पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/३४१

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देवी-चशक यह कुमार की दोस्त हैं मगर तुमन इनक बार में कई यातें ऐसी कही थी कि अब भी कुमार-नहीं नहीं दीसिहजी में इन्हें अच्छी तरह आजभा धुका हूँ, सच तो यों है कि इन्हीं की बदौलत आज आप लोगों ने मेरी सूरत दयी। इसके बाद कुमा ने शुरु से अपा किस्सा देवीसिह ये कह सुनाया और कमलिनी की बड़ी तारीफ की। कम-आप लोगों ने नेर बारे में बहुत सी बाते सुनी होगी और वास्तव में मैने जो जो काम किये है वे ऐसे नहीं कि काइ मुझ पर विश्वास कर सके हॉ जब आप लोग मेरा असल भेद जान जायेंगे तो अवश्य कहेंगे कि तुम्हारे हाथ से कभी कोई चुरा काम नहीं हुआ। अभी कुमार का भी मरा हाल मालूम नहीं समय मिलने पर मै अपना विचित्र हाल अप लोगों से कहूगी और उस समय आप लोग कहेंगे कि पेशक शेरसिह और उनकी मतीजी कमला न मेरे बारे में धोखा खाया। शेर-(ताज्जुब में आकर ) आप मुझे और मेरी भतीजी कमला का क्योंकर जानती है? कम में आप लोगो को बहुत अच्छी तरह जानती हूँ, हा आप लाग मुझे नहीं जानते और जब तक स्वयम् अपना हाल में न कहूँ जान भी नहीं सकते। इसके बाद कुमार ने देवीसिह से शरसिह का हाल पूछा और उन्होंन सब हाल कहा। इसी समय उस जमी ने आँखें खोली और पीने के लिए पानी भागा जिसका इलाज के लोग कर रहे थे। अबकी दफे बोकेसिह अच्छी तरह होश में आया और कमलिनी के पूछने पर उसने इस तरह ययान किया- इसमें कोई शक नहीं कि अग्निदत्त किशोरी को ले गया क्योंकि मैं उसे बखूबी पहिचानता हूँ मगर यह नहीं मालूम कि किशोरी की तरह धनपति भी उसक पजे में फंस गई या निकल भागी क्योंकि लडाई खत्म होने से पहले ही मैं जख्मी होकर गिर पडा था। मैं जानता था कि अग्निदत रहुत से बदमाशों और लुटरों के साथ यहां से थोड़ी दूर एक पहाड़ी पर रहता है और इसी सवव से धनपति को मैंने कहा भी था कि इस जगह आपका अटकना मुनासिब नहीं मगर होनहार को क्या किया जाय। (हाथ जोड कर) महारानी न मालूम क्यों आपने हम लोगों को त्याग दिया? आज तक इसका ठीक पता हम लोगों को न लगा। वॉसिह की आखिरी बात का जवाब कमलिनी ने कुछ न दिया उससे उस पहाडी का पूरा पता पूछा जहाँ अग्निदत रहता था। वॉकेसिह न अच्छी तरह वहा का पता दिया। कमलिनी ने अपने सवारों में से एक को बोकेसिह के पास छोडा और वाकी सभी का ले वहाँ से रवाना हुई। इस समय कुँअर इन्द्रजीतसिह की क्या अवस्था थी इसे अच्छी तरह समझना जरा कठिन था। कमलिनी की नेकी किशारी की दशा इश्क की खिचाखची और अग्निदत्त की कारवाई के सोच विचार में ऐसे मग्न हुए कि थोडी देर के लिए तनावदन की भी सुध भुला दी केवल इतना जानते रहे कि कमलिनी के पीछे पीछे किसी काम के लिए कहीं जा रह है। सूरज अस्त होने के बाद ये लोग पहाली के नीचे पहुँच जिस पर अग्निदत्त रहता था और जहा साह के अन्दर किशोरी की अन्तिम अवस्था ऊपर क बयान में लिख आये है। इन लोगों का दिल इस समय ऐसा न था कि इस पहाडी के नीच पहुंच कर फिसीजरूरी काम के लिए भी कुछ देर तक अटकते। घोडे को पड़ो से बाध तुरत बढन लग और बात की बात में पहाडी के ऊपर जा पहुंचे। सबसे पहिले जिस चीज पर इन लोगों की निगाह पडी वह एक लाश थी जिसे इन लोगामे से कोई भी नहीं पहिचानता था और इसके बाद भी सी लाश देखने में आई जिससे इन लोगों का दिल छोटा हो गया और सोचने लगे कि देखें किशोरी से मुलाकात हाती है या नहीं। इस पहाडी के ऊपर एक छोटी सी मढी बनी हुई थी जिसमें बीस पचीस आदमी रह सकते थे और इसी क बगल में एक गुफा थी जो बहुत लन्धी और अधेरी थी। पाठक यह वहीं गुफा थी जिसमें पधारो किशोरी दुष्ट अग्निदत्त के हाथ से वेवस हाकर जमीन पर गिर पड़ी थी। इस पहाडी के ऊपर बहुत सी लाशें पड़ी हुई थी किसी का सिर कटा हुआ था किसी का तलवार ने जनेवा काट गिराया था कोइ कमर से दो टूकडे था किसी का हाथ कट कर अलग हो गया था किसी का पेट खजर ने फाड डाला था और आत बाहर निक्ल पड़ी थी मगर किसी जीते आदमी का नाम निशान यहाँ न था। ऐसी अवस्था देखकर कुअर इन्द्रजीतसिह बहुत घबराये और उन्ह किसो के मिलने से ना उमगदी हो गइ। एयारों ने बटुए से सामान निकाल कर यत्तो जलाई और खोह के अन्दर घुसकर देखा तो वहाँ भी एक लाश के सिवाय और कुछ न दिखाई दिया। निगाह पडते ही देवीसिह ने पहिचान लिया कि यह अग्निदत्त की लाश है। एक खजर उसके कलेज में अभी तक चुभा हुआ मौजूद था केवल उसका कब्जा बाहर था और दिखाई दे रहा था उसके पास ही एक लपटा हुआ कागज पड़ा था। दधीसिह ने कागज उटा लिया और दो ऐयार उस लाश को बाहर लाये। सभी ने अग्निदत्त की लाश को देखा और नाज्जुब किया । शेर-इस हरामजादे का इसको कुकर्मा की सजा न जान किसने दी। चन्द्रकान्ता सन्तति भाग ५ ३१७