पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/३४२

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- कमलिनी-हाय इस कम्बख्त की बदौलत बेचारी किशोरी पर न मालूम क्या क्या आफते आई अब वह कहाँ या किस अवस्था में है। देवी-( चीठी दिखा कर ) इसकी लाश क पास यह चीटी भी मिली है शायद इससे कुछ पता चले। कम हाँ हाँ इसे पढ़ा तो सही देखें क्या लिखा है सभों का ध्यान उस चीटी पर गया। कुँअर इन्द्रजीतसिह ने यह चीठी देवीसिह के हाथ से ल ली और पढकर सभी का सुनाया यह लिखा था- गधिर हरामजादी किशोरी मरे हाथ लगी। इसमें कोई शक नहीं कि अब यह अपने किये का फल भागेगी। इसकी शेनानो न मुझे जीते जी मार ही डाला था मगर मैंने भी पीछान छोडा। कम्बख्त अग्निदत की क्या हकीकत थी जो मेरे हाथ स अपनी जान बचा ले जाता। मैं उन लोगों को ललकारता हूँ जो अपने को बहादुर दिलर ओर राजा मानत है । कहाँ है चीरन्द्रसिह इन्द्रजीतसिह और आनन्दसिह जो अपनीको बहादुरी का दावा रखते हैं ? आवें और मेरा धरण छू कर माफी मोंगे। कहाँ है उनके ऐयार जो अपने को विधाता ही समझ बैठे हे ? आर्वे और मरे ऐयारों के सामन सिर झुकायें। मुझ विश्वास है कि उन लोगों में से कोई न कोई किशारी को खोजता यहाँ जरुर आवेमा और इसलिए मैं यह चीठी लिखकर यहा रक्खे देती हूँ कि ऊपर लिख व्यक्ति या उनके साथी और मददगार लांग माहे जा कोई भी हो अपनी अपनी जान बचावे क्योंकि उनको मोत आ चुकी है और अव व लोग मेरे हाथ से किसी तरह यच नहीं सकत । कोई यह न कह कि में छिपकर अपना काम करता हूँ और किसी को अपनी सूरत नहीं दिखाता । जिसको मेरी सूरत दखनी हो मेर घर चला आवे मगर होशियार रहे क्योंकि मेरे सामने आने वाल की भी वही दशा होगी जो यहाँ वालों की हुई। ला में अपना पता भी बताये देता हूँ, जिसको आना हा मेरे पास चला आवे। यहाँ स पाँच कास पूरब एक नाला है उसी क किनार दक्खिन रुख दा कोस तक चले जाने के बाद मेरा मकान दिखाई पड़ेगा। -वहादुरों का दादागुरु इस चीठी न सभों को अपने आपे से बाहर कर दिया। भारे क्रोध क कुँअर इन्द्रजीतसिह की ऑखें कबूतर के खून की तरह सुर्ख हो गई। दीसिह और शरसिह दाँत पीसने लगे। कुमार-चाहे जो हो मगर इस हरामजादे से मुकाविला किय बिना में किसी तरह आराम नहीं कर सकता ! देवी-पेशक इसको इस ढिठाई की सजा दी जायेगी। कुमार-अब यहा ठहरना व्यर्थ हे चल कर उस देना चाहिए। कम-4शक उरान बड़ी बेअदबी की उसे जरूर सजा दना चाहिये। मगर आप लाग बुद्धिमान है मुझे विश्वास है कि बिन्ग सम्झे चूम किसी काम में जल्दी न झरगे। कुमार-ऐस समय मे विलम्ब करना अपनी बहादुरी में पट्टा लगाना है। कम-आप इस समय क्रोध में है इसलिए एया कहते हे नहीं तो आप स्वय पहिले किसी ऐयार को भजना नुनासिय समझत। इतनी बडी शखी के साथ पत्र लिखन वाल को सच्चा नहीं समझ सकती। खुल्लमखुल्ला आप लागों का मुकाबला करना हसी खेल है? क्या यह केवल उन्हीं आदमियों का काम है जो दगाबाज नहीं बल्कि सच्चे बहादुर है? कभी नहीं कभी नहीं बेशक वह कोई धेइमार और रामजादा आदमी है। इसके अतिरिक्त आप जरा इस रात के समय और अपन धाड़ों की हालत पर ता ध्यान दीजिए कि अव व एक क्दम भी चलने लायक नहीं रहे। यद्यपि कुमार और उनक ऐयार इस समय बडे काध में ये परन्तु कमलिनी की सच्ची हमदर्दी के साथ मीठी मीठी बातों ने उन्ह ठण्डा किया और इस लायक बनाया कि वनेक और वद को सोच सर्क। कमलिनी के आदमियों के साथ और ऐयारों के बटुए में बहुत कुछ खाने का सामान था। पहाडी के नीचं एक छोटा सा चश्मा वह रहा था वहाँ से जल मगवाया गया और सभों न कुछ खाकर जल पीया इसके बाद फिर साचने लगे कि अब क्या करना चाहिए। देवी-जिस भकार का इस चीठी में पता दिया गया है यदि वहाँ न जाना चाहिये तो यहाँ रहना भी मुनासिव नहीं क्योकि वरगावाज लोग इस जगह से भी बेफिक्र न होंगे। मेरी राय ता यही है कि शेरसिह के साथ कुमार विजयगढ जाये और मै उस मकान की खोज में जाकर देखें कि वहाँ क्या है। कम-आपका कहना बहुत ठीक है में भी यही मुनासिब समझती हूँ इस बीच में मुझ भी दो एक दुश्मनों का पता लगा लने का मौका मिलेगा क्योंकि जहाँ तक मैं समझती हूँ यह एक ऐस आदमी का काम है जिसे सिवाय मेरे आप लोग नहीं जानते और न इस समय उसका नाम आप लोगों के सामरे लेना ही में मुनासिब समझती हूँ। कुमार-क्या नाम बतान में काई हर्ज है? कमलिनी-येशक हर्ज है हॉ यदि मेरा गुमान ठीक निकला तो अवश्य उन लोगों का नाम बताऊंगी और पता भी दूंगी। देवकीनन्दन खत्री समग्न ३१८