पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/३४

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चौथा बयान सवेरा हो गया था जय बाबाजी को साथ लिये हुए य ग्यारहो सवार उस पहाड़ी के नीचे पहुर।दखा कि उनके साथी सवारी में से बहुत से उसी जगह खड़े हैं। हरीसिह ने उनसे पूछा- क्या हाल है?' एक सवार न जवाव दिया, "कुछ साथी लाग उनको लन के लिये ऊपर गए है। हरीसिह न एक लम्बी सास लकर कहा, 'ऊपर है कौन जिसे लने गए. वहाँ ता मामला हो दूसग हा गया। क्या जान ईश्वर की क्या मर्जी है, (जसवन्त सिह की तरफ देख कर) आइये वायाजी हम और आप भी ऊपर चले। हरीसिद्द और जसवन्तसिह घाई पर से उत्तर पहाडी के ऊपर गए और बाग में जाकर अपने साथियों को रनवीरसिह की खोज में चारों तरफ घूमते देखा। हरीसिह और चावाजी को दख एक सवार जो सभों का बल्कि हरीसिह का भी सर्दार मालूम हाता था आग बढ आया और वाला, हरीसिह, यहाँ तो कोई भी नहीं है। मालीन बिल्कुल गप्प उभाकर हमलागों को फजूल ही हैरान किया। हरीसिह-नहीं नहीं माली ने झूठी खबर नहीं पहुचाई थी। सर्दार--क्या इन बाबाजी से काई हाल तुम्ह मिला ? हरीसिह-हाँ बहुत कुछ हाल मिता है। यह कहते है कि पाय सवारी ने यहा आकर रनवीरसिह को गिरफ्तार कर लिया और अपने साथ ले गए। सर्दार-(चांक कर) है, यह क्या गजब हो गया (वायाजी की तरफ देख कर) बाबाजी, क्या यह बात ठीक है? जसवन्त--हा मैं बहुत ठीक कर रहा हूँ। इसके बाद हरीसिह ने अपने सर से वे सब बातें कही जा रास्ते में बावाजी से हुई थी और अखी र में यह भी कहा कि यह यासाजी हम असली वादाजी नहीं मालून हात जरूर इन्दौन अपनी सूरत बदली है , जय से यह घोडे पर सवार हा कर हमारे साथ चले है तभी स मैं इस बात का नाच रहाक्योंकि जिस तरह सवार होकर बराबर हम लोगों के साथ घोड़ा फेंके चले आये हैं इस तरह की सवारी करना किसी वायाजी का काम नहीं है कौन एसे बाबाजी होंगे? हरीसिह की बातें सुन कर सर्दार ने मोर से जमवन्तसिह की तरफ देखा और कहा- 'कृपानिधान अब आप अपना ठीक ठीक हाल कहिये, यह तो आपका भी मालूम होगया कि हमलागरनवीरसिह के खैरख्वाह है और मुझे भी यकीन होता है कि आप भी रनवीरसिह की भलाई चाहनेवालों में से है फिर छिपे रहने की जरूरत ही क्या है? जसवन्तसिह न कहा मे अपना हाल जरूर कहूगा। मेने अपनी ऐसी सूरत इसीलिये बनाई थी कि जब इस तरफ कोई मेरा मददगार नहीं है तो अपने दोस्त रनवीरसिह को किस तरह छुड़ाऊगा? मेरा नाम सवन्तसिह है, मुझसे और रनबीरसिह से दिली दास्ती है।' जसवन्तसिह इतना ही कहने पाये थे कि सर्दार ने रोक दिया और लपक कर जसवन्तसिह का हाथ पकड के कहने लगा."यस बस, मालूम हो गया, अहास्या,जसवन्तसिह आपही का नाम है ? चशक आपसे और रनवीरसिह से दिली दोस्ती है। अब ज्यादे पूछने की कोई जरूरत नहीं, सिर्फ इतना कहिये कि आपसे और उनसे जुदाई कैसे हुई ? जसवन्तसिह ने ताज्जुब में आकर कहा, पहिले यह तो बताइये कि आपने मेरा नाम कब और कैसे सुना? सर्दार--यह किसी दूसरे वक्त पूछियगा. पहल मेरी बातों का जवाब दीजिये। जसवन्त-मैं और रनवीरसिह दोनों दोस्त एक साथ ही भूले भटके यहाँ तक आ पहुच । (हाथ का इशारा करक)उस मन्दिर में जो औरत की मूर्ति है उसे देखते ही रनवीरसिह के सिर पर इश्क सवार हो गया और पूरे पागल हो गए। जब मेरे समझाने युझाने से न उठे तब लाचार हो उनके लिये कुछ खाने पीने का यन्दोबस्त करन में उस गाव की तरफ जा रहा था जिसके पास आप लोगों से मुलाकात हुई थी. वस उसी वक्त से हम दोनों जुदा हुए। सर्दार-उन सवारों को आपने कहॉ देखा था जो रनवीरसिह को कैद कर के ले गए है ? जसवन्त-मैं उस गाँव के पास पहुचा भी न था कि पाँचों सवारों के दर्शन हुए। उन्होंने मुझसे रोक टोक की पर मैने देवकीनन्दन खत्री समग्र १०४२