीछे आने वालों को भी रुकना पडा। कुअर इन्द्रजीतसिह शेरसिह को ता नहीं जानते थे मगर देवीसिह को उन्होंने पहिचान लिया और समझ गये कि य लोग मेरी ही योज में घूम रहे है आखिर देवीसिट के पास आये और बोले- कुमार-यद्यपि आप सब काम मेरी भलाई ही के लिए करते होंगे परन्तु इस समय हम लोगों को रोका सो अच्छा न किया। देवी-पया मामला है कुछ कहिए ता? कुमार-(जल्दी में धवडाए हुए डैग से ) बेधारी किशोरी एक आफत में फसी हुई है उसी का बचाने जा रहे है। देवी-किस आफत में फंसी है? कुमार-इतना कहने का मौका नहीं है। देवी यह औरत आपको अवश्य धाखा देगी जिसके साथ आप जा रहे है। सुमार-ऐसा नहीं हो सकता यह पड़ी ही नेक और मेरी हमदर्द है। इतना सुनले ही कमलिनी आगे बढ आई और देवीसिह से बोली- कम-मैसूर जानती हूँ कि आप लोगों को मेरी तरफ से शक है तथापि मुझे कहना ही पड़ता है कि इस समय आप हम लोगों को न रा नहीं तो पछताना पड़ेगा। यदि आप लोगों को मेरी और कुमार की बात का विश्वास नही तो मरे सवारों में से दो आदमी घोडों पर से उतर पडते है उनके बदले न आप दोनों आदमी धोडो पर सवार हाकर साथ चलें और देख लें कि हम आपके खेरख्वाह है या बदरवाह। देवी हाँ येशक यह अच्छी बात है और मैं इसे मजूर करता हूँ। कमलिनी के इशारा करते ही दोसवारों ने घोडों की पीठ याला कर दी। उनके बदल में देवीसिह और शरसिह सवार हो गए और फिर उसी तरह सफर शुरू हुआ। इस समय कुछ कुछ सूरज निकल चुका था और सुराहरी पऊँचे ऊरपेड़ों के चन्द्रकान्ता सन्तति भाग ५ ३१५