पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/३४०

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शि ऊपर वाले हिस्सों पर फैल चुकी थी। आधे घण्टे और सफर करने के बाद वे लाग उस जगह पहुच जहा धनपति न किशोरी को जला कर खाक कर डालन के लिए चिता तैयार की थी और जहाँ स दीवान अग्निदत्त लामिड कर किशोरी को ल गया था। इस समय भी यह चिता कुछ बिगड़ी हुई सूरत में तैयार थी और इधर उधर बहुत सी लाशें पड़ी। उस जगह पहुच कर तारा न घोड़ा रोका और इसके साथ ही सब लोग ९.५० गये। तारा ने कमलिनी की तरफ देख कर कहा-- ताग यस इसी जगह में आप लोगों को लाने वाली थी क्योंकि इसी जगह धापति कपलस आदमी मौजूद थ आर यही वह किशोरी को लेकर आने वाली थी। (लाशा की तरफ देखकर ) मालूम होता है यहाँ बहुत सून सरावा हुआ है। कम-तूने कैसे जाना कि किशोरी को लेकर धनपति इसी जगह वाली थी और धनपति का तून कराधाड़ा था? तारा-रात के समय छिप कर धनपति के आदमियों की बात मैन सुनी थी जिससे बहुत कुछ हाल मालूम हुआ था और धनपति को मैंने उसी खोह के मुहाने पर छोडा था जो रोहतासगढ़ तहखाने से बाहर निकलने का रास्ता है। और जहा सलाई के दो पेड़ लग है। उस समय बेहोश किशोरी धनपति के कब्ज में थी और धनपति के कई आदनी भी मौजूद थे। उन लागा की बाते सुनने से मुझे विश्वास हा गया था कि वे लाग विशौरी का लिए हुए इसी जगह आधेगे(एक लाश की तरफ देख के और चौक के) देखिए पहिचानिए । कम-बेशक यह धनपति का नौकर है। (और लाशों को भी अच्छी तरह दयकर) वशक सनपति यहा तक आई थी पर किसी से लडाई हो गई जो इन लाशों को देखने से जाना जाता है, मगर इनमें बहुत सी लाश एसोई जिन्हें मैनहीं पहिचानती। न मालूम इस लड़ाई का क्या नतीजा हुआ धनपति गिरफ्तार हो गई या भाग गई और किशारी किसक कब्ज में पड गई। (कुमार की तरफ देख कर ) शायद आपके सिपाही या ऐयार लोग यहाँ आए हा? कुमार-नहीं (दवीसिह की तरफ देखकर ) आप क्या खयाल करत ? देवी-खयाल तो मैं बहुत कुछ करता हूँ, इसका हाल कहाँ तक पूछिए, मगर इन लाशों में हमारे तरफ वालों की काई लाश नहीं है जिससे मालूम हो कि वे लोग यहा आये होंगे सब लोग इधर उधर घूमन और लाशों को देखने लगे। यकायक दीसिह एक ऐसी लाश के पास पहुच जिसमें जान बाकी थी और वह धीर धीरे कराह रहा था। उसके बदन में कई जगह चरम लग हुए थे और कपड़े खून सतर थे। दीस्हि न कुमार की तरफ देख के कहा 'इसमें जान वाकी है अगर बच जाय और कुछ बातचीत कर सके तो बहुत कुछ हाल मालूम 1 होगा। कई आदमी उस लाश क पास जा मौजूद हुए और उसे हारा में लाने की फिक्र करने लगे। उसके पो पर पट्टी बांधी गई और ताकत देने वाली दवा भी पिलाई गई। घाड नगी गेट करक दम लने हरारत मिटाने और चरने के लिए लम्बी बागडोरों से बाँध कर छोड दिए गए। आधे घण्टे बाद उस आदमी का होश आया और उसने कुछ बोलने का इरादा किया मगर जैसे ही उसकी निगाह कमलिनी पर पडी वह काप उठा और उसके चेहरे पर मुदनी छा गई। उसके दिल का हाल कमलिनी समझ गई और उसके पास जाकर मुलायम आवाज में बोली 'यॉकसिह डरा मत, म वादा करती कि तुम्हें किसी तरह की तकलीफ नदेंगी हॉ होश में आआ और मेरा यात का जवाब दो। कमलिनी की बात सुन कर उसके चेहर की रगत बदल गई डर की निशानी जाती रही, और यह भी जाना गया कि वह कमलिनी की बातों का जवाब देने के लिए तैयार है। कम-किशोरी को लेकर धनपति यहाँ आई थी? बॉके-(सिर हिला कर धीरे से) हाँ मगर कम- मगर क्या? बॉके उसने किशोरी को जला देना चाहा था मगर एकाएक अग्निदत्त और उसके साथी लोग आ पहुंचे और लड भिड़ कर किशोरी को ले गये हम लोग उन्हीं के हाथ सजी चॉकसिह ने इतनी बातें धीरे धीर और रुक रुक कर कहीं क्योंकि जख्मों से ज्यादे ला न्फिल जाने के कारण यह बहुत ही कमजोर हो रहा था यहाँ तक कि यात पूरी न करे सका और गश में आ गया। इन लोगों ने उसे होश में लाने के लिए बहुत कुछ उद्योग किया मगर दो घण्टे तक होश न आया। इस बीच में देवीसिह न उसे कई दफे दवा पिलाई। देवी-इसमें कोई शक नहीं कि यह बच जायगा। शेर-(देवीसिह की तरफ देखकर)हमा (कमलिनी की तरफ इशारा करके) इनके बारे में गी धोखा खाया वास्तव में यह कुमार के साथ नेकी कर रही है। देवकीनन्दन खत्री समग्र