पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/३४६

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cor उस रास्ते का हाल वह कुछ भी न जानता था। राजा वीरेन्द्रसिह और उनके लउक और साथी लाग जर कैदखाने में भेज दिये गये उस समय राजा वीरन्द्रसिह के थोडे से फौजी आदमी जो उनके साथ किले में आ चुके थे यह दगाबाजी देखकर जान देने के लिए तैयार हो गये। उन्होंने राजा दिग्विजयसिह के बहुत से आदमियों को मारा और जब तक जीते रहे मालिक के नगक कामनाकेदिल में बना रहा पर आखिर कहाँ तक लड सकते थे शेष में सब के सत्र बहादुरी के साथ लड़ कर चैकुण्ठ चले गय! राजा दिग्विजयसिंह ने किले का फाटक बन्द करवा दिया सफीलों पर तो चढ़वा दी और राजा धीरन्द्रसिह के लश्कर से जो पहाड़ के जीव था लडाई का हुक्म दिया। राजा वीरेन्द्रसिह के लश्कर में दो सर्दार मौजूद थे जो अभी तक रोहतासगढ़ में नहीं आय थे एक हरसिह और दूसरे फतहसिह ये दोनों सेनापति थे। पाठक देखिए जमाने ने कैसा पलटा खाया। किशोरी की धुन में कुँअर इन्द्रजीतसिह आपने दो ऐयारों के सथ एसो जगह जा फेस कि उनका पता लगना भी मुश्किल है इधर राजा पोरेन्द्रसिंह वगैरह की यह दशा हुई अगर भैरोसिह पीठी लेकर चुनार न भज दिये गये होते तो वह भी फंस जाते। आप भूले न होंगे कि रामनारायण और शुन्नीलाल चुनारगढ़ में है और पन्नालाल को राजा चौरे द्रसिह गयाजी छोड आये है राजगृह भी उन्ही के सुपुर्द है ये किसी तरह वहा से टल नहीं सकते क्योंकि वह शहर नया फतह हुआ है और वहा एक सर्दार का हर दम बने रा बहुत ही मुनासिब है। जिस समय रोहतासगढ़ किले से ताप की आवाज आई. दो सनापति बहुत घबराए और पता लगाने के लिए जासूलों को किले में भेजा मगर उनके लौट आने पर दिग्विजय की दगाबाजी का हाल दोनों सेनापतियों का मालूम हो गया उन्होंने उसी समय इस हाल की चीठी लिख दोसवार चुनारगढ रवाना किये और इसके बाद सोचने लगा कि अब क्या कराचाहिए छठवॉ बयान आज बहुत दिनों के बाद हम कमला को आधी रात के समय रोहतासगढ पहाड़ी के ऊपर पूरव तरफ वाले जगल में घूमते देख रहे हैं। यहा से किले की दीवार बहुत दूर और ऊँचे पर है। कमला न मालूम फिस फिक्र में है या क्या ढूँढ रही है। यद्यपि रात चाँदनी थी परन्तु ऊँचे ऊँचे और घने पड़ों के कारण जाल में एक प्रकार से अन्धकार ही था। घूमते घूमत कमला - के कानों में किसी के पैर की आहट मालूम हुई वह रुकी और एक पेड़ की आड में खड़ी होकर दाहिनी तरफ देखन लगी जिधर से आहट मिली थी। दस पन्द्रह कदम की दूरी से दो आदमी जाते हुए दिखाई दिये थात और चाल से दोनों औरत मालूम पड़ीं। कमला भी पैर दवाए और अपने को हर तरफ से छिपाए उन्हीं दानों के पीछे पीछे धीरे धीरे रवाना हुई। लगभग आध कास जाने के बाद ऐसी जगह पहुँचीजहा पेड बहुत कम थे बल्कि उस एक प्रकार से मैदान ही कहना पाहिए। थोड़ी थोडी दूर पर पत्थर के बडे बडे अनगढ डोके पड़े हुए थे जिनकी आड में कई आदमो छिप सकते थे। सघन पेड़ों की आड़ से निकलकर मैदान में कई कदम जान क बाद वे दोनों अपन ऊपर से स्याह यादर उतार कर एक पत्थर की चट्टान पर बैठ गई। कमला ने भी अपने को यडी चालाकी से उन दोनों के करीब पहुंचाया और एक पत्थर की आज में छिपकर उन दोनों की बातचीत सुनना चाहा। चन्द्रमा अपनी पूर्ण किरणों से उदय हो रहे थे और निर्मल चांदनी इस समय अपना पूरा जोक्न दिखा रही थी हर एक चीज अच्छी तरह और साफ नजर आती थी। जब वे दोनों औरते चादर उतार कर पत्थर की चट्टान पर बैठ गई तब कमला ने उनकी सूरत देखी। येशक वे दोनों नौजवान औरत थी जिनमें से एक तो बहुत ही हसीन यी और दूसरी के विषय में कह सकते है कि शायद उसकी लौडी या ऐयारा हो। कमला बडे गौर से उन दोनों औरतों की तरफ देख रही थी कि इतने ही में सामने से एक लम्बे कद का आदमी आता हुआ दिखाई पड़ा जिसे देख कमला चौकी और उस समय तो कमला का कलेजा बेहिसाब धडमने लगा जब वह आदमी उग दोनों औरतों के पास आकर खड़ा हो गया और उनसे डपट कर बोला, 'तुम दोनों कौन हो? उस आदमी का चेहरा चन्द्रमा के सामने था विमल चाँदनी उसके नक्शे को अच्छी तरह दिखा रही थी इसीलिए कमला ने उसे तुरन्त पहिचान लिया और उसे विश्वास हो गया कि वह लम्बे कद का आदमी वही है जो खडहर वाले तहखाने के अन्दर शेरसिह से मिलने गया था और जिसे देख उनकी अजब हालात हो गई थी तथा जिद्द करने पर भी उन्हो न बताया कि यह आदमी कौन है। कमला ने अपने धडकते हुए कलेज को बाएँ हाथ से दबाया और गौर से देखने लगी कि अब क्या होता है। यद्यपि कमला उन दोनों औरतों से बहुत दूर न थी और इस रात के सन्नाटे में उनकी बातचीत वावी सुन सकती थी तथापि उसने अपने को बड़ी सावधानी से उस तरफ लगाया और सुनना चाहा कि दोनों औरतों और लम्बे व्यक्ति मेधया बातचीत होती है। उस आदमी के डपटते ही ये दोनों औरतें चैतन्य होकर खड़ी हो गई और उनमें से एक ने जो सरदार.मालूम होती थी जवाब दिया- देवकीनन्दन खत्री समग्र ३२२