पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/३४३

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lart कुमार-खैर मार जो कुछ राव आप लोगों ने दी है उस्म अनुसार चलन में कई दिन व्यर्थ लाजायँग इसलिये मरो राय कुछ दूरी ही है। देवी-वह क्या कुमार-मैं खुद आपले साथ उसकन की तरफ चलता हूँजिसका पता इस चीठी में दिया गया है। यदि कवल उस मकान के अन्दर रहने वाल हमार दुरन्न है ते हिम्मत हारन को दाईजरूरत नहीं इनीतिन्य उन्हें जीत कर किशारीका छुडा लाऊ और यदि उन लागा के पास नौज हामी ता जर मकान के बाहर टिको हुईंहगी जिस्का पता लगाना कुछ फटिन न हागा उस समय जादुट अप लाग राय देंग किया जाय। इसी तरह की बानयत्न पहर रन ति गई। अखिर व्ही निश्च्य ठहरा सामार नसावा व ज्यांत इस समय सब काईउस मकान की तरफ जाने के लिए मुस्तैद हुए और पहाडीकनचे उपर ज्य। पावसध बागडार सधे चाडे व्हीं पर चर रहे सज अपने सवारी दख कर हिन हनान ल्ला जिसस जताया कि वे इस सम्य शिर सफर के लिए तैयार है और पहर र चरन और आराम करने से उनकी धावट कम हो चुर्क है। स्वलग घोडों पर सवर हाकर यहाँ से रवाना हा जा कुछ उस् चोटी म लिखा था वह ढ़क मालूम हान ला ज्यात पूरच पाँच दात चल जाने क पद एप नाला निला और उसी के किनार किनार दो कास दक्खिन जन के बाद एक मकान की तुफदी दिखाई पड़ी। नालून हाता था कि यह मन भी नया बना है या अजही वर में इस्क पर चूना फरा गया है। रात दा पहर से ज्यादा जा चुकी थी चन्दना अपनी पूर्ण कला अकाश के बीच में दिखाइद रह थ शील किरने चारों तरफ फैली हुई थी और मलून होता था कि जमीन पर चादी का पत्र उडा हुआ है। दलगनलाल पौछ ओड अवथ और इल्जाह पड यहुत कम और छटपटे थे उस मकान के चारों तरफ दासो दिगह के लगभग सार मैदान था। अच्छी तरह जच पर और सपल दौडानमालूम हो गया कि इस माह पर फोड नहीं है और न लडाई का कुर समान ही है अगर कुछ है ता उनी मकान के अन्दर हा! आखिर थाडी दर त्व लाच विचार कर बलामान के पास . यह मकान यहुत बड़ा न था लगनग पचान मज के लम्बा और इसी कदर चौडा होगा। इसकी ऊँचाई भी पैतीस गज स ज्याद न हागो। चारों तरफ की दीगरे साफ थीं न त किती तरफ काईदाजा था और न काई खिडकी यला पारा तरफ धूम मगर अन्दर गन का रास्ता नन्लिा आखिर स्व लग पड़ों पर से उतर कर एक तरफ खड हा गये दवासिहन कमन्द फेका और उसक सहार सदोवर पर चढ़ कर दखना चाहा दि अन्दर क्या है। ऊपर की दीवार बहुत चोटी थी। रमनदखा कि ददत्तिइ दीवार पर खड होकर अन्दर की तरफ बड गौर रदख रह है। यकायक दबीसिह खिलखिला कर हॅस और बिना कुछ कह उत्त मकान के अन्दर कूद पडे। यह देख सनों का ताज्जुब हुआ कमलिनी न ताण के कान में कुछ कहा जिस्क उकार में उत्तन सिर हिला दिया। बाड़ी दर तक देवीन्हि की राह देखो गई आखिर उत्तो कम्न्द के सहारे शेरत्तिह चढ गयर उनकी नीवही अवस्था दखन में “अई अर्थात कुछ दर तक गैर त दखन क यन्द दीसिह की तह हुन र शसिह नी उस मकान के अन्दर कूद गए। स्वती कुमार के अश्चय का कोई हद नरहा व ताज्जुब ने अमर सायन् लगा कि यह क्या मामला है और इतन्जन के अन्दर क्या है जिस दस दोनों एयतेने ऐसा किया जाहो श्वन में ऊपर चढूंगरदगा ति क्या है। -कह कर कुमार भी उसी कमन्द के सहारे ऊपर बदन को तैयार हुए नगर कमलिनी न हाथ पकड लिया और वह एसा न्ही हा सकता अनी हमार कइ अदमी मेजूद है पहिल इन्हें जलन दीजिए। ल्चर कुमार कारखना पड़ा। मलिनी ने अपने उन सवारों की तरफ देखा जा उसऊसाथ आये थ और लहा लागा में सएक अदनी रूपर जाकर दखो कि क्या हुक्म पार उत्सो कमन्द के सहार एक आदमी ऊपर गया और उसकी भी वही दशा हुई दूमरा यादह नीकूद पड़ा तीसरा गया वह भी न लौटा यहाँ तक कि कमलिनो के कुल मदमी इन तरह उस मकान के अन्दर जा दाखिल हुए। क्मलिनी न बहुतरा और मना किया मगर कुमार न उसकी बात पर ध्यान न दिय दनी उसी कनन्द के त्तहार पर बद्ध T4 और अपने साथियों की तरह नर से थाडी दर तक दखन के बाद हॅस्त हुनकात के अन्दर दूद पड। ज्य सवरा हो गया अत्तमान पर पूरब तरफ सूर्य की लाल्निा दिखाइदन लग कमालिनी ने हँस कर अपनी एयारा तारा की तरफ दखा यह गदन हिलाकर हँसी और काली चलिए ज्व देर करन की कोई जरत नहीं। याकीघोड उसी तरह उत्तीजगह छाड दिय गय दा चाडों पर कमलिन और तारा मदार हुई और हेल्ती हुई एक तरफ का चन्द्रकान्ता सन्तति भाग ५ ३१९